हंस काग कौं सग भयौ।
कहँ गोकुल कहँ गोप गोपिका, विधि यह सग दयौ।।
जैसै कंचन काँच संग, ज्यौ चंदन संग कुगंधि।
जैसै खरी कपूर एक सम यह भइ ऐसी सधि।।
जल बिन मीन रहति क्यौ न्यारी, यह सोइ रीति चलावत।
जब ब्रज की बातैं इहिं कहियत, तबही तब उचटावत।।
याकौ ज्ञान थापि ब्रज पठवौ, और न याहि उपाउ।
सुनहु ‘सूर’ याकौ ब्रज पठऐं, भलौ बनैंगौ दाउँ।। 3418।।