हरषि मुरली-नाद स्याम कीन्हौ।
करषि मन तिहुँ भुवनि सुनि, थकि रह्यौ पवन ससिहिं भूल्यौ गवन ज्ञान लीन्हौ।।
तारका गन लजे, बुद्धि मन-मन सजे, तबहिं तनु-सुधि तजे, सब्द लाग्यौ।
नाग-नर-मुनि थके, नभ-धरनि तन तके, सारदा-स्वामि, सिव ध्यान जाग्यौ।।
ध्यान-नारद टरयौ, सेस-आसन चल्यौक, गई बैकुंठ धुनि मगन स्वामी।
कहत श्री प्रिया सौं राधिका रमन, ये सूर-प्रभु स्याम के दरस-कामी।।1063।।