हरि जू तुम तै कहा न होइ।
बोलै गुंग पंगु गिरि लंघै आवै अंधौ जग कौ जोइ।
पतित अजामिल, दासी कुबिजा, तिनके कलिमल डारे घोइ।
रंक सुदामा कियौ इंद्र-सम, पांडव-हित-कौरव दल खोइ।
बालक मृतक जिवाइ दिए प्रभु, तब गुरु-द्वारै आनंद होइ।
सूरदास-प्रभु इच्छापूरन, श्रीगोपाल सुमिरौ सब कोइ।।95।।