हरि जू तुम तै कहा न होइ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग धनाश्री




हरि जू तुम तै कहा न होइ।
बोलै गुंग पंगु गिरि लंघै आवै अंधौ जग कौ जोइ।
पतित अजामिल, दासी कुबिजा, तिनके कलिमल डारे घोइ।
रंक सुदामा कियौ इंद्र-सम, पांडव-हित-कौरव दल खोइ।
बालक मृतक जिवाइ दिए प्रभु, तब गुरु-द्वारै आनंद होइ।
सूरदास-प्रभु इच्‍छापूरन, श्रीगोपाल सुमिरौ सब कोइ।।95।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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