अर्ष्टिषेण का उल्लेख पौराणिक महाकाव्य महाभारत में मिलता है। महाभारत के अनुसार ये एक ऋषि थे, जिनके आश्रम पर ठहरकर अज्ञातवास के समय पांडवों ने अर्जुन के आने की प्रतीक्षा की थी।
- जब अर्जुन इन्द्र की नगरी अमरावती में शस्त्रप्राप्ति की शिक्षा ले रहे थे, तब दूसरी ओर शेष पाण्डवगण उत्तराखंड के अनेक मनमोहक दृश्यों को देखते हुए ऋषि आर्ष्टिषेण के आश्रम में आ पहुँचे। उनका यथोचित स्वागत सत्कार करने के पश्चात महर्षि आर्ष्टिषेण बोले-
- "हे धर्मराज युधिष्ठिर! आप लोगों को अब गन्धमादन पर्वत से और आगे नहीं जाना चाहिये, क्योंकि इसके आगे केवल सिद्ध तथा देवर्षिगण ही जा सकते हैं। अतः आप लोग अब यहीं रहकर अर्जुन के आने की प्रतीक्षा करें।"
- इस प्रकार पाण्डवों की मण्डली महर्षि आर्ष्टिषेण के आश्रम में ही रहकर अर्जुन के आगमन की प्रतीक्षा करने लगी।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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