गीता माता -महात्मा गांधी
गीता-प्रवेशिका
(गीता के सरल और भक्ति-प्रधान श्लोकों के संग्रह)
दो शब्द
यह गीता-प्रवेशिका यरवदा-मंदिर में गत वर्ष संग्रहीत की गई थी। मेरा तीसरा पुत्र रामदास उसी मंदिर[1] में था। उसको कई बार मिलने का अथवा लिखने का मौका मुझे अमलदार दिया करते थे। रामदास गीता पढ़ता था, परंतु सब-कुछ समझ नहीं सकता था। रामदास में भक्ति-भाव है, श्रद्धा भी है। उसकी सहायता के लिए मैंने गीता के सरल और भक्ति-प्रधान श्लोकों को संग्रह करके भेजा। रामदास को यह संग्रह अच्छा लगा। मैंने उसे रामगीता का नाम देकर और भी रामदास को प्रोत्साहन दिया। बाबा राघवदास ने उसे काका साहब के हाथ में देखा, पढ़ा और हरिजन-सेवकों के लिए यह संग्रह उपयोगी होगा ऐसा उनको लगा और इस दृष्टि से उसे छपवाने की सम्मति मांगी। मैं कोई पंडित नहीं हूं, इसलिए यह संग्रह छपवाने योग्य है या नहीं, उस बारे में मैं निश्चय नहीं कर सकता था। आश्रमनिवासी श्री विनोबा, काका साहब और बालकृष्ण यही थे। तीनों गीता के अभ्यासी और भक्त हैं। मैंने बाबा जी से कहा, यदि ये तीन आश्रमवासी पसंद करें तो उस संग्रह को छपवाने में मुझे कोई बाधा नहीं है। तीनों ने विचार करके और उपयोगिता बढ़ाने की दृष्टि से तीन श्लोक निकालने की और चार नये दाखिल करने की सलाह दी। इतनी सुधारणा के साथ यह संग्रह सेवक, सेविका और अन्य गीता-भक्तों के सामने रखा जाता है। आशा और आशय यह है कि इस संग्रह को प्रवेशिका की दृष्टि से ही पढ़ा जाये और अच्छी तरह समझने के बाद पूर्ण गीता का अभ्यास किया जाये। साथ इतना भी स्मरण में रखा जाये कि प्रवेशिका अथवा पूर्ण गीता कंठ करने से ही अथवा उसका पूर्ण अर्थ समझने से ही कुछ आत्मलाभ हासिल नहीं होगा। गीता अनुकरण के लिए है। उसके पारिभाषिक शब्द अच्छी तरह समझने के बाद और उसका मध्यबिंदु अनासक्ति हृदयगत होने के बाद गीता समझने में कम कठिनाई आती है। सत्याग्रह आश्रम —मोहनदास करमचंद गांधी वर्धा 1-1033 |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जेल
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