नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
25. बुआ सुनन्दा-मृद-भक्षण
भाभी इतनी कठोर भी हो सकती है, आज ही जाना मैंने। जैसे देखा ही नहीं कि सुकुमार नीलमणि कितना डरा खड़ा है। जाकर अपने बायें हाथ से उसके दोनों कर पकड़ लिये और डाँटकर बोलीं- 'क्यों रे! तूने मिट्टी खायी है?' 'मैंने नहीं खाई मैया!' श्याम रोते-रोते बोला। इसके दृगों से बिन्दु टपकने लगे। 'तेरे ये सब सखा कहते हैं।' भाभी का स्वर वैसा ही कठोर बना है। ये कन्हाई के अश्रु भी नहीं देखतीं? 'मैया! सब मुझसे झगड़ते हैं! सब झूठ बोलते हैं!' नीलमणि हिचकियाँ लेने लगा है। 'दाऊ भी तो कहता है!' यशोदा भाभी को आज हो क्या गया है? इतने सुकुमार पर इतना रोष! 'तू मेरी बात सच नहीं मानती तो मेरा मुख तो तेरे सामने ही है, देख ले!' अब इससे अधिक यह नन्हा क्या कहे! इतना शील इसमें है कि अपने अग्रज को झूठा नहीं कहेगा। यह शील ही सन्तुष्ट हो जाने को पर्याप्त होना चाहिये। 'अच्छा मुख खोल!' हे भगवान! सचमुच क्या भाभी आज इसे पीटने पर ही उद्यत हैं? इसने एक चिटकी धूलि खाई है तो मुख में कुछ कहीं लगी ही होगी। मेरा हृदय धक-धक करने लगा। मैं आज झगड़ूँगी। मेरे सामने इस सुकुमार पर हाथ नहीं उठाने दूँगी। पैर पकड़ूँगी भाभी के। ऐं! यह क्या हो रहा है? भाभी के नेत्र ऐसे फटे-फटे क्यों हैं? ये इतनी चकित-भीत क्यों दीख रही हैं? कन्हाई तो अपना नन्हा-सा मुख खोले खड़ा है। अब भी भयभीत है। आँसू ढुलका रहा है। हिचकियाँ लेना मात्र बन्द हुआ है इसका; किंतु भाभी को क्या हो गया? यह क्यों काँप रही हैं? इनका शरीर तो स्वेद से भीगता जा रहा है। ये हाथ से छड़ी तो छोड़ ही चुकी थी, इस नन्हें को हाथ क्यों जोड़ रही हैं। हँस गया कन्हाई! यह हँसता है तो चन्द्रिका छिटक जाती है। मैया ही हाथ जोड़ेगी तो हँसेगा नहीं? अब भाभी के हाथ पकड़कर मचलने लगा है- 'दूध! मुझे दूध पिला। मुझे भूख लगी है।' |
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