भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्री भगवती-तत्त्व
यद्यपि श्रीभगवती नित्य ही है, तथापि देवताओं के कार्य के लिये वह समय-समय पर अनेक रूप में प्रकट होती है वह जगन्मूर्ति भगवती नित्य ही है, उसी से चराचर प्रपंच व्याप्त है, तथापि उसकी उत्पत्ति अनेक प्रकार से होती है देवताओं के कार्य के लिए जब वह प्रकट होती है, तब वह नित्य होने पर भी उत्पन्न हुई कही जाती है-
कुछ लोगों का कहना है कि ‘‘शास्त्रों में मायारूपा भगवती की ही उपासना कही गयी है, माया वेदान्त-सिद्धान्तानुसार मिथ्याभूत है, मुक्ति में उसकी अनुगति नहीं हो सकती, अतः भगवती की उपासना अश्रद्धेय है। ‘तापनीय’ में ऐसा स्पष्ट उल्लेख है कि नारसिंह माया ही सब प्रपंच की सृष्टि करती है, वही सबकी रक्षा करती है, वही सबका संहार करती है, उसी मायाशक्ति को जानना चाहिये। जो उसे जानता है, वह मृत्यु को तरता है, पाप्मा को तरता है, अमृतत्त्व एवं महती श्री को प्राप्त करता है- अर्थात देवताओं ने देवी का उपास्थान करके उससे प्रश्न किया कि ‘आप कौन हैं?’’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ देव्यथर्वशिर
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