विषय सूची
भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्री रासपञ्चाध्यायी
यह निश्चय कर वह कमलाधिपति जलाशय में उत्पन्न हुआ, वहीं बसा- ‘यहाँ कैसे आयेंगे श्याम? पर वे बड़े नटखटिया हैं, कहीं जल विहार के लिये ही आ निकले, तो मेरी इस अद्भुत शोभा को अवश्य चुरा लेंगे, वे पक्के चोर जारशिखामणि हैं। मेरी सम्पत्ति यह एकमात्र शोभा ही है। मुझे खूब सावधान रहना चाहिये।’ जल विहार गर्मी में होता है, शरद् में लोग शीत से डरते हैं, सहसा जल में नहीं प्रविष्ट होते। यह सोचकर वह सरोजरज शरदृतु में और तत्रापि जल में उत्पन्न हुआ, वहीं बसा। इतने पर भी सन्तोष न हुआ, उसने अपनी रक्षा के लिये चारों ओर बहादुर कमलों को पहरेदार खड़ा किया, कितनों ही को अपने पास बसाया- यदि उन्हें चोरी करना ही इष्ट होगा तो इन्हीं की सम्पत्ति हरके अपनी आदत पूरी कर लेंगे, मुझ तक नौबत न आयेगी। पर इसके बाद भी डर के मारे उसने शतपत्रों को द्वारपाल बनाया। उनके भी चारों ओर काँटे लगाये, स्वयम् सबके बीच में रहा। अब रक्षा के बाह्य प्रयत्न-प्रबन्ध से वह निश्चिन्त हुआ। किन्तु अब भी उसका भय गया नहीं। वह सोचता रहा- ‘उनकी चोरी बड़ी अद्भुत है, वे आँख से काजल निकाल लेते हैं।’ अतः अब अपनी शोभा की रक्षा के लिये उसने आभ्यन्तर प्रयत्न किया- उस छवि-सम्पत्ति को अपने अन्तरतम कोष में छिपाकर रखा। फिर भी सचमुच महान् आश्चर्य, कि श्रीश्यामबिहारी के उन नेत्रारविन्दों ने निरुपम नेत्रों ने सरसिजसम्राट की श्री को सम्पत्ति को चुरा ही लिया और किसी ने देखा तक नहीं- ‘कब चुराया?’ श्रीगोपीगीत के इस पद्य में यह बात कही गयी है- ‘शरदुदाशये साधु जातसत्सरसिजोदरश्रीमुषा दृशा...’ ऐसे चौर्य कुशल अपने साथी नेत्र चोरों को, अवलोकन को, श्रीश्यामसुन्दर ने व्रजसीमन्तिनियों की चोरी करने भेजा-‘जाओ, गोपियों के मनोरत्न को, धैर्यलज्जादि रत्नों को चुरा लाओ।’ साथ में मोहन औषध दिया, जिसके प्रयोग से वे जागती भी सो जायँ। उन रूपशेखर श्याम के हास और अवलोकन ही इस कार्य के लिये पर्याप्त थे, इनमें प्रेम-संमोहन और मिल गया, अब कहना ही क्या था? हे महावृक्षों, इस प्रकार प्रेमहासावलोकन से उन्होंने हमारा सब कुछ चुरा लिया, हम उन्हें पूछ रही हैं, बताओ, वे किस ओर गये हैं? गोपियों, तुम सचमुच भोली हो, पर अपने रत्नों की-सर्वस्व की रक्षा में इतनी गफ़लत क्यों तुमने की? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज