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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
अर्जुन सुभद्रा मिलन
भाइयों के सामने कठिन प्रतिज्ञा करने के बाद श्रीकृष्ण को साथ लेकर अर्जुन अपनी पत्नी सुभद्रा और पुत्रवधु उत्तरा से मिलने के लिए गये। सुभद्रा का विलाप देखा नहीं जाता था। दुख के आवेश में सुभद्रा बार-बार अपने भाई श्रीकृष्ण पर यह लांछन लगाती थी कि तुमने अपने भांजे की रक्षा नहीं की थी। बेचारी उत्तरा तो काठ हो गई थी। बड़ों के सामने लज्जावश वह न कुछ कह सकती थी और न खुलकर रो ही सकती थी। उसके आंसू उसके कलेजे में समुद्र की तरह तूफान उठा रहे थे, किन्तु ऊपर से वह एकदम मौन थी। उत्तरा इस समय गर्भवती भी थी। इसलिए श्रीकृष्ण ने अपनी बहन को चेतावनी देते हुए कहा, “सुभद्रा तुम परम धैर्यवान वसुदेव की पुत्री, मेरी और बलदेव की बहन हो, वीर अभिमन्यु की माता और वीर श्रेष्ठ अर्जुन की पत्नी हो। साधारण स्त्रियों के समान तुम्हारा यह विलाप करना मुझे अच्छा नहीं लग रहा है। अपने को सावधान करो और बहू को संभालो। यह क्यों नहीं सोचती हो कि वह इस समय गर्भवती है। तुम बहू को कदापि सती मत होने देना। विश्वास रखो कि महावीर अर्जुन कल सूर्यास्त होने से पहले तुम्हारे पुत्र के हत्यारों से अपना बदला अवश्य ले लेंगे।” इस प्रकार समझा-बुझा कर दोनों आदमी जब बाहर निकले तो अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा- “भैया! मेरी प्रतिज्ञा का समाचार सुनकर कल कौरव लोग जयद्रथ को बचाने का कोई भी उपाय बाकी न रख छोड़ेंगे। वे लोग मेरा अधिक से अधिक समय छिट-पुट लड़ाइयों में इस तरह से नष्ट करवायेंगे कि मैं सूर्यास्त से पहिले जयद्रथ को मारने की अपनी प्रतिज्ञा पूरी न कर पाऊंगा।” श्रीकृष्ण बोले- “हे सखा, तुमने भी सुना होगा कि सनातन काल के प्रतापी रुद्रगण पाशुपत अस्त्र का प्रयोग किया करते थे। इस भयंकर शस्त्र को चलाने से वायु में ऐसा प्रचण्ड विष फैलता था कि शत्रुओं को सांस लेना भी कठिन पड़ जाया करता था।” अर्जुन बोले- “मैं पाशुपत अस्त्र के सम्बन्ध में कुछ जानता तो अवश्य हूं, पर वर्षों पहले उसे चलाने का मंत्र मैंने सीखा था। इस समय वह ठीक से मेरे ध्यान में भी नहीं आ रहा है।” श्रीकृष्ण बोले- “हे सखा, यदि तुम एकाग्र होकर उस अस्त्र का ध्यान करोगे तो वह अवश्य ही तुम्हारे मन में उदित हो जायेगा। रुद्रगणों के देव पशुपतिनाथ योगेश्वर महादेव तुम्हारे ऊपर कृपा करेंगे।” |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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