विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दचतुर्थ अध्याय
पूज्य गुरुदेव भगवान कहा करते थे-“हो! हम कई बार नष्ट होते-होते बच गये। भगवान ने ही बचा लिया। भगवान ने ऐसे समझाया, यह कहा।” हमने पूछा-“महाराज जी! क्या भगवान भी बोलते हैं, बातचीत करते हैं? वे बोले-“हाँ हो! भगवान ऐसे बतियावत हैं जैसे हम-तुम बतियाईं, घण्टों बतियाई और क्रम न टूटे।” हमें उदासी हुई और आश्चर्य भी कि भगवान कैसे बोलते होंगे, यह तो बड़ी नहीं बात है। कुछ देर बाद महाराज जी बोले-“काहे घबड़ात है! तो हूँ से बतियैहैं।” अद्वरशः सत्य था उनका कथन और यही सख्यभ्ज्ञाव है। सखा की तरह वे निराकरण करते रहें, तभी इस नष्ट होनेवाली स्थिति से साधक पार हो जाता है। अभी तक योगेश्वर श्रीकृष्ण ने किसी महापुरुष द्वारा योग का आरम्भ, उसमें आनेवाले व्यवधान और उनसे पार पाने का रास्ता बताया। इस पर अर्जुन ने प्रश्न किया-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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