हरिगीता अध्याय 4:1-5

श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'

अध्याय 4 पद 1-5

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श्रीभगवान बोले-
मैंने कहा था सूर्य के प्रति, योग यह अव्यय महा।
फिर सूर्य ने मनु से कहा, इक्ष्वाकु से मनु ने कहा॥1॥

यों राजऋषि परिचित हुए, सुपरम्परागत योग से।
इस लोक में वह मिट गया, बहु काल के संयोग से॥2॥

मैंने समझकर यह पुरातन योग-श्रेष्ठ रहस्य है।
तुझसे कहा सब क्योंकि तू, मम भक्त और वयस्य है॥3॥

अर्जुन बोले-
पैदा हुए थे सूर्य पहले आप जन्में हैं अभी।
मैं मान लूँ कैसे कहा यह आपने उनसे कभी ? ॥4॥

श्रीभगवान् बोले-
मैं और तू अर्जुन! अनेकों बार जन्मे हैं कहीं।
सब जानता हूँ मैं, परंतप! ज्ञान तुझको है नहीं॥5॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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