हरिगीता अध्याय 5:1-5

श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'

अध्याय 5 पद 1-5

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अर्जुन बोले-
कहते कभी हो योग को उत्तम कभी संन्यास को।
हे कृष्ण! निश्चय कर कहो, वह एक जिससे श्रेय हो॥1॥

श्रीभगवान् बोले-
संन्यास एवं योग दोनों मोक्षकारी हैं महा।
संन्यास से पर कर्मयोग, महान् हितकारी कहा॥2॥

है नित्य संन्यासी, न जिसमें द्वेष या इच्छा रही।
तज द्वन्द्व सुख से सर्व बन्धन-मुक्त होता है वही॥3॥

है ' सांख्य' ' योग' विभिन्न कहते मूढ़, नहिं पण्डित कहें।
पाते उभय फल एक के जो पूर्ण साधन में रहें॥4॥

पाते सुगति जो सांख्य-ज्ञानी, कर्म-योगी भी वही।
जो सांख्य, योग समान माने, तत्त्व पहिचाने सही॥5॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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