आक्षेप (महाभारत संदर्भ)

  • अनुगृह्णन् न चाक्षिपेत्।[1]

किसी पर कृपा करते उस पर समय आक्षेप न करें।

  • रूपद्रविणहीनांशय सत्त्वहीनांश्च नाक्षिपेत्।[2]

रूप, धन और बल से हीन लोगों पर आक्षेप न करें।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शांतिपर्व महाभारत 70.10
  2. अनुशासनपर्व महाभारत 104.35

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