आत्मसम्मान (महाभारत संदर्भ)

  • तूर्णं सम्भावयात्मानम्।[1]

शीघ्र अपने आप को सम्मान का भागी बनाओ।

  • नात्मावमन्तव्य: पूर्वाभिरसमृद्धिभि:।[2]

कभी निर्धन थे, इस कारण अपने आप को तुच्छ न समझें।

  • न ह्यात्मपरिभूतस्य भूतिर्भवति शोभना।[3]

जो स्वयं अपना ही अनादर करता है उसे समुचित वैभव प्राप्त नहीं होता।

  • कुरु सत्त्वं च मानं च विद्धि पौरुषमात्मन:। [4]

आत्मसम्मान और बल को प्रकट कर, अपने पौरुष (वीरता) को पहचान

  • उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्। [5]

अपने आप अपना उद्धार करें, अवसाद में न डूबें।

  • आत्मप्रत्ययकोशस्य वसुदैव वसुन्धरा। [6]

जिसके पास आत्मविश्वास का धन है, उसको पृथ्वी भी धन देती है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत 29.4
  2. उद्योगपर्व महाभारत 135.25
  3. वनपर्व महाभारत 32.58
  4. उद्योगपर्व महाभारत 133.21
  5. भीष्मपर्व महाभारत 30.5
  6. शान्तिपर्व महाभारत 120.30

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