श्रीनारायणीयम्
षष्ठदशकम्
विराट् शरीर जगत्स्वरूपत्व का वर्णन
अद्भुत स्वरूप वाले देवाधिदेव ईश्वर! उपर्युक्त प्रकार से चौदह भुवनों के रूप में प्रकट हुए आपके पादतल को पाताल, पाद के ऊर्ध्वभाग को रसातल और दोनों टखनों को महातल कहा गया है।।1।।
भगवान चक्रपाणे! आपकी दोनों पिंडलियाँ तलातल, दोनों घुटने सुतल, दोनों जाँघों का अधोभाग वितल और ऊर्ध्वभाग अतल, जघनभाग पृथ्वीतल, नाभि आकाश और वक्षःस्थल इंद्र का निवासभूत स्वर्ग है।।2।। |
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |