श्रीनारायणीयम्
एकोनाशीतितमदशकम्
रुक्मिणी का हरण तथा परिणय
तदनन्तर कलह की आशंका से बलराम जी भी सेना के साथ आपके पीछे गये। वहाँ पहुँचने पर महाराज भीष्मक द्वारा सम्मानित होकर आपने नगर में प्रवेश किया। तब आपके आगमन की सूचना देने वाले वे ब्राह्मणकुमार रुक्मिणी के पास गये। हर्षित हुई रुक्मिणी ने बड़े वेग से धरती पर माथा टेककर उन्हें प्रणाम किया।।1।।
एक ओर आपके त्रिभुवन कमनीय रूप को देखकर और दूसरी ओर राजकुमार रुक्मी की कुचेष्टा सुनकर पुरवासियों को महान् खेद हुआ, जिससे उनकी वह रात्रि रोदनपूर्वक वार्तालाप करते ही व्यतीत हुई।।2।।
तत्पश्चात् जिसने अपना जीवन आपको ही अर्पित कर रखा था, वह चंद्रवदनी रुक्मिणी मांगलिक आभूषणों से विभूषित हो पार्वती-वन्दना के निमित्त अपने नगर से बाहर निकली। उस समय बहुतेरे सुभट उसके आगे-आगे तथा उसे घेरकर चल रहे थे।।3।। |
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