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भागवत सुधा -करपात्री महाराज
सप्तम-पुरुष
1. राजा बलि के पूर्व जन्म का वृतान्त
देवमाता ‘अदिति’ अपने पुत्रों के पराभव से अत्यन्त खिन्न थीं। राजा बलि पहले तो संग्राम मं इन्द्र के वज्र से क्षत-विक्षत हो गया, परन्तु शुक्राचार्य महाराज की संजीवनी-विद्या से उसका उज्जीवन हुआ। उसके बाद शुक्राचार्य ने विधिवत उससे यज्ञ कराया और उसे दिव्य अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित किया, दिव्य तेज से उपर्बहित किया, फिर राजा बलि तमाम लोक-लोकान्तरों को जीत कर राजा इन्द्र हो गया। लोग पहले सौ अश्वमेध करते हैं तब इन्द्र होते हैं, परन्तु राजा बलि पहले इन्द्र हो गया, फिर सौ अश्वमेध की उसने तैयारी की। कहते हैं, बलि पूर्वजन्म का कोई जुआरी था। जुआ खेला करता था। एक दिन जुए में कहीं कुछ पैसे पाये। उन पैसों की उसने एक बड़ी खूबसूरत माला खरीदी, भगवान के लिये नहीं, अपनी किसी प्रियतमा वेश्या के लिये। माला हाथ में लिये कामान्ध जा रहा था। किसी पाषाण से ठोकर खाकर गिर पड़ा। मूर्च्छित हो गया। कुछ देर में होश हुआ तो उसने अनुभव किया, ‘अब मैं मर जाऊगा।’ सोचा- ‘‘ठीक है, मर तो जाऊंगा, लेकिन मेरी इस माला का क्या होगा? मेरी यह बहुत खूबसूरत माला मेरी प्रियतमा तक तो पहुँची नहीं। हाँ ठीक है, कभी मैंने महात्मा के मुख से सुन रखा है, वस्तु ‘शिवार्पण’ कर देने से बहुत लाभ होता है।
‘शिवार्पण’ कर देने से कुछ होता होगा तो हो जायगा। न होगा तो मर तो रहा ही हूँ, माला तो बेकार जा ही रही है। कुछ होता होगा तो हो जायगा, न होगा तो न सही।’’ इस दृष्टि से जुआरी ने माला शिव जी को अर्पण कर दी। जुआरी माला ‘शिवार्पण’ करके मर गया। यमराज के दूत पकड़ कर ले गये। यमराज के सामने खड़ा किया। उन्होंने चित्रगुप्त से कहा- ‘‘देखो इसका वही खाता।’ चित्रगुप्त ने कहा- ‘यह तो जन्म-जन्मान्तर, युग-युगान्तर, कल्प-कल्पान्तर का पापी है।’[1] यमराज ने कहा- ‘इसके पुण्य भी तो देखो।’ चित्रगुप्त ने देखा। पुण्य तो कोई था नहीं। यमराज ने कहा- ‘फिर देखो’, चित्रगुप्त ने देखा और कहा- ‘‘बस अभी-अभी थोड़ी देर पहले द्यूत में पैसा पाकर इसने माला खरीदी थी वेश्या के लिये। ठोकर खाकर रास्ते में गिर पड़ा। इसने देखा कि माला अब निरर्थक हो रही है तो शिवार्पण कर दिया। ‘रपट पड़े तो हर गंगा’ कोई गंगा के तीर-तीर चल रहा था, स्नान करने की उसकी कोई इच्छा तो थी नहीं, परन्तु जब पैर फिसल गया, रपट पड़ा तो हर गंगा।
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