विषय सूचीभागवत सुधा -करपात्री महाराजअष्टम-पुष्प 2. ‘आदि कर्ता स्वयं प्रभु’ श्रीरामःश्री बल्लभाचार्य जी कहते हैं- जो सारस्वत कल्प के पूर्णतम पुरुषोत्तम कृष्ण हैं, वही श्रीराम हैं। पुराणों में, महाभारत में और रामायणों में भी वाल्मीकि -रामायण की चर्चा है। बाल्मीकि-रामायण में ब्रह्मा जी कहते हैं- भगवान् नारायणो देवः श्रीमांश्चक्रायुद्धः प्रभुः। (आप भोक्ता और भोग्य रूप सकल प्रपंच के आश्रय साक्षात नारायण हैं, सुदर्शन चक्रधारी श्री विष्णु हैं, एक श्रृंग बराह तथा भूत और भव्य सकल शत्रुओं के विजेता है। आप ही आदि, अन्त और मध्य में रहने वाले सत्य अक्षर हैं। सब लोकों के आप ही परम धर्म है। आप ही चतुर्भुज विष्वक्सेन, शागधन्वा, सर्वेन्द्रिय नियामक हृषीकेश पुरुष एवं पुरुषोत्तम हैं। आप हो अजित खड्गधर विष्णु, बृहद्वल कृष्ण हैं।) सेनानीर्ग्रामणीः सर्व त्वं बुद्धिस्त्वं क्षमा दमः। (आप सेनानी एवं ग्रामीण हैं। आप ही बुद्धि, सत्त्व, क्षमा तथा दम हैं। जगत की उत्पत्ति और प्रलय के आप ही एकमात्र कारण हैं एवं आप ही मधुसूदन हैं। आप ही इन्द्र कर्मा इन्द्र की सृष्टि करने वाले महेन्द्र हैं। रणान्तकृत पद्मनाभ भी आप ही हैं। दिव्य महर्षि आपको शरण योग्य परम आश्रय एवं रक्षक कहते हैं। आप ही सहस्रश्रृंग वेद एवं शतशीर्ष महान् धर्म हैं। आप तीनों लोकों के आदि कर्ता स्वयं प्रभु हैं- आपका अन्य कोई प्रभु नहीं है।) एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्। (ये सब अवतार तो भगवान के अंशावतार अथवा कलावतार हैं, परन्तु भगवान श्रीकृष्ण तो स्वयं भगवान अवतारी ही हैं। जब लोग दैत्यों के अत्याचारों से व्याकुल हो उठते हैं तब युग-युग अनेक रूप धारण करके भगवान उनकी रक्षा करते हैं।) ऋतधर्मा वसुः पूर्व वसूनां च प्रजापतिः। पूर्वकाल में वसुओं के प्रजापति जो ऋतुधर्मा नाम के वसु थे, वे आप ही हैं। आप तीनों लोके के आदिकर्ता स्वयं प्रभु हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ बाल्मीकि रामायण 6.177.13-15
- ↑ वाल्मीकि रामायण 6.117.16-18
- ↑ भागवत 1.3.28
- ↑ वाल्मीकि रामायण 6.117.7
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