महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
85.युधिष्ठिर की कामना
"अर्जुन अभी तक लौटा नहीं और न सात्यकि की ही कोई खबर आई! भैया भीमसेन, मन शंकित हो रहा है। बार-बार पांचजन्य बज रहा है, किंतु गांडीव की टंकार सुनाई नहीं दे रही है। इससे मन में भय-सा छा रहा है! वीर सात्यकि मेरे लिये प्राणों से भी प्यारा था! उसे मैंने अर्जुन की सहायता के लिये भेजा। न जाने अभी तक वह भी क्यों नहीं लौटा? भैया, मेरी तो चिंता बढ़ रही है। कुछ समझ में नहीं आता कि क्या करूं?" भीमसेन से इस प्रकार कहकर धर्मराज चिंताकुल हो उठे। उन्हें कुछ न सूझा कि क्या करें। किंकर्तव्यविमूढ़-से होकर इधर-उधर टहलने लगे। यह देख भीमसेन बोला- "भैया, मैंने आपको इतना अधीर कभी नहीं देखा। आप क्यों इस प्रकार धीरज खो रहे हैं। आप जो भी कहें, मैं करने को तैयार हूँ। मुझे आज्ञा दीजिए कि मैं क्या करूं? आप मन में उदासी न आने दें।" युधिष्ठिर ने कहा- "भैया! मुझे तो ऐसा भय हो रहा है कि हमारे प्यारे अर्जुन को जरूर कुछ हुआ है। अर्जुन सकुशल होता तो गांडीव की टंकार अवश्य सुनाई देती। अर्जुन की अनुपस्थिति में अब स्वयं माधव हथियार लेकर लड़ रहे दीखते हैं। यही कारण है कि गांडीव की टंकार सुनाई नहीं पड़ रही है। इस सारी परेशानी में मुझे कुछ नहीं सूझ पड़ता कि क्या करूं। मन उद्भांत-सा हो रहा है। यदि भीम, मेरा कहा मानो तो तुम भी अर्जुन के पास चले जाओ और सात्यकि और अर्जुन का हाल-चाल मालूम करो और इसके लिये जो कुछ करना जरूरी हो वह करके वापस आकर मुझे सूचना दो। मेरा कहना मानकर ही सात्यकि अर्जुन की सहायता को कौरव-सेना से युद्ध करता हुआ गया है। तुम भी उसके पीछे-पीछे जिधर वह गया है, उधर जाओ। यदि तुम उसको कुशलपूर्वक पाओ तो सिंहनाद करना। मैं समझ लूंगा कि सब कुशल है।" भीमसेन ने युधिष्ठिर की बात का प्रतिवाद नहीं किया। सिर्फ इतना ही कहा- "राजन, आप जरा भी चिंता न करें। मैं इसी समय जाकर उनका कुशल-समाचार लाता हूँ और आपकी उनको खबर देता हूँ।" और वह धृष्टद्युम्न से बोला- "पांचाल-कुमार! आचार्य द्रोण के इरादे से तो आप परिचित हैं ही। किसी-न-किसी तरह धर्मपुत्र युधिष्ठिर को जीवित ही पकड़ने का उनका प्रण है। राजा की रक्षा करना ही हमारा प्रथम कर्तव्य है। जब वह स्वयं मुझे जाने की आज्ञा दे रहे हैं तो उसका भी पालन करना मेरा धर्म हो जाता है। इस कारण युधिष्ठिर को तुम्हारे ही भरोसे पर छोड़कर जा रहा हूँ। इनकी भली-भाँति रक्षा करना।" |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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