महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
14.पांडवों की रक्षा
पांचों पांडव माता कुन्ती के साथ वारणावत के लिए चल पडे। जाने से पहले बड़ों को यथोचित आदर-सहित प्रणाम किया और समवयस्कों से वे प्रेम से मिले और विदा ली। उनके हस्तिनापुर छोड़कर वारणावत जाने की खबर पाकर नगर के लोग उनके साथ हो लिये बहुत दूर जाने के बाद युधिष्ठिर का कहा मानकर, नगरवासियों को लौट जाना पड़ा। विदुर ने उस समय युधिष्ठिर को सांकेतिक भाषा में चेतावनी देते हुए कहा- "जो राजनीति-कुशल शत्रु की चाल को समझ लेता है वही विपत्ति को पार कर सकता है। ऐसे तेज हथियार भी होते हैं जो किसी धातु के बने नहीं होते। ऐसे हथियारों से अपना बचाव करने का उपाय जो जान लेता है वह शत्रु से मारा नहीं जा सकता। जो चीज ठंडक दूर करती है और जंगलों का नाश करती है वह बिल के अंदर रहनेवाले चूहे को नहीं छू सकती। सेही-जैसे जानवर सुरंग खोदकर जंगली आग से अपना बचाव कर लेते है। बुद्धिमान लोग नक्षत्रों से दिशाएं पहचान लेते है।" दुर्योधन के षड्यन्त्र और उससे बचने का उपाय विदुर ने युधिष्ठिर को इस तरह गूढ़ भाषा में सिखा दिया कि जिसे दूसरे लोग न समझ सकें। युधिष्ठिर ने मां और भाइयों को जो कुछ विदुर ने कहा था सब बता दिया। दुर्योधन की बुरी नीयत के बारे में जानकर सबके मन उदास हो गये। बडे आनन्द के साथ वारणावत के लिए चले थे लेकिन यह सब सुनकर सबके मन में चिन्ता छा गई। वारणावत के लोग पांडवों के आगमन की खबर पाकर बडे खुश हुए और उनके वहाँ पहुँचने पर उन्होंने बडे ठाठ से उनका स्वागत किया। जब तक लाख का भवन बनकर तैयार हुआ पांडव दूसरे घरों में रहते रहे जहाँ पुरोचन ने पहले से उनके ठहरने का प्रबन्ध कर रक्खा था। लाख का भवन बनकर तैयार हो गया तो पुरोचन उन्हें उसमें ले गया। उसका नाम 'शिवम' रक्खा गया। शिवम का मतलब होता है कल्याण करने वाला। जिस भवन को नाशकारी योजना से प्रेरित होकर दुर्योधन ने बनवाया, उसका नाम पुरोचन ने 'शिवम' रक्खा। भवन में प्रवेश करते ही युधिष्ठिर ने उसे खूब ध्यान से देखा विदुर की बातें उन्हें याद थी। ध्यान से देखने पर युधिष्ठिर को पता चल गया कि यह घर जल्दी आग लगने वाली चीजों से बना हुआ है। युधिष्ठिर ने भीम को भी यह भेद बता दिया पर साथ ही उसे सावधान करते हुए कहा- "यद्यपि हमें यह साफ मालूम हो गया है कि यह स्थान खतरनाक है तो भी हमें विचलित न होना चाहिए। पुरोचन को इस बात का जरा भी पता न लगे कि उसके षड्यन्त्र का भेद हम पर खुल गया है। मौका पाकर हमें यहाँ से निकल भागना होगा। पर अभी हमें जल्दी से ऐसा कोई काम न करना चाहिए जिससे शत्रु के मन में जरा भी संदेह पैदा होने की सम्भावना हो। युधिष्ठिर की इस सलाह को भीमसेन सहित सब भाइयों ने तथा कुन्ती ने मान लिया और उसी लाखा के भवन में रहने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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