विरह-पदावली -सूरदास
राग कान्हरौ सूरदास जी कहते हैं- व्रज के लोगों ने (जब एक-दूसरे को) यह बात कहते हुए सुना (कि श्यामसुन्दर और बलराम मथुरा जा रहे हैं, तब सभी) स्त्री-पुरुष चकित होकर खड़े-के-खड़े रह गये और किसी से पाँच-सात करते (उन्हें जाने से रोकने का कोई उपाय करते) न बना। श्रीनन्द जी और यशोदा जी चकित होकर मन-ही-मन अकुलाने (व्याकुल होने) लगे तथा (श्रीनन्दादि का) सब (व्रजवासी) श्री श्यामसुन्दर और बलराम को संकेत कर-कर बुलाने लगे। किंतु (वे) परम ब्रह्म जो ठहरे, जो जानने में नहीं आता, जिसका कभी नाश नहीं होता और जो माया से रहित एवं उदासीन है। वे ऐसे बन गये, मानो (कभी) किसी से जान-पहचान ही न हो (अतः) सब डर मानने लगे। (श्याम-बलराम) न तो (किसी से) बोलते हैं और न (किसी की ओर) देखते ही हैं। (केवल) सुफलक-सुत (अक्रूर) में ही लिप्त रहकर उनके आगे यही कहते हैं कि ‘हमको राजा (कंस) ने प्रेमपूर्वक बुलाया है?’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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