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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
64. गीता में नवधा भक्ति
श्रीमद्भागवत में साधन भक्ति के नौ प्रकार बताये गये हैं, जो ‘नवधा भक्ति’ के नाम से प्रसिद्ध है[1] गीता में भगवान् ने इस नवधा भक्ति का क्रमपूर्वक वर्णन तो नहीं किया है, पर भगवान् की वाणी इतनी विलक्षण है कि इसमें अन्य साधनों के साथ-साथ नवधा भक्ति का भी वर्णन आ गया है; जैसे- 1. श्रवण- जो मनुष्य तत्त्वज्ञ जीवन्मुक्त महापुरुषों से सुनकर उपासना करते हैं, ऐसे वे सुनने के परायण हुए मनुष्य मृत्यु को तर जाते हैं।[2] 2. कीर्तन- भक्त प्रेमपूर्वक मेरे नाम, रूप, लीला आदि का कीर्तन करते हैं।[3] हे हृषीकेश! आपके नाम, रूप आदि का कीर्तन करने से यह संपूर्ण जगत् हर्षित हो रहा है और अनुराग (प्रेम) को प्राप्त हो रहा है।[4] 3. स्मरण- जो मनुष्य अनन्यचित्त होकर नित्य-निरंतर मेरा स्मरण करते हैं[5] महात्मा लोग अनन्य होकर मेरा स्मरण करते हुए मेरी उपासना करते हैं[6] तू निरंतर मुझमें चित्तवाला हो जा[7]; मुझ में चित्तवाला होने से तू मेरी कृपा से संपूर्ण विघ्नों को तर जाएगा।[8] 4. पादसेवन- भक्त प्रेमपूर्वक मुझे नमस्कार करते हुए मेरी उपासना करते हैं।[9] |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्। अर्चनं वंदनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम्।।(श्रीमद्भा. 7।5।23)
- ↑ (13।25)
- ↑ (9।14)
- ↑ (11।36)
- ↑ (8।14)
- ↑ (9।13)
- ↑ (18।57)
- ↑ (18।58)
- ↑ (9।24)
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