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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्णजन्मखण्ड: अध्याय 28
तदनन्तर सब गोप-किशोरियाँ पुनः रासमण्डल में गयीं। वहाँ के उद्यान में सब ओर तरह-तरह के फूल खिले हुए थे। उन्हें देखकर परमेश्वरी राधा ने कौतुकपूर्वक गोपियों को पुष्पचयन के लिये आज्ञा दी। कुछ गोपियों को उन्होंने माला गूँथने के काम में लगाया। किन्हीं को पान के बीड़े सुसज्जित करने में तथा किन्हीं को चन्दन घिसने में लगा दिया। गोपियों के दिये हुए पुष्पहार, चन्दन तथा पान को लेकर बाँके नेत्रों से देखती हुई सुन्दरी राधा ने मन्द हास्य के साथ श्यामसुन्दर को प्रेमपपूर्वक वे सब वस्तुएँ अर्पित कीं। फिर कुछ गोपियों को श्रीकृष्ण की लीलाओं के गान में और कुछ को मृदंग, मुरज आदि बाजे बजाने में उन्होंने लगाया। इस प्रकार रास में लीला-विलास करके राधा निर्जन वन में श्रीहरि के साथ सर्वत्र मनोहर विहार करने लगीं। रमणीय पुष्पोद्यान, सरोवरों के तट, सुरम्य गुफा, नदों और नदियों के समीप, अत्यन्त निर्जन प्रदेश, पर्वतीय कन्दरा, नारियों के मनोवांछित स्थान, तैंतीस वन–भाण्डीरवन, रमणीय श्रीवन, कदम्बवन, तुलसी वन, कुन्दवन, चम्पकवन, निम्बवन, मधुवन, जम्बीरवन, नारिकेलवन, पूगवन, कदलीवन, बदरीवन, बिल्ववन, नारंगवन, अश्वत्थवन, वंशवन, दाडिमवन, मन्दरावन, तालवन, आम्रचूतवन, केतकीवन, अशोकवन, खर्जूरवन, आम्रातकवन, जम्बूवन, शालवन, कटकीवन, पद्मवन, जातिवन, न्यग्रोधवन, श्रीखण्डवन और विलक्षण केसरवन– इन सभी स्थानों में तीस दिन-रात तक कौतूहलपूर्वक श्रृंगार किया, तथापि उनका मन तनिक भी तृप्त नहीं हुआ। अधिकाधिक इच्छा बढ़ती गयी, ठीक उसी तरह, जैसे घी की धारा पड़ने से अग्नि प्रज्वलित होती है। देवता, देवियाँ और मुनि, जो रास-दर्शन के लिये पधारे थे, अपने-अपने घर को लौट गये। उन सबने रास-रस की भूरि-भूरि प्रशंसा की और आश्चर्यचकित हो हर्ष का अनुभव करते हुए वे वहाँ से विदा हुए। बहुत-सी देवांगनाओं ने श्रीहरि के साथ प्रेम-मिलन की लालसा लेकर भारतवर्ष के श्रेष्ठ नरेशों के घर-घर में जन्म लिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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