श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
अष्टादश अध्याय
पंचैतानि महाबाहो कारणानि निबोध मे ।
उत्तर- ‘सर्वकर्मणाम्’ पद यहाँ शास्त्रविहित और निषिद्ध, सभी प्रकार के कर्मों का वाचक है तथा किसी कर्म का पूर्ण हो जाना यानी उसका बन जाना ही उसकी सिद्धि है। प्रश्न- ‘कृतान्ते’ विशेषण के सहित ‘साङ्ख्ये’ पद किसका वाचक है तथा उसमें ‘सम्पूर्ण कर्मों की सिद्धि के ये पाँच हेतु बतलाये गये हैं, उनको तू मुझसे ज्ञान’ इस कथन काक्या भाव है? उत्तर- ‘कृत’ नाम कर्मों का है; अतः जिस शास्त्र में उनके समाप्त करने का उपाय बतलाया गया हो, उसका नाम ‘कृतान्त’ है। ‘सांख्य’ का अर्थ ज्ञान है (सम्यक् ख्यायते ज्ञायते परमात्मा नेनेति साङ्ख्यं तत्त्वज्ञानम्) अतएव जिस शास्त्र में तत्त्वज्ञान के साधनरूप ज्ञानयोग का प्रतिपादन किया गया हो, उसको सांख्य कहते हैं। इसलिये यहाँ ‘कृतान्ते’ विशेषण सहित ‘साङ्ख्ये’ पद उस शास्त्र का वाचक समूह मालूम होता है, जिसमें ज्ञानयोग का भली-भाँति प्रतिपादन किया गया हो और उसके अनुसार समस्त कर्मों का प्रकृति द्वारा किये हुए एवं आत्मा को सर्वथा अकर्ता समझकर कर्मों का अभाव करने की रीति बतलायी गयी हो। इसीलिये यहाँ सम्पूर्ण कर्मों की सिद्धि के ये पाँच हेतु सांख्य-सिद्धान्त में बतलाये गये हैं, उनको तू मुझसे भली-भाँति जान- इस कथन से भगवान् ने यह भाव दिखलाया है कि आत्मा का अकर्तृत्व सिद्ध करने के लिये उपर्युक्त ज्ञानयोग का प्रतिपादन करने वाले शास्त्र में समस्त कर्मों की सिद्धि के जो पाँच हेतु बतलाये गये हैं- जिन पाँचों के सम्बन्ध से समस्त कर्म बनते हैं, उनको में तुझे बतलाता हूँ; तू सावधान होकर सुन। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज