श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
नवम अध्याय
अवजानन्ति मां मूढा मानुषी तनुमाश्रितम् ।
उत्तर- चौथे से छठे श्लोक तक भगवान् के जिस ‘सर्वव्यापकत्व’ आदि प्रभाव का वर्णन किया गया है, जिसको ‘ऐश्वर योग’ कहा है, तथा सातवें अध्याय के चौबीसवें श्लोक में जिस ‘परमभाव’ को न जानने की बात कही है, भगवान के उस सर्वोत्तम प्रभाव का ही वाचक यहाँ ‘परम्’ विशेषण सहित ‘भावम्’ पद हैं। सर्वाधार, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान् और सबके हर्ता-कर्ता परमेश्वर ही सब जीवों पर अनुग्रह करके सबको अपनी शरण प्रदान करने और धर्म-संस्थापन, भक्त-उद्धार आदि अनेकों लीलाकार्य करने के लिये अपनी योगमाया से मनुष्यरूप में अवतीर्ण हुए हैं[1]- इस रहस्य को न समझना और इस पर विश्वास न करना ही उस परम भाव को न जानना है। प्रश्न- ‘मूढाः’ पद किस श्रेणी के मनुष्यों को लक्ष्य करके कहा गया है और उनके द्वारा मनुष्य-शरीरधारी भूतमहेश्वर भगवान् की अवज्ञा करना क्या है? उत्तर- अगले श्लोक में जिनकों राक्षसों और असुरों की प्रकृति का आश्रय लेने वाले कहा है, सातवें अध्याय के पंद्रहवें श्लोक में जिनका वर्णन हुआ है और सोलहवें अध्याय के चौथे तथा सातवें से बीसवें श्लोक तक जिनके विविध लक्षण बतलाये गये हैं, ऐसे ही आसुरी सम्पदा वाले मनुष्यों के लिये ‘मूढाः’ पद का प्रयोग हुआ है। भगवान् के उपर्युक्त प्रभाव को न जानने के कारण ब्रह्मा से लेकर कीटपर्यन्त समस्त प्राणियों के महान् ईश्वर भगवान् को अपने-जैसा ही एक साधारण मनुष्य मानना एवं इसी कारण उनकी आज्ञा आदि का पालन न करना तथा उन पर अनर्गल दोषारोपण करना- यही उनकी अवज्ञा करना है।[2] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 4। 6, 7, 8
- ↑ पितामह भीष्म ने दुर्योधन को भगवान् श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में ब्रह्मा जी का और देवताओं का एक संवाद सुनाया है, उससे श्रीकृष्ण के प्रभाव का पता लगता है। ब्रह्मा जी देवताओं को सावधान करते हुए कहते हैं- ‘सब लोकों के महान् ईश्वर भगवान् वासुदेव तुम सबके पूजनीय हैं। उन महान् वीर्यवान् शंख-चक्र गदाधारी वासुदेव को मनुष्य समझकर कभी उनकी अवज्ञा न करना। वे ही परम गुह्य, परम पद, परम ब्रह्म और परम यशःस्वरूप हैं। वे ही अक्षर हैं, अव्यक्त हैं, सनातन हैं, परम तेज हैं, परम सुख हैं और परम सत्य हैं। देवता, इन्द्र और मनुष्य, किसी को भी उन अमितपराक्रमी प्रभु वासुदेव को मनुष्य मानकर उनका अनादर नहीं करना चाहिये। जो मूढ़मति लोग उन हृषीकेश को मनुष्य बतलाते हैं, वे नराधम हैं। जो मनुष्य इन महात्मा योगेश्वर को मनुष्य-देहधारी मानकर इनका अनादर करते हैं और जो इन चराचर के आत्मा श्रीवत्स के चिह्न वाले महान् तेजस्वी पद्मनाभ भगवान् को नहीं पहचानते, वे तामसी प्रकृति से युक्त हैं। जो इन कौस्तुभ किरीटधारी और मित्रों को अभय करने वाले भगवान् का अपमान करता है, वह अत्यन्त भयानक नरक में पड़ता है।
एवं विदित्वा तत्त्वार्थं लोकानामीश्वरेश्वरः।
वासुदेवो नमस्कार्यः सर्वलोकैः सुरोत्तमाः।। (महा., भीष्म. 66। 23)
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