सहज गीता -रामसुखदास पृ. 1

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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पहला अध्याय

(अर्जुन विषाद योग)

जब पाण्डवों का बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास समाप्त हो गया, तब उन्होंने पूर्व प्रतिज्ञा के अनुसार दुर्योधन से अपना आधा राज्य मांगा। परंतु दुर्योधन ने आधा राज्य तो क्या, तीखी सूई की नोक-जितनी जमीन को भी बिना युद्ध के देना स्वीकार नहीं किया। अतः पाण्डवों ने माता कुन्ती की आज्ञा के अनुसार युद्ध करने का निर्णय ले लिया। इस प्रकार पाण्डवों और कौरवों का युद्ध होना निश्चित हो गया और तदनुसार दोनों ओर से युद्ध की तैयारी होने लगी।
महर्षि वेदव्यास जी का धृतराष्ट्र पर बहुत स्नेह था। उस स्नेह के कारण उन्होंने धृतराष्ट्र के पास आकर कहा कि ‘युद्ध होना और उसमें क्षत्रियों का महान् संहार होना अवश्यम्भावी है, इसे कोई टाल नहीं सकता। यदि तुम युद्ध देखना चाहते हो तो मैं तुम्हें दिव्य दृष्टि दे सकता हूँ, जिससे तुम यहीं बैठे-बैठे युद्ध को अच्छी तरह से देख सकते हो।’ इस पर धृतराष्ट्र ने कहा कि ‘मैं जन्मभर अंधा रहा, अब अपने कुल के संहार को मैं देखना नहीं चाहता, परंतु युद्ध कैसे हो रहा है- यह समाचार जरूर सुनना चाहता हूँ।’ तब वेदव्यास जी ने कहा कि ‘मैं संजय को दिव्य दृष्टि देता हूँ, जिससे वह संपूर्ण युद्ध को, संपूर्ण घटनाओं को, सैनिकों के मन में आयी हुई बातों को भी जान लेगा, सुन लेगा, देख लेगा और सब बातें तुम्हें सुना भी देगा।’ ऐसा कहकर व्यासजी ने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की।
निश्चित समय के अनुसार कुरुक्षेत्र में युद्ध आरंभ हुआ। दस दिन तक संजय युद्ध स्थल में ही रहे। जब पितामह भीष्म बाणों के द्वारा रथ से गिरा दिये गये, तब संजय ने हस्तिनापुर में, जहाँ धृतराष्ट्र विराजमान थे, आकर धृतराष्ट्र को यह समाचार सुनाया। इस समाचार को सुनकर धृतराष्ट्र को बहुत दुख हुआ और वे विलाप करने लगे। फिर उन्होंने संजय से युद्ध का सारा समाचार सुनाने के लिए कहा। महाभारत में कुल अठारह पर्व हैं। उन पर्वों के अंतर्गत कई अवान्तर पर्व भी हैं। उनमें से ‘भीष्मपर्व’ के अंतर्गत यह ‘श्रीमद्भगवद्गीतापर्व’ है, जो भीष्मपर्व के तेरहवें अध्याय से आरंभ होकर बयालीसवें अध्याय में समाप्त होता है। भीष्म पर्व के चौबीसवें अध्याय तक संजय ने युद्ध संबंधी बातें धृतराष्ट्र को सुनायीं। पचीसवें अध्याय के आरंभ में धृतराष्ट्र के प्रश्न से श्रीमद्भगवद्गीता का आरंभ होता है।

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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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