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सहज गीता -स्वामी रामसुखदास
सत्रहवाँ अध्याय(श्रद्धात्रय विभाग योग)अर्जुन बोले- हे कृष्ण! जो मनुष्य शास्त्रविधि को तो नहीं जानते, पर श्रद्धापूर्वक देवताओं आदि का पूजन करते हैं, उनकी श्रद्धा सात्त्विकी (दैवी संपत्तिवाली) होती है या राजसी-तामसी (आसुरी संपत्ति वाली)?
श्रीभगवान् बोले- मनुष्यों की स्वभाव से उत्पन्न होने वाली श्रद्धा तीन प्रकार की होती है- सात्त्विकी, राजसी और तामसी। इन तीनों को तुम मुझसे अलग-अलग सुनो। हे भारत! मनुष्यों का अंतःकरण जैसा होता है, उसमें सात्त्विक, राजस या तामस जैसे संस्कार होते हैं, वैसी ही उनकी श्रद्धा होती है। कारण कि यह मनुष्य श्रद्धा प्रधान है। इसलिए उसकी जैसी श्रद्धा होती है, वैसा ही उसका स्वरूप होता है अर्थात् वैसी ही उसकी निष्ठा (स्थिति) होती है।
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