हरिगीता अध्याय 3:21-25

श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'

अध्याय 3 पद 21-25

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जो कार्य करता श्रेष्ठ जन, करते वही हैं और भी।
उसके प्रमाणित-पंथ पर, ही पैर धरते हैं सभी॥21॥

अप्राप्त मुझको कुछ नहीं, जो प्राप्त करना हो अभी।
त्रैलोक्य में करना न कुछ, पर कर्म करता मैं सभी॥22॥

आलस्य तज के पार्थ! मैं यदि कर्म में वरतूँ नहीं।
सब भाँति मेरा अनुकरण ही नर करेंगे सब कहीं॥23॥

यदि छोड़ दूँ मैं कर्म करना, लोक सारा भ्रष्ट हो।
मैं सर्व संकर का बनूँ कर्ता, सभी जग नष्ट हो॥24॥

ज्यों मूढ़ मानव कर्म करते, नित्य कर्मासक्त हो।
यों लोकसंग्रह-हेतु करता कर्म, विज्ञ विरक्त हो॥25॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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