पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
67. नाग से रक्षा
कर्ण ने स्वस्थ होकर अर्जुन पर प्रहार करना प्रारम्भ किया; किन्तु सव्यसाची उसका सफल प्रतिकार करते हुए अपने आघात को तीव्र करते जा रहे थे। अर्जुन ने शर वर्षा से कर्ण के रथ को लगभग ढक दिया। कर्ण को भगवान परशुराम से प्राप्त आथर्वणास्त्र का प्रयोग करना पड़ा अर्जुन के वाणों को नष्ट करने के लिए। इतना भयंकर संग्राम अर्जुन-कर्ण का उस समय छिड़ा हुआ था कि आकाश तथा दिशाएँ वाणों से भर उठीं। देवता तक इस अद्भुत युद्ध को देखने आकाश में आ गये। कर्ण के समीप एक सर्पमुख बाण था। उसे अत्युग्र विष में बुझाया गया था। यह एक प्रकार का अमोघ नागास्त्र ही था, जिसे काटा नहीं जा सकता था। कर्ण इस बाण को सदा स्वर्ण तरकश में चन्दन काष्ठ के चुरे में अकेला ही रखता था और प्रतिदिन उसकी पूजा करता था। आज के युद्ध में जब किसी प्रकार कर्ण अर्जुन को पराजित नहीं कर सका तो उसे अपने इस अमोघ सर्पमुख बाण का स्मरण हुआ। खाण्डव-दाह के समय अर्जुन ने नागराज तक्षक की पत्नी मार दिया था। वह अपने पुत्र अश्वसेन नाग को उल्टा निगलकर भाग रही थी। अर्जुन के बाण से फण कट जाने से वह तो मर गयी; किन्तु अश्वसेन की केवल पूंछ कटी थी और इन्द्र द्वारा की गयी प्रबलतम वर्षा का लाभ उठाकर वह माता के शरीर से निकल भागने में सफल हो गया था। नाग अत्यन्त क्रोधी होते हैं और अपनी शत्रुता प्रायः नहीं भूलते। अश्वसेन तभी से अर्जुन का प्रबलतम शत्रु हो गया था। अर्जुन को मार देने का अवसर ही देखता रहता था। उसकी एक बड़ी कठिनाई थी कि उसके पिता तक्षक इन्द्र के मित्र थे अर्जुन इन्द्र का अतिशय अनुग्रह भाजन हो गया था। इन्द्र ने अश्वसेन की भी बाण बचाकर भागने में सहायता की थी। इस उपकार तथा पिता की मैत्री को भूलकर वह अर्जुन को कभी काट भी ले तो देवराज अमृत के द्वारा उसे जीवित कर सकते थे अथवा अश्विनीकुमारों को उपचार के लिए भेज देते। अपनी माता को मारने वाले पार्थ से प्रतिशोध लेने का अवसर ही अश्वसेन ढूंढता रह गया। उसे यह कर्ण अर्जुन युद्ध का अवसर मिला। इस समय यदि वह कर्ण का बाण बनकर अर्जुन को अपने विष से भस्म कर देता है तो इन्द्र कोई भी सहायता नहीं कर सकेंगे; क्योंकि कर्ण को कुपित करके उसके पिता सूर्यनारायण को देवराज भी असंतुष्ट नहीं कर सकते। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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