पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
8. शोक समाचार
केवल ज्योतिष शास्त्र के समीप इसका उत्तर है कि जीवन में एक समय प्राय: एक ही प्रकार की शुभ अथवा अशुभ घटनाऐं क्यों सिमट आती हैं। क्योंकि ग्रह व्यक्ति के लिए एक समय एक प्रकार के ही रहते हैं, उनके अनुसार अनुकूल अथवा प्रतिकूल घटनाओं की बाढ़-सी आ जाती है।
श्रीकृष्णचन्द्र का आश्रय लेने वाले भी ग्रहों के कुप्रभाव से मुक्त हो जाते हैं; किन्तु वे लीला पुरुषोत्तम जब नर-नाट्य करने धरा पर उतरते हैं, उन पूर्ण पुरुष को जीवन की सभी दिशाएँ संनाथ करनी होती हैं। वे सब संयोग-वियोगों को सफल करते हैं। श्रीकृष्णचन्द्र ने पाण्डवों का समाचार लेने अक्रूर को हस्तिनापुर भेजा, तभी से दुर्योधनादि अधिक सतर्क हो गये थे। प्रजा पाण्डुपुत्रों के शील, विनय आदि सद्गुणों से अधिकाधिक उनके पक्ष में होती जाती थी। अक्रूर के आने से यह निश्चित हो गया कि वासुदेव अपनी बुआ के लड़कों का समर्थन करते हैं। कौरवों को उस समय मथुरा की चिन्ता नहीं थी। वहाँ मगधराज जरासन्ध बार-बार चढ़ाई कर रहा था। दुर्योधनादि को आशा नहीं थी कि मथुरा इस बार-बार आक्रमणों से उबर पायेगी; किन्तु जब यादव मथुरा को छोड़कर द्वारिका जैसे दुर्गम दुर्ग में जा बसे तो जरासन्ध भी वहाँ आक्रमण का साहस नहीं कर सका और कालयवन जैसे वीर को श्रीकृष्णचन्द्र ने समाप्त ही कर दिया था। रुक्मिणी-हरण के समय सिद्ध हो गया कि यादवों की शक्ति अपरिसीम है। जरासन्ध और उसके सब समर्थक मिलकर भी श्रीसंकर्षण के द्वारा संचालित उस नारायणी सेना का प्रचण्ड़ पराक्रम दो घड़ी भी सह नहीं सके थे। यादव महारथियों ने विरोधियों की सम्मिलित शक्ति को कुचलकर धर दिया था। अत: अब द्वारिका के समर्थन की उपेक्षा नहीं की जा सकती थी।। जो विरोधी इतना अनर्थ करने पर उतारू थे, वे कुछ भी कर सकते थे। उनके क्रूर प्रयत्नों से सुरक्षित रहने का उपाय था कि वे भ्रम में रहें और पाण्डवों को कुछ समय प्राप्त हो जाय अपने समर्थकों से सहायता पाने को। जिनकी इच्छा से सृष्टि का विधान संचालित होता है, संयोग उनकी सेवा में स्वयं जुट जाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज