गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय-18
मोक्ष-संन्यास-योग
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(78)
यत्र योगेश्वर: कृष्णो
यत्र पार्थो धनुर्धर: ।
तव श्रीर्विजयो भूति:
ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ॥
सुनिश्चित धारणा मेरी यही है
कि स्वयं योगेश्वर कृष्ण जिस ओर हैं।
धनुर्धर पार्थ भी तथाहि जिधर हैं
उधर ही विजज-श्री-भूति-ध्रुव-नीति है।।
इति श्रीहिन्दी गीताऽमृत मोक्ष-संन्यास-योग नाम
अठारहवां अध्याय।।18।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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