गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय-9
राजविद्या-राजगुह्य-योग
राजविद्या-राजगुह्य-योग
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सविज्ञान-ज्ञान अध्याय 7 श्लोक 2 में “ज्ञान-विज्ञान” का अर्थ देखो।
- ↑ वह व्यक्ति जो श्रद्धालु व जिज्ञासु हो और छिद्रान्वेशी न हो। (अध्याय 3 श्लोक 31; व अध्याय 4 श्लोक 34 देखो।)
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