गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
गीताज्ञानमनन्तशास्त्रनिचयं विद्वज्जनैर्भण्यते, अनादि वैदिक आर्य सनातन धर्म प्रकाशक सुर भारती गिरा ग्रथित संस्कृत साहित्य में अनेक गीतायें उपलब्ध हो रही हैं। महाभारत में भी श्रीमद्भागवद्गीता के अतिरिक्त अनुगीमा ब्राह्मण गीता आदि कई गीतायें और हैं। श्रीमद्भागवत में भी भिक्षु गीता, ऐल गीता आदि कई उपदेशात्मक गीता हैं। कूर्म पुराण के उत्तरार्ध में ग्यारह अध्यायों वाली एक ईश्वर गीता है, जिसमें प्रस्तुत गीता के भी कई श्लोक मिलते हैं। वह चार सौ छहत्तर श्लोकों का है, उसके अनन्तर कूर्म पुराण में ही एक तेवीस अध्यायों वाली वृहद्-व्यस गीता है जो चौदह सौ पाँच श्लोकों में पूर्ण हुई है। ईश्वर गीता के श्लोकों के उद्धरण श्रीशंकराचार्य ने कई स्थलों पर दिये हैं। इन सब गीताओं में सर्वोच्च महत्त्व श्रीमद्भगवद्गीता का है, यह निर्विवाद है। यही कारण है कि विभिन्न सम्प्रदायाचार्यों ने तथा विभिन्न सम्प्रदायों के विद्वानों ने अष्टावक्र आदि अन्य गीताओं पर टीका न लिखकर इसी पर टीकायें अधिक लिखी हैं। हिन्दी आदि अनेक भाषाओं में अनुवाद भी अधिक इसी का हुआ है। बहुत से विद्वानों ने इसके समश्लोकी हिन्दी पद्यानुवाद भी किये हैं, वर्तमान में हो भी रहे हैं और सम्भव है आगे भी ऐसी धारा चलती ही रहेगी। आज यदि इस गीता के व्याख्यानों की गणना की जाय तो एक नहीं, कई शतकों तक इसके व्याख्यान मिलेंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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