गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 126

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण


गीताऽमृत
अर्थात
(श्रीमद्भगवद्गीता का हिन्दी पद्यानुवाद)


अध्याय- 1
(अर्जुन विषाद-योग)
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धृतराष्ट्र उवाच-
(1)
धर्म-क्षेत्रे कुरुक्षेत्रे
समवेता युयुत्सवः।
मामकाः पाण्डवाश्चैव
किमकुर्वत संजय।।

धृतराष्ट्र ने कहा-
(1)
धर्मक्षेत्र[1] उस कुरुक्षेत्र में
युद्धेच्छा से हो एकत्र।
मेरे तथा पाण्डु-पुत्रों ने
क्या किया? हे संजय! तत्र।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1. कौरव पांडवों का पुरखा “कुरु” नाम का राजा था उसके नाम से ही कुरुक्षेत्र विख्यात है। राजा कुरु इस क्षेत्र (मैदान) में खेती किया करता था। इन्द्र ने कुरु को यह वरदान दिया था कि जो तप करता हुआ या युद्ध करता हुआ इस क्षेत्र में मारा जावेगा उसे स्वर्ग मिलेगा। इस वरदान के कारण यह क्षेत्र धर्म-क्षेत्र कहा गया है। आज का वर्तमान दिल्ली नगर इस ही क्षेत्र पर बसा हुआ है।

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1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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