- धातुश्च वशमंवेति पाशैरिव नर: सित:।[1]
मनुष्य रस्सी से बँधे हुए की भाँति विधाता के वश में रहता है।
- धात्रा कुसीदं सम्प्रदवर्तितम्।[2]
ब्याज का व्यवहार विधाता ने चलाया है।
मनुष्य रस्सी से बँधे हुए की भाँति विधाता के वश में रहता है।
ब्याज का व्यवहार विधाता ने चलाया है।