हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 45 श्लोक 1-19

Prev.png

हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: पञ्चत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

बलराम और श्रीकृष्ण का मथुरा में प्रत्यागमन और स्वागत

वैशम्पायन जी कहते हैं– जनमेजय! तदनन्तर वे दोनों भाई चेदिराज दमघोष के साथ मिलकर यात्रा करने लगे। मार्ग के नियमानुसार चलते हुए उन्होंने बीच–बीच में पांच रात निवास किया, किंतु दमघोष के साथ रहने से उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि हम एक ही रात मार्ग में रहे हैं। इस प्रकार परमानंद से संपन्न हो वे दोनों वीर वसुदेवकुमार साथ–साथ थोड़े ही समय में मथुरा नगरी में जा पहुँचे। उस समय उग्रसेन आदि सभी यादवों ने सेना सहित आगे आकर प्रसन्न चित्त से उन दोनों यदुनंदन वीरों का स्वागत किया। अनेक प्रकार के शिल्पों द्वारा जीवन–निर्वाह करने वाले नाना जाति के शिल्पी, प्रजा वर्ग, मंत्री तथा बालकों और वृद्धों सहित सारी मथुरापुरी यथोचित रीति से उनके स्वागत में जुटी थी।

आनंदवर्धक मंगल वाद्य बजने लगे। उन दोनों पुरुष प्रवर वीरों की स्तुति होने लगी। सब ओर की गलियां और सड़कें पताकाओं से अलंकृत हो उत्तम शोभा पाने लगीं। उन दोनों भाइयों के आने से इन्द्रोत्सव के समान सारी पुरी परम शोभा से संपन्न हो हर्ष से खिल उठी। सर्वत्र आनंद छा गया। सड़कों पर आनंद मग्न हुए गायक यादवों के प्रिय लगने वाली आशीर्वाद युक्त गाथाएं गा रहे थे। और सर्वत्र यह घोषणा करते थे कि 'यादवों! विश्वविख्यात वीर दोनों भाई श्रीकृष्ण और बलराम अब अपने नगर में आ गए हैं, अत: सब लोग निर्भय होकर सुखपूर्वक क्रीड़ा करो।' बलराम और श्रीकृष्ण के आ जाने पर उस मथुरा पुरी में कोई भी दीन, मलिन अथवा उदासचित्त नहीं दिखाई देता था। पक्षी सुमधुर बोली बोलते थे, गौ, घोड़े और हाथी भी बहुत प्रसन्न थे तथा स्त्रियों और पुरुषों के मन को भी बड़ा ही सुख मिला।

शीतल एवं सुखदायिनी हवाएं चलने लगीं, दसों दिशाओं की धूल उड़ गई और मंदिरों में स्थित संपूर्ण देवता भी बड़े प्रसन्न हुए। सत्ययुग आने पर इस जगत में जो–जो लक्षण एवं वृतांत घटित होते हैं, वे सब-के-सब श्रीकृष्ण एवं बलराम के आगमन पर प्रत्यक्ष दिखाई देने लगे। तदनन्तर मंगलमय पुण्य–मुहूर्त में वे दोनों शत्रु मर्दन वीर उस अश्व युक्त रथ के द्वारा मथुरापुरी में प्रविष्ट हुए। उस रमणीय पुरी में प्रवेश करते समय श्रीकृष्ण और बलराम के पीछे समस्त यादव उसी प्रकार चले, जैसे देवता इंद्र के पीछे चलते हैं। जैसे चंद्रमा और सूर्य सुमेरु पर्वत की गुफा में प्रवेश करते हों, उसी प्रकार वे दोनों यदुनंदन वीर पिता वसुदेव के घर में प्रविष्ट हुए।

उस समय उन दोनों के मुख पर प्रसन्नता छा रही थी। वहाँ अपने घर में आयुधों को रखकर वे दोनों यदुकुलतिलक वसुदेवपुत्र स्वेच्छानुसार विचरते हुए आनंदमग्न रहने लगे। तदनन्तर वसुदेव जी के दोनों चरणों को दबाकर राजा उग्रसेन तथा अन्य प्रधान यदुवंशियों का यथोचित सत्कार करने के पश्चात उन सबके द्वारा स्वयं भी अभिनंदित हो, वे दोनों भाई प्रसन्न मन से माता के ही महल में चले गए। इस प्रकार एक ही तत्त्व के बने और एक ही उद्देश्य की सिद्धि के लिए प्रकट हुए वे दोनों श्रीकृष्ण और बलराम राजा उग्रसेन के अनुगामी होकर कुछ काल तक वहाँ सुख से रहे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अंतर्गत विष्णु पर्व में बलराम और श्रीकृष्ण का मथुरा में प्रत्यागमन विषयक पैंतालीसवां अध्याय पूरा हुआ।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः