हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकाशीतितम अध्याय: श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद
उमा देवी कहती हैं- जो पतिव्रता स्त्री गुणवान बान्धवों की इच्छा रखती है वह प्रत्येक सप्तमी को सदा एक समय भोजन करके व्यतीत करे। तत्पश्चात वर्ष पूर्ण होने पर ब्राह्मण को दक्षिणा सहित एक सुवर्णमय वृक्ष का दान करे। इससे वह शुभ गुण सम्पन्न बन्धु-बान्धवों से युक्त होती है। जो नारी सदा उत्तम करंज (कंजा या करज) वृक्ष के नीचे दीप दान करती है उसे वर्ष पूर्ण होने पर सुवर्णमय दीपक का दान करना चाहिये। शुभे! वह स्त्री अपनी सुन्दर कान्ति से पति की प्राण वल्लभा बन जाती है और पुत्रवती होती है। वह सपत्नियों में सबसे ऊँचा स्थान बना लेती है और दीपक की भाँति प्रकाशित होती रहती है। सौम्ये! जो स्त्री प्रतिदिन सबके भोजन के पश्चात शेष अन्न का आहार करती है, किसी के हृदय को चोट नहीं पहुँचाती, बिना खाये नहीं रहती और सदा पातिव्रत्य में स्थित रहती है, सदा शौचाचार का पालन करती है, कभी रूखी बाती नहीं बोलती, प्रतिदिन सास-ससुर की सेवा में तत्पर रहती है, उस सती स्त्री को व्रतों से क्या करना है? अथवा उपवासों से क्या प्रयोजन है? जो सदा पति को ही देवताओं की भाँति पूजती है और सत्य-धर्म तथा सद्गुणों से सम्पन्न है (उसका जीवन सफल है)। सुन्दर कटिप्रदेश वाली पतिव्रते! जो सती-साध्वी नारी कभी दैवयोग से विधवा हो जाय, उसके लिए पुराणों में जो धर्म बताया गया है, उसका वर्णन करती हूँ। वह पति के चित्र में अथवा उसकी मिट्टी की प्रतिमा में पति की भावना करके सदा उसी की पूजा करे और सत्पुरुषों के धर्म का निरन्तर स्मरण रखे। उत्तम व्रत का पालन करने वाली वह स्त्री प्रतिदिन उसी (चित्रगत या प्रतिमागत) पति से व्रत, उपवास और विशेषत: भोजन के लिये आज्ञा मांगे। यदि वह अपने पति का उल्लंघन नहीं करती तो पतिलोक में ही जाती है और स्वर्ग में पतिव्रता शाण्डिली की भाँति सदा सूर्य के समान प्रकाशित होती रहती है। आज से समस्त देवताओं की पत्नियां जो पुराण-प्रतिपादित सनातन पुण्यक विधि है, उसका दर्शन करेंगी। धर्माता नारद मुनि भी व्रत-उपवास की सम्पूर्ण पौराणिक विधि के ज्ञाता होंगे। श्रेष्ठ सोमकुमारी! अदिति देवी, इन्द्राणि और तुम भी अपनी तपस्या से उस विधि को जानोगी। पुण्यकों और व्रतों के प्रवर्तन (आरम्भ) में सदा तुम सद्गुणवती देवियों का सती नारियों द्वारा कीर्तन होगा। महात्मा विष्णु के सभी अवतारों में जो उनकी पत्नियाँ होंगी, वे उपवास-व्रत एवं पुण्यों की सम्पूर्ण सनातन विधि को यहाँ सदा ही यथावत रूप से जानेंगी। सभी धर्मों अथवा स्त्री धर्मों में पतिभक्ति, दुराचार का अभाव और दुर्वचन का प्रयोग करना- इन तीनों की विशेष रूप से प्रशंसा की जाती है। नारद जी कहते हैं- देवि! महादेवी पार्वती के ऐसा कहने पर वे साध्वी तपोधना देवियां हर्ष में भरकर उन हर प्रिया पार्वती को प्रणाम करके अपने-अपने स्थान को चली गयीं। धर्मचारिणी अदिति ने जो व्रत किया, उसे सुनो- उमा ने पहले जो व्रत की विधि बतायी थी, उस सबका पालन अदिति देवी ने किया। उन्होंने महर्षि कश्यप को पारिजात में बांधकर मेरे हाथ में दे दिया। इसी का नाम ‘अदितिव्रतक’ है। अदिति ने जिस तरह व्रतक (व्रत सम्बन्धी दान) दिया था, उसी प्रकार सत्यभामा ने भी दिया। नित्य धर्मपरायणा सावित्री ने भी वही व्रत किया और उसी तरह दान दिया था। उन्हीं समुचित साधनों से संयुक्त होने के कारण यह संध्याकाल अत्यन्त उत्कृष्ट माना गया है। संध्या काल आने पर जगह-जगह किया गया पूजन, नमस्कार और जप द्विगुण माना गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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