हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 27 श्लोक 1-18

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: सप्‍तविंश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद


श्रीकृष्‍ण और बलराम का मथुरा में प्रवेश, उनके द्वारा रजक का वध, माली को वरदान, कुब्‍जा पर कृपा और कंस के धनुष का भंजन

वैशम्‍पायन जी कहते हैं- जनमेजय! वे सभी अमित तेजस्‍वी यात्री अपने श्रेष्‍ठ रथ को जोतकर श्रीकृष्‍ण और संकर्षण के साथ राजा कंस के द्वारा सुरक्षित रमणीय मथुरापुरी में जा पहुँचे। संध्‍याकाल में जबकि सूर्यदेव लाल हो गये थे, उन सबने उस रमणीय मथुरा-नगरी में प्रवेश किया। बुद्धिमान अक्रूर सूर्यतुल्‍य तेजस्‍वी श्रीकृष्‍ण और संकर्षण दोनों वीरों को पहले अपने घर में ले गये। वे दोनों भाई उत्तम कान्ति से प्रकाशित हो रहे थे। उस समय दानपति अक्रूर ने कंस से भयभीत होकर उनसे कहा- तात! तुम दोनों को अभी वसुदेव के घर में जाने की इच्‍छा त्‍याग देनी चाहिये। क्‍योंकि तुम्‍हारे कारण ही कंस बूढ़े वसुदेव को घर से निकालता है और ‘तुम्‍हें यहाँ नहीं रहना चाहिये’ ऐसा कहकर उन्‍हें दिन-रात डांटता रहता है। अत: तुम दोनों को पिता के लिये उत्तम सुख की व्यवस्‍था करनी चाहिये। जिस तरह उन्‍हें सुख मिले, जैसे उनका हित हो, वही कार्य करना चाहिये। तब श्रीकृष्‍ण ने उनसे कहा- 'धर्मनिष्ठ वीर! साधुपुरुष! यदि आप स्‍वीकार करें तो हम दोनों भाई मथुरा नगर और इसके राजमार्गों को देखते हुए यहाँ से जायँ और अ‍तर्कित रूप से कंस के ही घर पहुँच जायँ।'

वैशम्‍पायन जी कहते हैं- जनमेजय! अक्रूर भी मन से ही अविनाशी भगवान श्रीकृष्ण को नमस्‍कार करके प्रसन्न चित्त से कंस के पास गये। अक्रूर की आज्ञा लेकर वे दोनों वीर श्रीकृष्‍ण और बलराम नगर देखने के लिये वहाँ से इस तरह प्रस्थित हुए, मानों युद्ध की इच्‍छा रखने वाले दो गजराज आलान से[1] छूट निकले हों। उन दोनों ने रास्‍ते में एक रजक (धोबी) को देखा, जो कपड़ों में रंग कर रहा था। उसे देखकर वे दोनों भाई उससे सुन्‍दर वस्त्र मांगने लगे। रजक ने उन दोनों से कहा- 'अरे तुम दोनों किसके (और कहाँ के) वनेचर हो? जो मूर्खतावश निर्भय होकर राजा के कपड़े मांग रहे हो! मैं तो विभिन्न देशों के बने हुए राजा कंस के सैकड़ों वस्‍त्रों को रंगता हूँ और उन वस्‍त्रों पर विशेषत: उनकी इच्‍छा के अनुसार रंग देता हूँ। तुम दोनों किसके बेटे हो? तुम तो वन में पैदा हुए और वन्‍य पशुओं के साथ ही बड़े हो। आज इन बहुत-से रंगीन कपड़ों को देखकर तुम्‍हारे मन में इनके प्रति लोभ उत्‍पन्न हो गया है?

अहो! यह बड़े आश्‍चर्य की बात है। जान पड़ता है, तुमने अपने जीवन का मोह त्‍याग दिया है, तभी तो यहाँ आ गये। तुम दोनों मूर्ख हो। तुम्‍हारी बुद्धि गँवारों जैसी है, इसीलिये तो राजा के कपड़े मांगने की इच्‍छा करते हो।' यह सुनकर श्रीकृष्‍ण उस मन्‍दबुद्धि, अरिष्टग्रस्‍त, मूर्ख तथा जहरीली बात बोलने वाले रजक पर कुपित हो उठे। उन्‍होंने उसके माथे पर एक तमाचा जड़ दिया। वह तमाचा क्‍या था, वज्र था। उसके लगते ही रजक का मस्‍तक फट गया और वह प्राणहीन होकर पृथ्‍वी पर गिर पड़ा। उसे मारा गया देख उसकी स्त्रियां चीखने-चिल्‍लाने लगी। वे बाल खोले विलाप करती हुई तुरंत राजा कंस के दरबार में गयी। इधर वे दोनों भाई सुन्‍दर वस्त्रधारण करके फूलों की माला लेने के लिये उस गली में गये, जहाँ मालाएं बिकती थीं। वे ऐसे लगते थे मानों दो गजराज उन फूलों की सुगन्‍ध पाकर वहाँ जा पहुँचे हों।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जिसमें हाथी बांधा जाता है, उस खम्‍भे को आलान कहते हैं।

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