हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 47 श्लोक 1-11

Prev.png

हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: सप्तचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-11 का हिन्दी अनुवाद

श्रीकृष्ण का यादवों के साथ रुक्मिणी-स्वयंवर के अवसर पर कुण्डिनपुर में जाना तथा राजा कैशिक द्वारा उनका सत्कार

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! इसी बीच में जगत् में होने वाली प्रवृत्तियों अथवा घटनाओं की सूचना देने वाले सब लोग मथुरा में आये और लोकपालों के भवन की भाँति शोभा पाने वाले चक्रधारी श्रीकृष्ण के गृह में एकत्र हुए। वे लोग विनाशकारी युद्ध का समाचार बताना चाहते थे। उनके आ जाने पर आपस में संकेत पाकर समस्त श्रेष्ठ यादव श्रीकृष्ण की सभा में जुट गये। समस्त प्रधान यादवों के उस सभा में आ जाने पर वे समाचार या सन्देश लाने वाले मनुष्य राजाओं के विनाश का कारणभूत वचन इस प्रकार बोले-

‘जनार्दन! अनेक देशों के विषाहार्थी पृथ्वीपतियों, शासकों एवं नरेशों का समागम होने वाला है। कमलनयन! भोजपुत्र रुक्मी का निमन्त्रण पाकर अनेक जनपदों के राजा बड़ी उतावली के साथ वहाँ कुण्डिनपुर में जा रहे हैं। जनार्दन! वहाँ लोगों के मुँह से यह बात स्पष्ट रूप से सुनी जाती है कि रुक्मी की जो पहली बहन है, जिसका नाम रुक्मिणी है, उसका वहाँ स्वयंवर होने वाला है। इसीलिये ये नरेशगण सेनाओं सहित वहाँ पधार रहे हैं।

यदुनन्दन! आज से तीसरे दिन सुवर्णमय आभूषणों से विभूषित रहने वाली उस त्रिलोकसुन्दरी रुक्मिणी का स्वयंवर होगा। हाथी, घोड़े और रथ से यात्रा करके वहाँ एकत्र हुए महामनस्वी नरेशों के सैकड़ों शिविर हमें वहाँ देखने को मिलेंगे। जो सिंह और बाघ के समान अपने बल के घमण्ड में भरे रहते हैं, मतवाले हाथियों के समान चलते हैं, सदा युद्ध से ही प्रेम रखते हैं और आपस में एक दूसरे के प्रति अमर्ष से भरे रहते हैं, ऐसे नरेशों पर शीघ्र विजय पाने के लिये बहुत-से भूपाल अपने सैन्य समूह के साथ संगठित होकर वहाँ रुक्मिणी को पाने की इच्छा से रुके हुए हैं। यदुनन्दन! क्या हम लोग एकान्त में रहने वाले कोल-भील हैं, जो ऐसे अवसर पर उत्साहहीन हो बैठे रहेंगे, हम भी अवश्य उत्साहपूर्वक वहाँ चलेंगे’।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः