विरह-पदावली -सूरदास
राग सारंग (सूरदास जी के शब्दों में एक गोपी कह रही है- अरी) कोकिल! तू श्यामसुन्दर की-सी वाणी सुना, यह (स्वरूपरूपी) उपहार देकर श्यामसुन्दर को मथुरा से इस व्रज में ले आ। जिस सुयश को पाने कि लिये चतुर लोग तन, मन, धन और सारी सम्पत्ति दे देते हैं, वह सुयश केवल शब्द के मोल बिक रहा है, उसे तू आज क्यों नहीं खरीद लेती? चतुर व्यक्ति का काम यही है कि कुछ दूसरे का उपकार किया जाय। फिर यह सुअवसर कहाँ मिलेगा कि बिना वसन्त-ऋतु के ही ऋतुराज हो जाय (श्याम का आना तो वसन्त के बिना ही ऋतुराज का सुख देगा)। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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