गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 2
श्रीकृष्णावतार की पूर्वार्द्धगत लीलाओं का संक्षेप से वर्णन सूतजी कहते हैं- इस प्रकार गर्गमुनि के मुख से श्रीगर्ग संहिता की कथा सुनकर राजा वज्रनाभ मन-ही-मन बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने गुरु गर्गाचार्य के चरणों में प्रणाम करके उनसे इस प्रकार कहा- ‘प्रभो ! मुनिश्रेष्ठ ! आज मैंने आपके मुखारविन्द से जो भगवान श्रीकृष्णचन्द्र का चारू चरित्र सुना है, उससे मेरे सारे दु:ख दूर हो गये। कृपानाथ ! मैं इस कथा-श्रवण से अतृप्त रह गया हूं; अत: मेरा मन पुन: श्रीहरि के यश को सुनने के लिए उत्सुक है। आप कृपापूर्वक श्रीकृष्ण के परम उत्तम चरित्र का वर्णन कीजिये। मुने ! द्वारका में महाराज उग्रसेन ने पहले अश्वमेध का यज्ञ का अनुष्ठान किया था, उसके विषय में कुछ बातें मैंने पूर्वकाल में सुनी थी। आप उस अश्वमेध यज्ञ का ही सम्पूर्ण चरित्र या वृतान्त मुझ से कहिये। मुनीश्वर ! करूणामय गुरुजन अपने सेवापरायण शिष्यों तथा पुत्रों से उनके पूछे बिना भी गूढ़ रहस्य कर बातें बता दिया करते हैं’। सूतजी कहते हैं- यदुकुलगुरु गर्गमुनि वज्रनाभ का ऐसा वचन सुनकर बड़े प्रसन्न हुए और श्रीहरि के युगलचरणारविन्दों का स्मरण करते हुए उन राजाधिराज से इस प्रकार बोले। गर्गजी ने कहा- यादवश्रेष्ठ ! तुम धन्य हो; क्योंकि भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के चरणों में तुम्हारी ऐसी अविचल भक्ति हुई हैं, जो दूसरे मनुष्यों के लिए दुर्लभ है। वह भक्ति तुम्हें सहज सुलभ है, यह बड़े सौभाग्य की बात है। राजन ! इस विषय में मैं तुमसे प्राचीन इतिहास बता रहा हूँ, उसे सुनो। उसका श्रवण कर लेने मात्र से मनुष्य समस्त पापों से छुटकारा पा जाता है। राजन ! द्वार पर पापियों के भार से पीड़ित हुई वसुन्धरा ने ब्रह्माजी के सामने अपना दु:ख प्रकट किया। उसे सुनकर ब्रह्माजी श्रीहरि की शरण में गये और वहाँ उन्होंने पृथ्वी का सारा कष्ट कह सुनाया। वह सब सुनकर श्रीराधिकावल्लभ श्रीकृष्ण ने वसुधा को आश्वासन दिया और देवताओं के सहयोग से उसका भार उतारने का निश्चय किया। तदनन्तर मथुरा में वसुदेव का देवकी के साथ विवाह हुआ; फिर कंस को सावधान करने वाली आकाशवाणी हुई। देवकी के पुत्र से अपने वध की बात जानकर कंस ने क्रमश: उसके छ: पुत्र मार डाले। नरेश्वर ! कंस को भय होने लगा और उस भय के आवेश में उसे सर्वत्र कृष्ण ही कृष्ण दीखने लगे। इसके बाद भगवान ने योगमाया को आज्ञा दी, जिसके अनुसार उसने देवकी के गर्भ का संकर्षण करके रोहिणी के गर्भ मे उसे स्थापित कर दिया और स्वयं वह यशोदा के गर्भ से कन्या के रूप में प्रकट हुई। इधर भगवान देवकी के गर्भ में आविष्ट हुए और ब्रह्मा आदि देवताओं ने आकर उनकी स्तुति की। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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