गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 14
अनिरुद्ध का सेना सहित अश्व की रक्षा के लिए प्रयाण, माहिष्मतीपुरी के राजकुमार का अश्व को बांधना तथा अनिरुद्ध का राजा इंद्रनील से युद्ध के लिए उद्यत होना श्रीगर्गजी कहते हैं– नरेश्वर ! तदनन्तर राजा उग्रसेन की आज्ञा से अनिरुद्ध से मिलने के लिए वसुदेव, बलराम, श्रीकृष्ण, प्रद्युम्न तथा अन्य सब यादव रथों द्वारा नगर से बाहर निकले। वहाँ जाकर उन्होंने सेना से घिरे हुए अनिरुद्ध को देखा। भगवान श्रीकृष्ण ने पहले राजसूय यज्ञ के अवसर पर प्रद्युम्न को जिस नीति का उपदेश दिया था, वही सारी नीति उस समय अनिरुद्ध से कह सुनाई। राजन ! भगवान श्रीकृष्ण का वह उपदेश सुनकर अनिरुद्ध आदि समस्त यादवों ने प्रसन्नतापूर्वक उसे शिरोधार्य किया। तत्पश्चात् मुनिवर गर्ग, अन्यान्य मुनि वृंद वसुदेव, बलराम, श्रीकृष्णचंद्र तथा प्रद्युम्न को अनुरुद्ध ने प्रणाम किया। वसुदेव, बलराम, श्रीकृष्ण और प्रद्युम्न आदि यादव अनिरुद्ध को शुभाशीर्वाद देकर रथों द्वारा पुरी में लौट आए। नरेश्वर ! अनिरुद्ध का अश्व देश–देश में गया, किंतु श्रीकृष्ण के भय से कोई भूपाल उसे पकड़ने का साहस न कर सके। जहां–जहाँ घोड़ा गया, वहां–वहाँ सैनिकों सहित अनिरुद्ध उसके पीछे शत्रुओं को जीतने के लिए गए। इस प्रकार विभिन्न राज्यों का अवलोकन करता हुआ अनिरुद्ध का वह अश्व नर्मदा के तट पर विराजमान माहिष्मतीपुरी को गया। उस पुरी में चारों वर्णों के लोग भरे थे और वह प्रस्तर निर्मित दुर्ग से मंडित थी। भगवान शंकर के गगनचुम्बी मंदिर उस पुरी की शोभा बढ़ाते थे। पांच योजन विस्तृत माहिष्मती पुरी राजा इंद्र नील से पिरपालित थी। शाल, ताल, तमाल, वट, बिल्व और पीपल आदि वृक्ष उसकी श्रेय वृद्धि कर रहे थे। बहुत से पोखरें और बावड़ियां वहाँ शोभा पाती थीं, जिनमें पक्षी कलरव करते थे। ऐसी नगर की को वहाँ के उपवन में पहुँच कर अश्व ने देखा। राजा इंद्र नील के बलवान पुत्र का नाम नीलध्वज था। वह सहस्रों वीरों के साथ शिकार खेलने के लिए पुरी से बाहर निकला। उस राजकुमार ने भाल में बंधे हुए पत्र के साथ श्याम कर्ण घोड़े को देखा, जो फूलों से भरे उपवन में कदंब के नीचे खड़ा था। उसकी अंग कान्ति गाय के दूध की भाँति श्वेत थी। अनेक चामरों से अलंकृत वह अश्व वहाँ घूमता हुआ आ गया था। उसके शरीर पर स्त्रियों के कुंकुम लिप्त हाथों की छाप शोभा दे रहे थे तथा वह मोती की मालाओं से मंडित था। उस घोड़े को देख राजकुमार नील ध्वज ने अपने वाहन से उतर कर बड़े हर्ष के साथ खेल–खेल में ही उसके सिर के बाल पकड़ लिए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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