गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-11 : अध्याय 14
प्रश्न-उत्तर
प्रवचन : 1
श्रीमती सरला बसन्त कुमार बिरला द्वारा पूज्य स्वामी जी का स्वागत पूज्य स्वामीजी महाराज को श्रद्धासहित हमारा प्रणाम। आप प्रतिवर्ष यहाँ पधारकर हम पर अत्यन्त अनुग्रह करते हैं। गतवर्ष गीता के बारहवें अध्याय का सुन्दर निरूपण हुआ था। इस वर्ष इस श्रृंखला में नयी कड़ी जुड़ेगी। गीता के चौथे अध्याय में भगवान ने कहा है- तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया। हम लोग अपनी जिज्ञासाएँ पूज्य महाराजश्री के समक्ष प्रस्तुत करेंगे तथा वे अपनी अमृतवाणी और उत्तम विचारों से उनका समाधान करेंगे। हम प्रश्न करने वालों का स्तर तो पहली कक्षा का है तथा पूज्य स्वामीजी हमारे देश के सबसे उच्च कोटि के विद्वान् हैं। इस अन्तर को पूज्य स्वामीजी अपने उदात्त भाव से ठीक करेंगे, यही मैं आशा करती हूँ। आप सब महानुभावों का अपनी तरफ से स्वागत करती हूँ। स्वामी प्रबुद्धानन्दजी के सहयोग से यह यज्ञ निर्विघ्न समाप्त होगा। जिज्ञासाओं को एकत्रित करने में पं. विष्णुकान्तजी शास्त्री एवं श्री बिन्नाणीजी ने सहयोग दिया है; इसके लिए मैं उन्हें धन्यवाद देती हूँ। ईश्वर पूज्य स्वामीजी महाराज को उत्तम स्वास्थ्य एवं दीर्घायु प्रदान करें। आप सबका जीवन मंगलमय रहे तथा हमें इस प्रकार के सत्संग का सुअवसर हमेशा प्राप्त होता रहे। अब मैं शास्त्री जी से अनुरोध करूँगी कि वे अपना कार्य आरम्भ करें। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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