गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-3 : अध्याय 6
प्रवचन : 5
गीता कहती है कि आप अपने जीवन के व्यवहार में एक ऐसी बुद्धि बनाइये, जो अनुकूल-प्रतिकूल समय पर बिगड़े नहीं, एकरस रहे। जिसकी बुद्धि बिगड़ गयी उसका जीवन बिगड़ गया। जीने की कला, उत्तम-से-उत्तम कला यह है कि किसी भी प्रसंग पर बुद्धि भ्रष्ट न हो। आपको किसी ने गाली दी और आप भी गाली के बदले गाली देने लगे तो समझिये कि आप की बुद्धिमत्ता ने आपका साथ छोड़ दिया और आप उसी स्तर में चले गये जैसा स्तर गाली देने वाला का है। यह तो गाली की बात है। नीतिशास्त्र में ऐसा लिखा है कि यदि कोई ज्यादा तारीफ़ करने लगे तो समझना कि वह अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहता है। दिल्लीश्वरो वा जगदीश्वरो वा- दिल्ली के बादशाह या जगत के स्वामी - कहने वाले जो खुशामदी लोग हैं, वे आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों अपनी तारीफ करने की क़ीमत ले लेंगे। खुशामदी लोग जिसकी तारीफ़ करते हैं, उसका महान् शोषण करते हैं। यह बात हमने राजा-रईसों के संग रहने पर देखी है। तो होना यह चाहिए। कि तारीफ़ सुनकर आपकी बुद्धि फूल न जाये और गाली सुनकर आपकी बुद्धि गाली न देने लगे। आप अपने सामने वाले की बराबारी में न जायें, अपनी बुद्धि को सम रखें। यही गीता द्वारा समर्थित शिष्टानुशिष्ट जीवन की पद्धति है।
विशिष्ट अर्थात् विशेष शिष्ट व्यक्ति वही है जिसकी बुद्धि प्रत्येक परिस्थिति में सम रहती है, बिगड़ती नहीं बुद्धि स्वर्ग में उड़ नहीं जाती और नरक में गिर नहीं पड़ती। वह नशे में धुत शराबियों की तरह न तो बहिश्त देखने लगती है और न दोज़ख से डरती है। इस संसार में तरह-तरह के लोग होते हैं। और तरह-तरह के लोग मिलते रहते हैं परन्तु उनको देखकर अथवा उनके सम्पर्क में आकर हमारी बुद्धि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। हमारी बुद्धि का जो सौन्दर्य है वह उसकी समता में है। ‘स’ संस्कृत भाषा में एक अर्थ होता है सौन्दर्य और ‘म’ माने शोभा। तो ‘सम’ का यह तात्पर्य है कि आपकी बुद्धि का सौन्दर्य लुप्त न होने पावे, वह सुन्दर रहे। बुद्धि तब बिगड़ती है, जब गुस्सा आता है। उस समय आपको तकलीफ तो होगी, लेकिन शीशे के सामने जाकर खड़े हो जाइये, फिर देखिये कि आपका चेहरा कैसा हो गया है, आपकी भौंह कैसी हो गयी हैं, आपकी नाक कैसी हो गयी है। गुस्से के समय आपका चेहरा पहले लाल होता है, पीछे काला हो जाता है। आपकी बुद्धि जब अपना सौन्दर्य खो देती है तब आपका शरीर भी अपना सौन्दर्य खो देता है। अगर आपकी बुद्धि बिगड़ जायेगी तो आपका योगी होना भी कोई काम नहीं करेगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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