श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
29. पारिजात-पुष्प
'मेरा यह ज्येष्ठ पुत्र बहुत असंयमी हो गया है।' प्रजापति महर्षि कश्यप ने वृहस्पति के द्वारा नवीन सम्वाद पाकर खिन्न होकर कहा- 'मैं यहाँ उसी के अमंगल-निवारण के लिए तप करने आया हूँ और उसने यह नवीन दुस्साहस कर लिया।' 'इन्द्र का अमंगल?' देवगुरु चौंके। अपने यजमान की सुरक्षा का दायित्व है उन पर। 'उसने लज्जावश आपको सूचना नहीं दी। महर्षि देवशर्मा की पत्नी को प्राप्त करने की इच्छा की इन्द्र ने, और उन्होंने इसे शाप दे दिया।' 'आपकी आराधना असफल तो नहीं हो सकती।' देवगुरु ने जानना चाहा कि क्या परिणाम हुआ। 'वे आशुतोष वृषभध्वज कल ही प्रकट होकर आश्वासन दे गये हैं।' कश्यप बोले- 'उन्होंने कहा है कि इन्द्र और उपेन्द्र शान्त होकर मित्र बन जायेंगे; किन्तु इन्द्र की पराजय निश्चित है। ब्राह्मण के शाप को अन्यथा नहीं किया जा सकता। पारिजात श्रीकृष्ण ले जायेंगे।' तनिक रुककर कश्यप ने अनुरोध पूर्वक कहा- 'आप शक्र का इस आपत्ति में साथ न छोड़ें। उसे सद्बुद्धि दें। मैं श्रीकृष्ण से युद्ध करने से उसे रोकूँगा।' महर्षि कश्यप वहीं ध्यानमग्न हो गये और देवगुरु अमरावती लौट आये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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