गोलोक खण्ड
|
1
|
नारद जी के द्वारा अवतार-भेद का निरूपण
|
1
|
2
|
ब्रह्मादि देवों द्वारा गोलोक धाम का दर्शन
|
5
|
3
|
भगवान श्रीकृष्ण के श्रीविग्रह में श्रीविष्णु आदि का प्रवेश; देवताओं द्वारा भगवान की स्तुति; भगवान का अवतार लेने का निश्चय; श्रीराधा की चिंता और भगवान का उन्हें सांत्वना-प्रदान
|
11
|
4
|
नन्द आदि के लक्षण; गोपीयूथ का परिचय; श्रुति आदि के गोपीभाव की प्राप्ति में कारणभूत पूर्व प्राप्त वरदानों का विवरण
|
15
|
5
|
भिन्न-भिन्न स्थानों तथा विभिन्न वर्गों की स्त्रियों के गोपी होने के कारण एवं अवतार-व्यवस्था का वर्णन
|
21
|
6
|
कालनेमि के अंश से उत्पन्न कंस के महान बल पराक्रम और दिग्विजय का वर्णन
|
24
|
7
|
कंस की दिग्विजय-शम्बर, व्योमासुर, बाणासुर, वत्सासुर, कालयवन तथा देवताओं की पराजय
|
29
|
8
|
सुचन्द्र और कलावती के पूर्व-पुण्य का वर्णन, उन दोनों का वृषभानु तथा कीर्ति के रूप में अवतरण
|
35
|
9
|
गर्गजी की आज्ञा से देवक का वसुदेव जी के साथ देवकी का विवाह करना; विदाई के समय आकाशवाणी सुनकर कंस का देवकी को मारने के लिये उद्यत होना और वसुदेव जी की शर्त पर जीवित छोड़ना
|
38
|
10
|
कंस के अत्याचार; बलभद्र जी का अवतार तथा व्यासदेव द्वारा उनका स्तवन
|
41
|
11
|
भगवान वसुदेव देवकी में आवेश; देवताओं द्वारा उनका स्तवन; आविर्भावकाल; अवतार विग्रह की झाँकी; वसुदेव देवकी कृत भगवत-स्तवन; भगवान द्वारा उनके पूर्वजन्म के वृतांत वर्णन पूर्वक अपने को नन्द भवन में पहुँचाने का आदेश; कंस द्वारा नन्द कन्या योगमाया से कृष्ण के प्राकट्य की बात जानकर पश्चात्ताप पूर्वक वसुदेव देवकी को बन्धन मुक्त करना, क्षमा माँगना और दैत्यों को बाल वध का आदेश देना।
|
45
|
12
|
दोनों ओर के स्वजनों को देखकर उनके मरण की आशंका से अर्जुन का शोकाकुल होना और कुलनाश, कुलधर्मनाश तथा वर्णसंकरता के विस्तार आदि दुष्परिणामों को बतलाते हुए धनुष-बाण छोड़कर बैठ जाना
|
54
|
13
|
पूतना का उद्धार
|
58
|
14
|
शकट भंजन; उत्कच और तृणार्वत का उद्धार; दोनों के पूर्वजन्मों का वर्णन
|
61
|
15
|
यशोदा द्वारा श्रीकृष्ण के मुख में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का दर्शन; नन्द और यशोदा के पूर्व-पुण्य का परिचय; गर्गाचार्य का नन्द-भवन में जाकर बलराम और श्रीकृष्ण के नामकरण संस्कार करना तथा वृषभानु के यहाँ जाकर उन्हें श्रीराधा-कृष्ण के नित्य-सम्बन्ध एवं माहात्म्य का ज्ञान कराना
|
68
|
16
|
भाण्डीर वन में नन्दजी के द्वारा श्री राधाजी की स्तुति: श्री राधा और श्रीकृष्ण का ब्रह्माजी के द्वारा विवाह; ब्रह्माजी के द्वारा श्रीकृष्ण का स्तवन तथा नवदम्पति की मधुर लीलाएँ
|
75
|
17
|
श्रीकृष्ण की बाल-लीला में दधि-चोरी का वर्णन
|
82
|
18
|
नन्दा, उपनन्दत और वृषभानुओं का परिचय तथा श्रीकृष्ण की मृदभक्षण लीला
|
86
|
19
|
दामोदर कृष्ण, का उलूखल- बन्धतन तथा उनके द्वारा यमलार्जुन वृक्षों का उद्धार
|
88
|
20
|
दुर्वासा द्वारा भगवान की माया का एवं गोलोक में श्रीकृष्ण का दर्शन तथा श्रीनन्द नन्दरनस्तोात्र
|
91
|
वृन्दावन खण्ड
|
1
|
सन्नन्दका गोपों को महावन से वृन्दावन में चलने की सम्मति देना और व्रज मण्डल के सर्वाधिक माहात्म्य का वर्णन करना
|
95
|
2
|
गिरिराज गोवर्धन की उत्पत्ति तथा उसका व्रजमण्डहल में आगमन
|
100
|
3
|
श्री यमुना जी का गोलोक से अवतरण और पुन: गोलोक धाम में प्रवेश
|
104
|
4
|
श्री बलराम और श्रीकृष्ण के द्वारा बछड़ों का चराया जाना तथा वत्सासुर का उद्धार
|
107
|
5
|
वकासुर का उद्धार
|
109
|
6
|
अघासुर का उद्धार और उसके पूर्वजन्म का परिचय
|
113
|
7
|
ब्रह्मा जी के द्वारा गौओं, गोवत्सों एवं गोप-बालकों का हरण
|
113
|
8
|
ब्रह्मा जी के द्वारा श्रीकृष्ण के सर्वव्यापी विश्वात्मा स्वरूप का दर्शन
|
115
|
9
|
ब्रह्माजी के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति
|
119
|
10
|
यशोदा जी की चिंता; नन्द द्वारा आश्वासन तथा ब्राह्मणों को विविध प्रकार के दान देना; श्री बलराम तथा श्रीकृष्ण का गोचारण
|
124
|
11
|
धेनुकासुर का उद्धार
|
127
|
12
|
श्रीकृष्ण द्वारा कालियदमन तथा दावानल-पान
|
130
|
13
|
मुनिवर वेदशिरा और अश्वशिरा का परस्पर के शाप से क्रमश: कालियनाग और काकभुशुण्ड होना तथा शेषनाग का भूमण्डल को धारण करना
|
132
|
14
|
कालिय का गरूड़ के भय से बचने के लिये यमुना-जल में निवास का रहस्य
|
135
|
15
|
श्रीराधा का गवाक्ष मार्ग से श्रीकृष्ण के रूप का दर्शन करके प्रेम-विव्हल; ललिता का श्रीकृष्ण से राधा की दशा का वर्णन करना और उनकी आज्ञा के अनुसार लौटकर श्रीराधा को श्रीकृष्ण - प्रीत्यर्थ सत्कर्म करने की प्रेरणा देना
|
138
|
16
|
तुलसी का माहात्म्य, श्रीराधा द्वारा तुलसीसेवन-व्रत का अनुष्ठान तथा दिव्य तुलसी देवी का प्रत्यक्ष प्रकट हो श्रीराधा को वरदान देना
|
142
|
19
|
श्रीकृष्ण का गोपदेवी के रूप से वृषभानु-भवन में जाकर श्रीराधा से मिलना
|
144
|
19
|
श्रीकृष्ण के द्वारा गोपदेवी रूप से श्रीराधा के प्रेम की परीक्षा तथा श्रीराधा को श्रीकृष्ण का दर्शन
|
147
|
19
|
रासक्रीड़ा का वर्णन
|
151
|
20
|
श्रीराधा और श्रीकृष्ण के परस्पर श्रृंगार-धारण, रास, जलविहार एवं वनविहार का वर्णन
|
154
|
21
|
गोपंगनाओं के साथ श्रीकृष्ण का वन-विहार, रास-क्रीड़ा; मानवती गोपियों को छोड़कर श्रीराधा के साथ एकांत-विहार तथा मानिनी श्रीराधा को भी छोड़कर उनका अंतर्धान होना
|
157
|
22
|
गोपांगनाओं श्रीकृष्ण का स्तवन; भगवान का उनके बीच में प्रकट होना; उनके पूछने पर हंसमुनि के उद्धार की कथा सुनाना तथा गोपियों को क्षीरसागर श्वेतद्वीप के नारायण स्वरूपों का दर्शन कराना
|
160
|
23
|
कंस और शंखचूड़ में युद्ध तथा मैत्री का वृत्तांत; श्रीकृष्ण द्वारा शंखचूड़ का वध
|
163
|
24
|
रास-विहार तथा आसुरि मुनि का उपाख्यान
|
166
|
25
|
शिव और आसुरि का गोपीरूप से रासमण्डल में श्रीकृष्ण का दर्शन और स्तवन करना तथा उनके वरदान से वृन्दावन में नित्य-निवास पाना
|
169
|
26
|
श्रीकृष्ण का विरजा के साथ विहार; श्रीराधा के भय से विरजा का नदी रूप होना, उसके सात पुत्रों का उसी शाप से सात समुद्र होना तथा राधा के शाप से श्रीदामा का अंशत: शंखचूड़ होना
|
172
|
गिरिराज खण्ड
|
1
|
श्रीकृष्ण के द्वारा गोवर्धन पूजन का प्रस्ताव और उसकी विधि का वर्णन
|
175
|
2
|
गोपों द्वारा गिरिराज पूजन का महोत्व
|
178
|
3
|
श्रीकृष्ण का गोवर्धन पर्वत को उठाकर इन्द्र के द्वारा क्रोधपूर्वक करायी गयी घोर जलवृष्टि से रक्षा करना
|
180
|
4
|
इन्द्र द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति तथा सुरभि ओर ऐरावत द्वारा उनका अभिषेक
|
182
|
5
|
गोपों का श्रीकृष्ण के विषय में संदेह मूलक विवाद तथा श्रीनन्दराज एवं वृषभानुवर के द्वारा समाधान
|
185
|
6
|
गोपों का वृषभानुवर के वैभव की प्रशंसा करके नन्दनन्दन की भगवत्ता परीक्षण करने के लिये उन्हें प्रेरित करना और वृषभानुवर का कन्या के विवाह के लिये वर को देने के निमित्त बहुमूल्य एवं बहुसंख्यक मौक्कित-हार भेजना तथा श्रीकृष्ण की कृपा से नन्दराज का वधू के लिये उनसे भी अधिक मौक्किकराशि भेजना
|
188
|
7
|
गिरिराज गोवर्धन सम्बन्धी तीर्थों का वर्णन
|
191
|
8
|
विभिन्न तीर्थों में गिरिराज के विभिन्न अंगों की स्थित का वर्णन
|
194
|
9
|
गिरिराज गोवर्धन की उत्पत्ति का वर्णन
|
195
|
10
|
गोवर्द्धन-शिला के स्पर्श से एक राक्षस का उद्धार तथा दिव्यरूपधारी उस सिद्ध मुख से गोवर्द्धन की महिमा का वर्णन
|
199
|
11
|
सिद्ध के द्वारा अपने पूर्वजन्म के वृत्तान्त का वर्णन तथा गोलोक से उतरे हुए विशाल रथ पर आरूढ़ हो उसका श्रीकृष्ण-लोक में गमन
|
202
|
माधुर्य खण्ड
|
1
|
श्रुतिरूपा गोपियों का वृतान्त, उनका श्रीकृष्ण और दुर्वासा मुनि की बातों में संशय तथा श्रीकृष्ण द्वारा उसका निराकरण
|
204
|
2
|
ऋषिरूपा गोपियों का उपाख्यान- वंगदेश के मंगल-गोप की कन्याओं का नन्दराज के व्रज में आगमन तथा यमुनाजी के तट पर रास मण्डल में प्रवेश
|
209
|
3
|
मैथिलीरूपा गोपियों का आख्यान, चीरहरणलीला और वरदान प्राप्ति
|
210
|
4
|
कोसल प्रान्तीय स्त्रियों का व्रज में गोपी होकर श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य भाव से प्रेम करना
|
212
|
5
|
अयोध्यावासिनी गोपियों के आख्यान के प्रसंग में राजा विमल की संतान के लिये चिन्ता तथा महामुनि याज्ञवल्क्य द्वारा उन्हें बहुत-सी पुत्री होने का विश्वास दिलाना
|
213
|
6
|
अयोध्यापुरवासिनी स्त्रियों का राजा विमल के यहाँ पुत्री रूप से उत्पन्न होना, उनके विवाह के लिये राजा का मथुरा में श्रीकृष्ण को देखने के निमित्त दूत भेजना, वहाँ पता न लगने पर भीष्मजी से अवतार-रहस्य जानकर उनका श्रीकृष्ण के पास दूत प्रेषित करना
|
215
|
7
|
राजा विमल का संदेश पाकर भगवान श्रीकृष्ण का उन्हें दर्शन और मोक्ष प्रदान करना तथा उनकी राजकुमारियों को साथ लेकर व्रजमण्डल में लौटना
|
218
|
8
|
यज्ञसीतास्वरूपा गोपियों के पूछने पर श्रीराधा का श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिये एकादशी-व्रत का अनुष्ठान बताना ओर उसके विधि, नियम और माहात्म्य का वर्णन करना
|
215
|
9
|
पूर्वकाल में एकादशी का व्रत करके मनोवांछित फल पाने वाले पुण्यात्माओं का परिचय तथा यज्ञसीता स्वरूपा गोपिकाओं को एकादशी व्रत के प्रभाव से श्रीकृष्ण सांनिध्य की प्राप्ति
|
224
|
10
|
पुलिन्द कन्यारूपिणी गोपियों के सौभाग्य का वर्णन
|
226
|
11
|
लक्ष्मी जी की सखियों का वृषभानुओं के घरों में कन्या रूप से उत्पन्न होकर माघ मास के व्रत से श्रीकृष्ण को रिझाना और पाना
|
228
|
12
|
दिव्यादिव्य, त्रिगुणवृत्तिमयी भूतल-गोपियों का वर्णन तथा श्रीराधा सहित गोपियों की श्रीकृष्ण के साथ होली
|
230
|
13
|
देवांगना स्वरूपा गोपियाँ
|
234
|
14
|
कौरव-सेना से पीड़ित रंगोजि गोप का कंस की सहायता से व्रजमण्डल की सीमा पर निवास तथा उसकी पुत्री रूप में जालंधरी गोपियों का प्राकट्य
|
233
|
15
|
बर्हिष्मतीपुरी आदि की वनिताओं का गोपीरूप में प्राकट्य तथा भगवान के साथ उनका रासविलास, मांधाता और सौभरिके संवाद में यमुना-पञ्चांग की प्रस्तावना
|
236
|
16
|
श्री यमुना-कवच
|
238
|
17
|
श्री यमुना का स्त्रोत
|
239
|
18
|
यमुना जी के जप और पूजन के लिये पटल और पद्धति का वर्णन
|
241
|
19
|
यमुना-सहस्त्रनाम
|
243
|
20
|
बलदेवजी के हाथ से प्रलम्बासुर का वध तथा उसके पूर्वजन्म का परिचय
|
295
|
21
|
दावानल से गौओं और ग्वालों का छुटकारा तथा विप्रपत्नियों को श्रीकृष्ण का दर्शन
|
297
|
22
|
श्रीकृष्ण का नन्दराज को वरूणलोक से ले आना और गोप-गोपियों को वैकुण्ठधाम का दर्शन कराना
|
299
|
23
|
अम्बिका वन में अजगर से नन्दराज की रक्षा तथा सुदर्शन-नामक विद्याधर का उद्धार
|
300
|
24
|
अरिष्टासुर और व्योमासुर का वध तथा माधुर्य खण्ड का उपसंहार
|
301
|
मथुरा खण्ड
|
1
|
कंस का नारद जी के कथनानुसार बलराम और श्रीकृष्ण को अपना शत्रु समझकर वसुदेव-देवकी को कैद करना, उन दोनों भाइयों को मारने की व्यवस्था में लगना तथा उन्हें मथुरा ले आने के लिये अक्रूरजी को नन्द के व्रज में जाने की आज्ञा देना
|
303
|
2
|
केशी का वध
|
306
|
3
|
अक्रूर का नन्दग्राम-गमन, मार्ग में उनकी बलराम-श्रीकृष्ण भेंट तथा उन्हीं के साथ नन्द-भवन में प्रवेश, श्रीकृष्ण से बातचीत और उनका मथुरा-गमन के लिये निश्चय, मथुरा-यात्रा की चर्चा सब ओर फैल जाने पर गोपियों का विरह की आशंका से उद्विग्न हो उठना
|
308
|
4
|
श्रीकृष्ण का गोपियों के घरों में जाकर उन्हें सान्त्वना देना तथा मार्ग में रथ रोककर खड़ी हुई गोपांगनाओं को समझाकर उनका मथुरापुरी की ओर प्रस्थित होना
|
311
|
5
|
अक्रूर को भगवान श्रीकृष्ण के परब्रह्मस्वरूप का साक्षात्कार तथा उनकी स्तुति, श्रीकृष्ण का ग्वालबालों के साथ पुरी-दर्शन के लिये जाना, नागरी, स्त्रियों का उनपर मोहित होना तथा भगवान के हाथ से एक रजक का उद्धार
|
314
|
6
|
सुदामा माली और कुब्जा पर कृपा, धनुर्भंग तथा मथुरा की स्त्रियों पर श्रीकृष्ण के मधुर-मोहन रूप का प्रभाव
|
318
|
7
|
मल्ल क्रीड़ा महोत्सव की तैयारी, रंगद्वार पर कुवलया पीड़ का वध तथा श्रीकृष्ण और बलराम का चाणूर और मुष्टिक के साथ मल्लयुद्ध में प्रवृत्त होना
|
322
|
8
|
चाणूर-मुष्टिक आदि मल्लों का तथा कंस और उसके भाइयों का वध
|
326
|
9
|
श्रीकृष्णा द्वारा वसुदेव देवकी की बन्धन से मुक्ति, श्रीकृष्ण और बलराम का गुरूकुल में विद्याध्ययन तथा गुरूदक्षिणा के रूप में गुरु के मरे हुए पुत्र को यमलोक से लाकर लौटाना, श्रीक्रूर को हस्तिनापुर भेजना तथा कुब्जा का मनोरथ पूर्ण करना
|
330
|
10
|
धोबी, दर्जी और सुदामा माली के पूर्वजन्म का परिचय
|
334
|
11
|
कुब्जा और कुवलयापीड के पूर्वजन्मगत वृतान्त का वर्णन
|
336
|
12
|
चाणूर आदि मल्ल, कंस के छोटे भाइयों तथा पंचजन दैत्य के पूर्वजन्मगत वृतान्त का वर्णन
|
338
|
13
|
श्रीकृष्ण की आज्ञा से उद्धव का व्रज में जाना और श्रीदामा आदि सखाओं का उनसे श्रीकृष्ण विरह के दु:ख का निवेदन
|
340
|
14
|
उद्धवका श्रीकृष्ण-सखाओं को आश्वासन, नन्द और यशोदा से बातचीत तथा उनकी प्रेम-लक्षणा-भक्ति से चकित होकर उद्धव का उन्हें श्रीकृष्ण के चरित्र सुनाना
|
343
|
15
|
गोपांग्नाओं के साथ उद्धव का कदली-वन में जाना और वहाँ उनकी स्तुति करके श्रीकृष्ण द्वारा भेजे गये पत्र अर्पित करना
|
347
|
16
|
उद्धव द्वारा श्रीराधा तथा गोपीजनों को आश्वासन
|
351
|
17
|
श्रीकृष्ण को स्मरण करके श्रीराधा तथा गोपियों के करूण उद्गार
|
353
|
18
|
गोपियों के उद्गार तथा उनसे विदा लेकर उद्धव का मथुरा को लौटना
|
357
|
19
|
श्रीकृष्ण का उद्धव के साथ व्रज में प्रत्यागमन और यमुना-तट पर गौओं का उनके रथ को चारों ओर से घेर लेना, गोपों के साथ उनकी भेंट, नन्दगाँव से नन्दरायजी एवं यशोदा-का गोपों एवं गोपियों को लेकर गाजे-बाजे के साथ उनकी अगवानी के लिये निकलना तथा सबके साथ श्रीकृष्ण का नन्द नगर में प्रवेश
|
360
|
20
|
श्रीकृष्ण का कदली-वन मे श्रीराधा और गोपियों के साथ मिलन, रासोत्सव तथा उसी प्रसंग मे रोहिताचल पर महामुनि ऋभु का मोक्ष
|
363
|
21
|
श्रीकृष्ण का की द्रवरूपता के प्रसंग में नारदजी का उपाख्यान
|
367
|
22
|
नारद का अनेक लोकों में होते हुए गोलोक में पहुँचकर भगवान श्रीकृष्ण के समक्ष अपनी कला का प्रदर्शन करना तथा श्रीकृष्ण का द्रवरूप होना
|
370
|
23
|
श्री कृष्ण का व्रज से लौटकर मथुरा में आगमन
|
710
|
24
|
बलदेव जी द्धारा कोल दैत्य का वध; उनकी गंगा तटवर्ती तीर्थों में यात्रा; माण्डूक देव को वरदान और भावी वृत्तान्त की सूचना देना; फिर गंगा के अन्यान्य तीर्थों में स्नान-दान करके मथुरा में लौट जाना
|
375
|
25
|
मथुरापुरी का माहात्म्य मथुरा खण्ड का उपसंहार
|
382
|
द्वारका खण्ड
|
1
|
जरासंध का विशाल सेना के साथ मथुरा पर आक्रमण; श्री कृष्ण और बलराम द्वारा उसकी सेना का संहार; मगधराज की पराजय तथा श्रीकृष्ण–बलराम का मथुरा में विजयी होकर लौटना
|
385
|
2
|
मथुरा पर जरासंध और कालयवन का आक्रमण; भगवान का युद्ध छोड़कर एक गुफा में जाना और वहां गये हुए कालयवन को मुचुकुन्द के दृष्टिपात से दग्ध कराना; मुचुकुन्द को वर देकर बदरिकाश्रम ओर भेजना और स्वयं म्लेच्छ–सेना का संहार करके जरासंध के सामने से भागकर श्रीकृष्ण–बलराम का प्रवर्षणगिरि होते हुए द्वारका पहँचना और जरासंध का उस पर्वत को जलाकर मगध को लौट जाना
|
388
|
3
|
बलदेवजी का रेवती के साथ विवाह
|
390
|
4
|
श्रीकृष्ण को रुक्मिणी का संदेश; ब्राह्मण सहित श्रीकृष्ण कुण्डिनपुर में आगमन; कन्या और वर के अपने-अपने घरों में मंगलाचार; शिशुपाल के साथ आयी हुई बारात को विदर्भराज का ठहरने के लिये स्थान देना
|
392
|
5
|
रुक्मिणी की चिन्ता; ब्राह्मण द्वारा श्रीहरि के शुभागमन का समाचार पाकर प्रसन्नता; भीष्म द्वारा बलराम और श्रीकृष्ण का सत्कार; पुरवासियों की कामना; रुक्मिणी की कुलदेवी के पूजन के लिये यात्रा, देवी से प्रार्थना तथा सौभाग्यवती स्त्रियों से आशीर्वाद प्राप्त्िा
|
395
|
6
|
श्रीकृष्ण द्वारा रुक्मिणी का अपहरण तथा यादव-वीरों के साथ युद्ध में विपक्षी राजाओं की पराजय
|
398
|
7
|
श्रीकृष्ण के हाथों से रुक्मिणी की पराजय तथा द्वारका में रुक्मिणी और श्रीकृष्ण का विवाह
|
401
|
8
|
श्रीकृष्ण का सोलह हजार एक सौ आठ रानियों के साथ विवाह और उनकी संतति का वर्णन; प्रद्यम्न का प्राकट्य तथा रति और रुक्म–पुत्री के साथ उनका विवाह
|
404
|
9
|
द्वारकापुरी के पृथ्वी पर आने का कारण; राजा आनर्त की तपस्या और उन पर भगवान श्रीकृष्ण की कृपा
|
406
|
10
|
द्वारकापुरी, गोमती और चक्रतीर्थ का महात्म्य; कुबेर के वैष्णवयज्ञ में दुर्वासा मुनि द्वारा घण्टानाद और पार्श्वमौलि को शाप
|
408
|
11
|
गज और ग्राह बने हुए मन्त्रियों का युद्ध और भगवान विष्णु के द्वारा उनका उद्धार
|
411
|
12
|
महामुनि त्रित के शाप से कक्षीवान का शंक रूप होकर सरोवर में रहना और श्रीकृष्ण के द्वारा उसका उद्धार होना; शंखोद्धार-तीर्थ की महिमा
|
413
|
13
|
प्रभास, सरस्वती, बोधप्पिल और गोमती सिन्धु संगम का माहात्म्य
|
415
|
14
|
द्वारका क्षेत्र के समुद्र तथा रैव तक पर्वत का माहात्म्य
|
417
|
15
|
यज्ञतीर्थ, कपिटंकतीर्थ, नृगकूप, गोपीभूमि तथा गोपीचन्दन की महिमा; द्वारका की मिट्टी के स्पर्श से एक महान पापी का उद्धार
|
420
|
16
|
सिद्धाश्रम की महिमा के प्रसंग में श्रीराधा और गोपांगनाओं के साथ श्रीकृष्ण और उनकी सोलह हजार रानियों का समागम
|
423
|
17
|
सिद्धाश्रम में राधा और श्रीकृष्ण का मिलन; श्रीकृष्ण की रानियों का श्रीराधा को अपने शिविर में बुलाकर उनका सत्कार करना तथा श्रीहरि द्वारा उनकी उत्कृष्ट प्रीति का प्रकाशन
|
426
|
18
|
सिद्धाश्रम में व्रजांगनाओं तथा सोलह सहस्त्र रानियों के साथ श्यामसुन्दर की रासक्रीड़ा का वर्णन तथा श्रीराधा के मुख से वृन्दावन के रास की उत्कृष्टता का प्रतिपादन
|
429
|
19
|
लीला-सरोवर, हरिमन्दिर, ज्ञानतीर्थ, कृष्ण-कुण्ड, बलभद्र-सरोवर, दानतीर्थ, गणपति तीर्थ और मायातीर्थ आदि का वर्णन
|
432
|
20
|
इन्द्रतीर्थ, ब्रह्मतीर्थ, सूर्यकुण्ड नीललोहित-तीर्थ और सप्तसामुद्रक-तीर्थ का माहात्म्य
|
434
|
21
|
तृतीय दुर्ग के द्वार-देवताओं के दर्शन और पूजन की महिमा तथा पिण्डारक-तीर्थ का माहात्म्य
|
435
|
22
|
सुदामा ब्राह्मण का उपाख्यान
|
437
|
विश्वजित खण्ड
|
1
|
राजा मरुत्त का उपाख्यान
|
442
|
2
|
राजा उग्रसेन के राजसूय-यज्ञ का उपक्रम, प्रद्युम्न का दिग्विजय के लिये बीड़ा उठाना और उनका विजयाभिषेक
|
445
|
3
|
प्रद्युम्न के नेतृत्व में दिग्विजय के लिये प्रस्थित हुई यादवों की गजसेना, अश्वसेना तथा योद्धाओं का वर्णन
|
447
|
4
|
सेना सहित यादव-वीरों की दिग्विजय के लिये यात्रा
|
450
|
5
|
यादव-सेना की कच्छ और कलिंग देश पर विजय
|
452
|
6
|
प्रद्युम्न मरुधन्व देश के राजा गय को हराकर मालव नरेश तथा माहिष्मती पुरी के राजा से बिना युद्ध किये ही भेंट प्राप्त करना
|
454
|
7
|
गुजरात-नरेश ऋष्य पर विजयप्राप्त करके यादव-सेना का चेदिदेश के स्वामी दमघोष के यहां जाना; राजा का यादवों से प्रेमपूर्ण बर्ताव करने का निश्चय, किंतु शिशुपाल का माता-पिता के विरुद्ध यादवों से युद्ध का आग्रह
|
457
|
8
|
शिशुपाल के मित्र द्युमान तथा शक्त का वध
|
460
|
9
|
भानु के द्वारा रंग-पिंग का वध; प्रद्युम्न और शिशुपाल का भयंकर युद्ध तथा चेदिदेश पर प्रद्युम्न की विजय
|
462
|
10
|
यादव-सेना का कोंकण, कुटक, त्रिगर्त, केरल, तैलंग, महाराष्ट्र और कर्नाटक आदि देशों पर विजय प्राप्त कर करुष देश में जाना तथा वहां दन्तवक्र का घोर युद्ध
|
465
|
11
|
दन्तवक्र की पराजय तथा करुष देश पर यादव-सेना की विजय
|
469
|
12
|
उशीनर आदि देशों पर प्रद्युम्न की विजय तथा उनकी जिज्ञासा पर मुनिवर अगस्त्य द्वारा तत्वज्ञान प्रतिपादन
|
472
|
13
|
शाल्व आदि देशों तथा द्विविद वानर पर प्रद्युम्न की विजय; लंका से विभिषण का आना और उनहें भेंट समर्पित करना
|
476
|
14
|
सह्यपर्वत के निकट दत्तात्रेय का दर्शन और उपदेश तथा महेन्द्र पर्वत पर परशुरामजी के द्वारा यादव सेना का सत्कार और श्रेष्ठ भक्त के स्वरूप का निरूपण
|
480]]
|
15
|
उड्डीश-डामर देश के राजा, वंगदश के अधिपति वीर धन्वा तथा असम के नरेश पुण्ड्र पर यादव-सेना की विजय
|
484
|
16
|
मिथिला के राजा धृति द्वारा ब्रह्मचारी के रूप में पधारे हुए प्रद्युम्न का पूजन, उन दोनों का शुभ संवाद; प्रद्युम्न का राजा को प्रत्यक्ष दर्शन दे, उनसे पूजित हो शिविर में जाना
|
487
|
17
|
मगध देश पर यादवों की विजय तथा मगधराज जरासंध की पराजय
|
491
|
18
|
गया, गोमती, सरयू एवं गंगा के तटवर्ती प्रदेश, काशी, प्रयाग एवं विन्ध्यदेश में यादव-सेना की यात्रा; श्रीकृष्ण के अठारह महारथी पुत्रों का हस्तलाघव तथा विवाह ;मथुरा, शूरसेन जनपदों एवं नन्द–गोकुल में प्रद्युम्न आदि का समादर
|
496
|
19
|
यादव-सेना का विस्तार; कौरवों के पास उद्धव का दूत के रूप में जाकर प्रद्युम्न का संदेश सुनाना; कौरवों के कटु उत्तर से रुष्ट यादवों की हस्तिनापुर पर चढ़ाई
|
500
|
20
|
कौरवों की सेना का युद्धभूमि में आना; दोनों ओर के सैनिकों का तुमुल युद्ध और प्रद्युम्न के द्वारा दुर्योधन की पराजय
|
503
|
21
|
कौरव तथा यादव वीरों का घमासान युद्ध; बलराम और श्रीकृष्ण का प्रकट होकर उनमें मेल कराना
|
507
|
22
|
अर्जुन सहित प्रद्युम्न का कालयवन-पुत्र चण्ड को जीतकर भारतवर्ष के बाहर पूर्वोत्तर दिशा की ओर प्रस्थान
|
511
|
23
|
यादव-सेना का बाणासुर से भेंट लेकर अलकापुरी को प्रस्थान तथा यादवों और यक्षों का युद्ध
|
503
|
|
24
|
यादव सेना और यक्ष सेना का घोर युद्ध
|
519
|
|
25
|
प्रद्युम्न का एक युक्ति के द्वारा गणेशजी को रणभूमि से हटाकर गुह्यक सेना पर विजय प्राप्त करना और कुबेर का उनके लिये बहुत-सी भेंट-सामग्री देकर उनकी स्तुति करना; फिर प्राग्ज्योतिषपुर में भेंट लेकर प्रद्युम्न का विरोधी वानर द्विविद को किष्किन्धा में फेंक देना
|
523
|
26
|
किम्पुरुष वर्ष के रंगवल्लीपुर में किम्पुरुषों द्वारा हरिचरित्र का गान; वहां के राजा द्वारा भेंट पाकर यादव सेना का आगे जाना; मार्ग में अजगररूपधारी शापभ्रष्ट गन्धर्व का उद्धार; वसन्त तिल का पुरी के राजा श्रृंगार तिलक को पराजित करके प्रद्युम्न का हरिवर्ष के लिये प्रस्थान
|
532
|
27
|
प्रद्युम्न द्वारा गरुडास्त्र का प्रयोग होने पर गीधों के आक्रमण से यादव-सेना की रक्षा; दशार्ण देश पर विजय तथा दशार्ण मोचन तीर्थ में स्न्नान
|
532
|
28
|
उत्तर कुरु वर्ष पर यादवों की विजय; वाराहीपुरी में राजा गुणाकर द्वारा प्रद्युम्न का समादर
|
534
|
29
|
प्रद्युम्न की हिरण्मयवर्ष पर विजय; मधुमक्खियों और वानरों के आक्रमण से छुटकारा; राजा देवसख से भेंट की प्राप्ति तथा चन्द्रकान्ता नदी में स्न्नान
|
538
|
30
|
रम्यक वर्ष में कलंक राक्षस पर विजय; नै:श्रेयसवन, मानवी नगरी तथा मानव गिरि का दर्शन; श्राद्धदेव मनु द्वारा प्रद्युम्न की स्तुति
|
540
|
31
|
रम्यक वर्ष में मन्मथशालिनी पुरी के लोगों द्वारा श्रीकृष्ण लीला का गान; प्रजापति व्यति संवत्सर द्वारा प्रद्युम्न का पूजन; कामवन में प्रद्युम्न का अपने कामदेव- स्वरूप में विलय
|
543
|
32
|
भद्राश्व वर्ष में भद्रश्रवा के द्वारा प्रद्युम्न का पूजन तथा स्तवन; यादव-सेना की चन्द्रावती पुरी पर चढ़ाई; श्री कृष्ण कुमार वृक के द्वारा हिरण्याक्ष-पुत्र हृष्ट का वध
|
547
|
33
|
संग्रामजित के हाथ से भूत-संतापन का वध
|
550
|
34
|
अनिरुद्ध के हाथ से वृक दैत्य का वध
|
554
|
35
|
साम्ब द्वारा कालनाभ दैत्य का वध
|
547
|
36
|
दीप्तिमान द्वारा महानाभ का वध
|
558
|
37
|
श्रीकृष्ण-पुत्र भानु के हाथ से हरिश्मश्रु दैत्य का वध
|
559
|
38
|
प्रद्युम्न और शकुनि के घोर युद्ध का वर्णन
|
561
|
39
|
शकुनि के मायामय अस्त्रों का प्रद्युम्न द्वारा निवारण तथा उनके चलाये हुए श्रीकृष्णास्त्र से युद्धस्थल में भगवान श्रीकृष्ण का प्रादुर्भाव
|
564
|
40
|
शकुनि के जीवस्वरूप शुक का निधन
|
568
|
41
|
शकुनि का घोर युद्ध, सात बार मारे जाने पर भी उसका भूमि के स्पर्श से पुन: जी उठना; अन्त में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा युक्तिपूर्वक उसका वध
|
571
|
42
|
श्रीकृष्ण का यादवों के साथ चन्द्रावतीपुरी में जाकर शकुनि-पुत्र को वहां का राज्य देना तथा शकुनि आदि के पूर्व जन्मों का परिचय
|
574
|
43
|
इलावृत वर्ष में राजा शोभन से भेंट की प्राप्ति; स्वायम्भुव मनु की तपोभूमि में मूर्तिमती सिद्धियों का निवास; लीलावतीपुरी में अग्निदेव से उपायन की उपलब्धि; वेदनगर में मूर्तिमान वेद, राग, ताल, स्वर, ग्राम और नृत्य के भेदों का वर्णन
|
576
|
44
|
रागिनियों तथा राग पुत्रों के नाम और वेद आदि के द्वारा भगवान का स्तवन
|
579
|
45
|
रागिनियों तथा राग-पुत्रों द्वारा भगवान श्रीकृष्ण का स्तवन और उनका द्वारकापुरी के लिये प्रस्थान
|
582
|
46
|
यादवों और गन्धर्वों का युद्ध, बलभद्रजी का प्राकटय, उनके द्वारा गन्धर्व सेना का संहार, गन्धर्वराज की पराजय, वसन्तमालती नगरी का हल द्वारा कर्षण; गन्धर्वराज का भेंट लेकर शरण में आना और उन पर बलराम जी की कृपा
|
585
|
47
|
यादव सेना के साथ शक्रसख का युद्ध और उसकी पराजय
|
564
|
48
|
शक्रसख का प्रद्युम्न को भेंट अर्पण, प्रद्युम्न का लीलावतीपुरी के स्वयंवर में सुन्दरी को प्राप्त करना तथा इलावृत वर्ष से लौटकर भारत एवं द्वारकापुरी में आना
|
590
|
49
|
राजसूय यज्ञ में ऋषियों, ब्राह्मणों, राजाओं, तीर्थों, क्षेत्रों, देवगणों तथा सुहृद् सम्बन्धियों का शुभागमन
|
594
|
50
|
राजसूय यज्ञ का मंगलमय उत्सव; देवताओं, ब्राह्मणों तथा अतिथियों का दान-मान से सत्कार
|
585
|
बलभद्र खण्ड
|
1
|
श्री बलभद्र जी के अवतार का कारण
|
597
|
2
|
श्री बलभद्र जी के अवतार की तैयारी
|
599
|
3
|
ज्योतिष्मती का उपाख्यान
|
601
|
4
|
रेवती का उपाख्यान
|
603
|
5
|
श्रीबलराम और श्रीकृष्ण का प्राकटय
|
607
|
6
|
प्राडविपाक मुनि के द्वारा श्रीराम - कृष्ण की व्रजलीला का वर्णन
|
610
|
7
|
श्रीराम-कृष्ण की मथुरा-लीला का वर्णन
|
612
|
8
|
श्रीराम-कृष्ण की द्वारका-लीला का वर्णन
|
615
|
9
|
श्री बलराम जी की रासलीला का वर्णन
|
618
|
10
|
श्री बलभद्र जी की पूजा-पद्धति और पटल
|
620
|
11
|
श्री बलराम-स्तोत्र
|
623
|
12
|
श्री बलराम-कवच
|
624
|
13
|
बलभद्र सहस्त्रनाम
|
625
|
विज्ञान खण्ड
|
1
|
द्वारका में वेदव्यासजी का आगमन और उग्रसेन द्वारा उनका स्वागत-पूजन
|
585
|
2
|
व्यास जी के द्वारा गतियों का निरूपण
|
649
|
3
|
सकाम एवं निष्काम भक्ति योग का वर्णन
|
651
|
4
|
भक्त-संत की महिमा का वर्णन
|
552
|
5
|
भक्ति की महिमा का वर्णन
|
655
|
6
|
मन्दिर निर्माण तथा विग्रह प्रतिष्ठा एवं पूजा की विधि
|
556
|
7
|
नित्यकर्म और पूजा-विधि का वर्णन
|
585
|
8
|
पूजा-विधि का वर्णन
|
660
|
9
|
पूजोपचार तथा पूजन प्रकार का वर्णन
|
661
|
10
|
परमात्मा का स्वरूप-निरूपण
|
667
|
अश्वमेध खण्ड
|
1
|
अश्वमेध-कथा का उपक्रम; गर्ग वज्रनाभ संवाद
|
671
|
2
|
श्रीकृष्णावतार की पूर्वार्द्धगत लीलाओं का संक्षेप से वर्णन
|
674
|
3
|
जरासंध के आक्रमण से लेकर पारिजात-हरण तक की श्रीकृष्ण लीलाओं का संक्षिप्त वर्णन
|
677
|
4
|
पारिजात हरण
|
679
|
5
|
देवराज और उसकी देवसेना के साथ श्रीकृष्ण का युद्ध तथा विजयलाभ; पारिजात का द्वारकापुरी में आरोपण
|
681
|
6
|
श्रीकृष्ण के अनेक चरित्रों का संक्षेप से वर्णन
|
684
|
7
|
देवर्षि नारद का ब्रह्मलोक से आगमन; राजा उग्रसेन द्वारा उनका सत्कार; देवर्षि द्वारा अश्वमेध यज्ञ की महत्ता का वर्णन; श्रीकृष्ण की अनुमति एवं नारद जी द्वारा अश्वमेध यज्ञ की विधि का वर्णन
|
686
|
8
|
यज्ञ के योग्य श्यामकर्ण अश्व का अवलोकन
|
689
|
9
|
गर्गाचार्य का द्वारकापुरी में आगमन तथा अनिरूद्ध का अश्वमेधीय अश्व की रक्षा के लिए कृतप्रतिज्ञ होना
|
690
|
10
|
उग्रसेन की सभा में देवताओं का शुभागमन; अनिरूद्ध के शरीर में चन्द्रमा और ब्रह्मा का विलय तथा राजा और रानी की बातचीत
|
692
|
11
|
ऋत्विजों का वरण-पूजन; श्यामकर्ण अश्व का आनयन और अर्चन; ब्राह्मणों को दक्षिणादान; अश्व के भालदेश में बँधे हुए स्वर्णपत्र पर गर्गजी के द्वारा उग्रसेन के बल-पराक्रम का उल्लेख तथा अनिरूद्ध को अश्व की रक्षा के लिए आदेश
|
694
|
12
|
अश्र्वमोचन तथा उसकी रक्षा के लिये सेनापति अनिरूद्ध का विजयाभिषेक
|
697
|
13
|
अनिरूद्ध का अन्त:पुर से आज्ञा लेकर अश्व की रक्षा के लिये प्रस्थान; उनकी सहायता के लिये साम्ब का कृतप्रतिज्ञ होना; लक्ष्मणा का उन्हें सम्मुख युद्ध के लिये प्रोत्साहन देना; श्रीकृष्ण के भाइयों और पुत्रों का भी श्रीकृष्ण की आज्ञा से प्रस्थान करना तथा यादवों की चतुरंगिणी सेना का विस्तृत वर्णन
|
698
|
14
|
अनिरुद्ध का सेना सहित अश्व की रक्षा के लिए प्रयाण, माहिष्मतीपुरी के राजकुमार का अश्व को बांधना तथा अनिरुद्ध का राजा इंद्रनील से युद्ध के लिए उद्यत होना
|
702
|
15
|
अनिरुद्ध और साम्बका शौर्य, माहिष्मती नरेश पर इनकी विजय
|
705
|
16
|
चम्पावतीपुरी के राजा द्वारा अश्व का पकड़ा जाना, यादवों के साथ हेमांगद के सैनिकों का घोर युद्ध, अनिरुद्ध और श्रीकृष्ण पुत्रों के शौर्य से पराजित राजा का उनकी शरण में आना
|
707
|
17
|
स्त्री राज्य पर विजय और वहां की कुमारी रानी सुरूपा का अनिरुद्ध की प्रिया होने के लिए द्वारका को जाना
|
710
|
18
|
राक्षस भीषण द्वारा यज्ञीय अश्व का अपहरण तथा विमान द्वारा यादव–वीरों की उपलंका पर चढ़ाई
|
713
|
19
|
यादवों और निशाचरों का घोर युद्ध, अनिरुद्ध और भीषण की मूर्च्छा तथा चेतना एवं रणभूमि में बक का आगमन
|
715
|
20
|
बक और भीषण की पराजय तथा यादवों का घोड़ा लेकर आकाश मार्ग से लौटना
|
717
|
21
|
भद्रावतीपुरी तथा राजा योवनाश्व पर अनिरुद्ध की विजय
|
720
|
22
|
यज्ञ के घोड़े का अवन्तीपुरी में जाना और वहां अवन्ती नरेश की ओर से सेना सहित यादवों का पूर्ण सत्कार होना
|
721
|
23
|
अनिरुद्ध के पूछने पर सान्दीपनि द्वारा श्री कृष्ण–तत्त्व का निरूपण, श्रीकृष्ण की परब्रह्मता एवं भजनीयता का प्रतिपादन करके जगत से वैराग्य और भगवान के भजन का उपदेश
|
723
|
24
|
अनुशाल्व और यादव वीरों में घोर युद्ध
|
725
|
25
|
अनुशाल्व द्वारा प्रद्युम्न को उपहार सहित अश्व का अर्पण तथा बल्वल दैत्य द्वारा उस अश्व का अपहरण
|
728
|
26
|
नारदजी के मुख से बल्वल के निवास स्थान का पता पाकर यादवों का अनेक तीर्थों में स्नान–दान करते हुए कपिलाश्रम तक जाना और वहां कपिल मुनि को प्रणाम करके सागर के तट पर सेना का पड़ाव डालना
|
730
|
27
|
यादवों द्वारा समुद्र पर बाणमय सेतु का निर्माण
|
732
|
28
|
यादवों का पांचजन्य उपद्वीप में जाना, दैत्यों की परस्पर मंत्रणा, मयासुर का बल्वल को घोड़ा लौटा देने के लिए सलाह देना, परंतु बल्वल का युद्ध के निश्चय ही अडिग रहना
|
730
|
29
|
यादवों और असुरों का घोर संग्राम तथा ऊर्ध्वकेश एवं अनिरुद्ध का द्वंद्व युद्ध
|
736
|
30
|
उर्ध्वकेश और अनिरुद्ध का तथा नद और गद का घोर युद्ध, उर्ध्वकेश और नद का वध
|
739
|
31
|
वृक द्वारा सिंह का और साम्ब द्वारा कुशाम्ब का वध
|
742
|
32
|
मय को बल्वल का समझाना, बल्वल की युद्ध घोषणा, समस्त दैत्यों का युद्ध के लिए निर्गमन, विलम्ब के कारण सैन्यपाल के पुत्र का वध तथा दु:खी सैन्य पाल को मंत्रीपुत्रों का विवेकपूर्वक धैर्य बंधाना
|
744
|
33
|
श्रीकृष्ण की कृपा से दैत्य राजकुमार कुनंदन के जीवन की रक्षा
|
747
|
34
|
दैत्यों और यादवों का घोर युद्ध, बल्वल, कुनंदन तथा अनिरुद्ध के अद्भुत पराक्रम
|
751
|
35
|
बल्वल के चारों मंत्रीकुमारों का वध, बल्वल द्वारा मायामय युद्ध तथा अनिरुद्ध के द्वारा उसकी पराजय
|
754
|
36
|
श्रीकृष्ण पुत्र सुनंदन द्वारा दैत्यपुत्र कुनंदन का वध
|
758
|
37
|
भगवान शिव का अपने गणों के साथ बल्वल की ओर से युद्धस्थल में आना और शिवगणों तथा यादवों का घोर युद्ध, दीप्तिमान का शिवगणों को मार भगाना और अनिरुद्ध का भैरव को जृम्भणास्त्र से मोहित करना
|
761
|
38
|
नन्दिकेश्वर द्वारा सुनंदन का वध, भगवान शिव के त्रिशूल से आहत हुए अनिरुद्ध की मूर्च्छा, साम्ब द्वारा शिव की भर्त्सना, साम्ब और शिव का युद्ध तथा रणक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण का शुभागमन
|
764
|
39
|
भगवान शंकर द्वारा श्रीकृष्ण का स्तवन, शिव और श्रीकृष्ण की एकता, श्रीकृष्ण द्वारा सुनंदन, अनिरुद्ध एवं अन्य सब यादवों को जीवनदान देना तथा बल्वल द्वारा यज्ञ संबंधी अश्व का लौटाया जाना
|
761
|
40
|
यज्ञ संबंधी अश्व का ब्रजमंडल में वृंदावन के भीतर प्रवेश, श्रीदामा का उसे बांधकर नंदजी के पास ले जाना, नंदजी का समस्त यादवों और श्रीकृष्ण से सानंद मिलना, यादव सेना का वृंदावन में और श्रीकृष्ण का नंदपत्तन में निवास
|
770
|
41
|
श्रीराधा और श्रीकृष्ण का मिलन
|
773
|
42
|
रासक्रीड़ा के प्रसंग में श्रीवृंदावन, यमुना–पुलिन, वंशीवट, निकुंज भवन आदि की शोभा का वर्णन, गोप सुन्दरियों, श्यामसुंदर तथा श्रीराधा की छबि का चिंतन
|
775
|
43
|
श्रीकृष्ण का श्रीराधा और गोपियों के साथ विहार तथा मानवती गोपियों के अभिमानपूर्ण वचन सुनकर श्रीराधा के साथ उनका अन्तर्धान होना
|
782
|
44
|
गोपियों का श्रीकृष्ण को खोजते हुए वंशीवट के निकट आना और श्रीकृष्ण का मानवती राधा को त्याग कर अन्तर्धान होना
|
784
|
45
|
गोपांगनाओं द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति करते हुए उनका आह्वान और श्रीकृष्ण का उनके बीच में आविर्भाव
|
787
|
46
|
श्रीकृष्ण के आगमन से गोपियों को उल्लास, श्रीहरि के वेणुगीत की चर्चा से श्रीराधा की मूर्च्छा का निवारण, श्रीहरि का श्रीराधा आदि गोप सुंदरियों के साथ वन विहार, स्थल विहार, जल विहार, पर्वत विहार और रास क्रीड़ा
|
789
|
47
|
श्रीकृष्ण सहित यादवों का व्रजवासियों को आश्वासन देकर वहां से प्रस्थान
|
792
|
48
|
अश्व का हस्तिनापुर में जाना, उसके भालपत्र को पढ़कर दुर्योधन आदि का रोषपूर्वक अश्व को पकड़ लेना तथा यादव सैनिकों का कौरवों को घायल करना
|
794
|
49
|
यादवों और कौरवों का घोर युद्ध
|
797
|
50
|
कौरवों की पराजय और उनका भगवान श्रीकृष्ण से मिलकर भेंट सहित अश्व को लौटा देना
|
800
|
51
|
यादवों का द्वैतवन में राजा युधिष्ठिर से मिल कर घोड़े के पीछे–पीछे अन्यान्य देशों में जाना तथा अश्व का कौन्तलपुर में प्रवेश
|
804
|
52
|
श्यामकर्ण अश्व का कौन्तलपुर में जाना और भक्तराज चंद्रहास का बहुत सी भेंट सामग्री के साथ अश्व को अनिरुद्ध की सेवा में अर्पित करना और वहां से उन सबका प्रस्थान
|
807
|
53
|
उद्धव की सलाह से समस्त यादवों का द्वारकापुरी की ओर प्रस्थान तथा अनिरुद्ध की प्रेरणा से उद्धव का पहले द्वारकापुरी में पहुंचकर यात्रा का वृत्तांत सुनाना
|
809
|
54
|
वसुदेव आदि के द्वारा अनिरुद्ध की अगवानी, सेना और अश्व सहित यादवों का द्वारकापुरी में लौटकर सबसे मिलना तथा श्रीकृष्ण और उग्रसेन आदि के द्वारा समागत नरेशों का सत्कार
|
812
|
55
|
व्याजी का मुनि-दम्पति तथा राज दम्पतियों को गोमती का जल लाने के लिए आदेश देना, नारदजी का मोह और भगवान द्वाराउस मोह का भंजन, श्रीकृष्ण की कृपा से रानियों का कलश में जल भरकर लाना
|
815
|
56
|
राजा द्वारा यज्ञ में विभिन्रन बन्धु-बान्धवों को भिन्न-भिन्न कार्यों में लगना, श्रीकृष्ण का ब्राह्मणों के चरण पखारना, घी की आहुति से अग्निदेव को अजीर्ण होना, यज्ञपशु के तेज का श्रीकृष्ण में प्रवेश, उसके शरीर का कर्पूर के रूप में परिवर्तन, उसकी आहुति और यज्ञ की समाप्ति पर अवभृथ स्नान
|
819
|
57
|
ब्राह्मण भोजन, दक्षिणा-दान, पुरस्कार-वितरण, संबंधियों का सम्मान तथा देवता आदि सबका अपने अपने निवास स्थान को प्रस्थान
|
821
|
58
|
श्रीकृष्ण द्वारा कंस आदि का आवाहन और उनका श्रीकृष्ण को ही परमपिता बताकर इस लोक के माता-पिता से मिले बिना ही वैकुण्ठलोक को प्रस्थान
|
819
|
59
|
गर्गाचार्य के द्वारा राजा उग्रसेन के प्रति भगवान श्रीकृष्ण के सहस्त्रनामों का वर्णन
|
819
|
60
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कौरवों के संहार, पाण्डवों के स्वर्गगमन तथा यादवों के संहार आदि का संक्षिप्त वृत्तान्त; श्रीराधा तथा व्रजवासियों सहित भगवान श्रीकृष्ण का गोलोकधाम में गमन
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827
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61
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भगवान के श्यामवर्ण होने का रहस्य; कलियुग की पापमयी प्रवृत्ति; उससे बचने के लिये श्रीकृष्ण की समाराधना तथा एकादशी-व्रत का माहात्म्य
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829
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62
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गुरु और गंगा की महिमा; श्रीवज्रनाभ द्वारा कृतज्ञता-प्रकाशन और गुरुदेव का पूजन तथा श्रीकृष्ण के भजन-चिन्तन एवं गर्ग संहिता का माहात्म्य
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833
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माहात्म्य
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1
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गर्ग संहिता के प्राकटय का उपक्रम
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837
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2
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नारद जी की प्रेरणा से गर्ग द्वारा संहिता की रचना; संतान के लिये दु:खी राजा प्रतिबाहु के पास महर्षि शाण्डिल्य का आगमन
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839
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3
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राजा प्रतिबाहु के प्रति महर्षि शाण्डिल्य द्वारा गर्गसंहिता के माहात्म्य और श्रवण-विधि का वर्णन
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841
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4
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शाण्डिल्य मुनि का राजा प्रतिबाहु को गर्गसंहिता सुनाना; श्रीकृष्ण प्रकट होकर राजाको वरदान देना; राजाको पुत्र की प्राप्ति और संहिता का माहात्म्य
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843
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