गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 4
उन्होंने एकांत में उन महाभाग से अपना अभिप्राय प्रकट किया- ‘राघव ! आप हमारे परम प्रियतम बन जायँ।’ तब श्रीराम ने कहा ‘सुन्दरियों ! तुम शोक मत करो। द्वापर के अंत में मैं तुम्हारी इच्छा पूर्ण करूँगा। तुम लोग परम श्रद्धा और भक्ति के साथ तीर्थ, दान, तप, शौच एवं सदाचार का भलीभाँति पालन करती रहो। तुम्हें व्रज में गोपी होने का सुअवसर प्राप्त होगा।’ इस प्रकार वर देकर धनुर्धारी करूणानिधि श्रीराम ने अयोध्या के लिये प्रस्थान कर दिया। उस समय मार्ग में अपने प्रताप से उन्होंने भृगुकुल नन्दन परशुरामजी को परास्त कर दिया था। कोसल-जनपद की स्त्रियों ने भी राजपथ से जाते हुए उन कमनीय कांति राम को देखा। उनकी सुन्दरता कामदेव को मोहित कर रही थी। उन स्त्रियों ने श्रीराम को मन ही मन पति के रूप में वरण कर लिया। उस समय सर्वज्ञ श्रीराम ने उन समस्त स्त्रियों को मन ही मन वर दिया- ‘तुम सभी व्रज में गोपियाँ होओगी और उस समय मैं तुम्हारी इच्छा पूर्ण करूँगा। फिर सीता और सैनिकों के साथ रघुनाथजी अयोध्या पधारे। यह सुनकर अयोध्या में रहने वाली स्त्रियाँ उन्हें देखने के लिये आयीं। श्रीराम को देखकर उनका मन मुग्ध हो गया। वे प्रेम से विह्वल हो मूर्च्छित-सी हो गयीं। फिर वे श्रीराम के व्रत में परायण होकर सरयू के तट पर तपस्या करने लगीं। तब उनके सामने आकाशवाणी हुई- ‘द्वापर के अंत में यमुना के किनारे वृन्दावन में तुम्हारे पूर्ण होंगे, इसमें सन्देह नहीं है। जिस समय श्रीराम ने पिता की आज्ञा से दण्डक वन की यात्रा की, सीता तथा लक्ष्मण भी उनके साथ थे और वे हाथ में धनुष लेकर इधर-उधर विचर रहे थे। वहीं बहुत-से मुनि थे। उनकी गोपाल-वेषधारी भगवान के स्वरूप में निष्ठा थी। रासलीला के निमित्त वे भगवान का ध्यान करते थे। उस समय श्रीराम की युवा अवस्था थी-वे हाथ में धनुष-बाण धारण किये हुये थे। जटाओं के मुकुट से उनकी विचित्र शोभा थी। अपने आश्रम पर पधारे हुए श्रीराम में उन मुनियों का ध्यान लग गया। (वे ऋषि लोग गोपाल-वेषधारी भगवान के उपासक थे) अत: दूसरे ही स्वरूप में आये हुए श्रीराम को देखकर सबके मन में अत्यंत आश्चर्य हो गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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