गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 3
श्रीभगवान बोले- सुन्दर मन्द हास्य से सुशोभित होने वाली गोपांगनाओं ! यदि तुम मेरी दासियाँ हो तो इस कदम्ब की जड़ के पास आकर अपने वस्त्र ले लो। नहीं तो मैं इन सब वस्त्रों को अपने घर उठा ले जाउँगा। अत: तुम अविलम्ब मेरे कथनानुसार कार्य करो। श्रीनारदजी कहते हैं- राजन ! तब वे सब व्रजवासिनी गोपियाँ अत्यन्त काँपती हुई जल से बाहर निकलीं ओर आनत-शरीर हो, हाथों से योनि को ढककर शीत से कष्ट पाते हुए श्रीकृष्ण के हाथ से दिये गये वस्त्र लेकर उन्होंने अपने अंगों में धारण किये। इसके बाद श्रीकृष्ण को लजीली आँखों से देखती हुई वहाँ मोहित हो खड़ी रहीं। उनके परम प्रेमसूचक अभिप्राय को जानकर मन्द-मन्द मुस्कराते हुए श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण उन पर चारों ओर से दृष्टिपात करके इस प्रकार बोले। श्रीभगवान ने कहा- गोपांगनाओं ! तुमने मार्गशीर्ष मास में मेरी प्राप्ति के लिये जो कात्यायनी व्रत किया है, वह अवश्य सफल होगा इसमें संशय नहीं है। परसों दिन में वन के भीतर यमुना के मनोहर तट पर मैं तुम्हारें साथ रास करूँगा, जो तुम्हारा मनोरथ पूर्ण करने वाला होगा। यों कहकर परिपूर्णतम श्रीहरि जब चले गये, तब आनन्दोल्लास से परिपूर्ण हो मन्दहास की छटा बिखेरती हुई वे समस्त गोप-बालाएँ अपने घरों को गयीं। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में माधुर्य खण्ड के अन्तर्गत श्रीनारद बहुलाश्व संवाद में ‘मैथिलीरूपा गोपियों का उपाख्यान’ नामक तीसरा अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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