स्मृति | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- स्मृति (बहुविकल्पी) |
स्मृति हिन्दू धार्मिक ग्रंथ 'ब्रह्म वैवर्त पुराण' के अनुसार धर्म की पत्नी थी। इनके पुत्र का नाम जातिस्मर था।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | विषय | पृष्ठ संख्या |
ब्रह्म खण्ड | |||
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1 | मंगलाचरण, नैमिषारण्य में आये हुए सौति से शौनक के प्रश्न तथा सौति द्वारा ब्रह्म वैवर्त पुराण का परिचय देते हुए इसके महत्व का निरूपण | 1 | |
2 | परमात्मा के महान उज्ज्वल तेजःपुंज, गोलोक, वैकुण्ठलोक और शिवलोक की स्थिति का वर्णन तथा गोलोक में श्यामसुन्दर भगवान श्रीकृष्ण के परात्पर स्वरूप का निरूपण | 7 | |
3 | श्रीकृष्ण से सृष्टि का आरम्भ, नारायण, महादेव, ब्रह्मा, धर्म, सरस्वती, महालक्ष्मी और प्रकृति–का प्रादुर्भाव तथा इन सबके द्वारा पृथक-पृथक श्रीकृष्ण का स्तवन | 9 | |
4 | सावित्री, कामदेव, रति, अग्नि, अग्निदेव, जल, वरुणदेव, स्वाहा, वरुणानी, वायुदेव, वायवी देवी तथा मेदिनी के प्राकट्य का वर्णन | 16 | |
5 | ब्रह्मा आदि कल्पों का परिचय, गोलोक में श्रीकृष्ण का नारायण आदि के साथ रास मण्डल में निवास, श्रीकृष्ण के वामपार्श्व से श्रीराधा का प्रादुर्भाव; राधा के रोमकूपों से गोपांगनाओं का प्राकट्य तथा श्रीकृष्ण से गोपों, गौओं, बलीवर्दों, हंसों, श्वेत घोड़ों और सिंहों की उत्पत्ति; श्रीकृष्ण द्वारा पाँच रथों का निर्माण तथा पार्षदों का प्राकट्य; भैरव, ईशान और डाकिनी आदि की उत्पत्ति | 18 | |
6 | श्रीकृष्ण का नारायण आदि को लक्ष्मी आदि का पत्नी रूप में दान, महादेव जी का दार-संयोग में अरुचि प्रकट करके निरन्तर भजन के लिये वर माँगना तथा भगवान का उन्हें वर देते हुए उनके नाम आदि की महिमा बताकर उन्हें भविष्य में शिवा से विवाह की आज्ञा देना तथा शिवा आदि को मन्त्रादि का उपदेश करना | 23 | |
7 | सृष्टि का क्रम– ब्रह्मा जी के द्वारा मेदिनी, पर्वत, समुद्र, द्वीप, मर्यादा पर्वत, पाताल, स्वर्ग आदि का निर्माण; कृत्रिम जगत की अनित्यता तथा वैकुण्ठ, शिवलोक तथा गोलोक की नित्यता का प्रतिपादन | 27 | |
8 | सावित्री से वेद आदि की सृष्टि, ब्रह्मा जी से सनकादि की, सस्त्रीक स्वायम्भुव मनु की, रुद्रों की, पुलस्त्यादि मुनियों की तथा नारद की उत्पत्ति, नारद को ब्रह्मा का और ब्रह्मा जी को नारद का शाप | 28 | |
9 | मरीचि आदि ब्रह्मकुमारों तथा दक्षकन्याओं की संतति का वर्णन, दक्ष के शाप से पीड़ित चन्द्रमा का भगवान शिव की शरण में जाना, अपनी कन्याओं के अनुरोध पर दक्ष का चन्द्रमा को लौटा लाने के लिये जाना, शिव की शरणागत वत्सलता तथा विष्णु की कृपा से दक्ष को चन्द्रमा की प्राप्ति | 32 | |
10 | जाति और सम्बन्ध का निर्णय | 37 | |
11 | सूर्य के अनुरोध से सुतपा का अश्विनी कुमारों को शाप मुक्त करना तथा संध्यानिरत वैष्णव ब्राह्मण की प्रशंसा | 40 | |
12 | ब्रह्मा जी की अपूज्यता का कारण, गन्धर्वराज की तपस्या से संतुष्ट हुए भगवान शंकर का उन्हें अभीष्ट वर देना तथा नारद जी का उनके पुत्र रूप से उत्पन्न हो उपबर्हण नाम से प्रसिद्ध होना | 42 | |
13 | ब्रह्मा जी के शाप से उपबर्हण का योगधारण द्वारा अपने शरीर को त्याग देना, मालावती का विलाप एवं प्रार्थना करना, देवताओं को शाप देने के लिये उद्यत होना, आकाशवाणी द्वारा भगवान का आश्वासन पाकर देवताओं का कौशिकी के तट पर मालावती के दर्शन करना | 45 | |
14 | ब्राह्मण-बालक रूपधारी विष्णु का मालावती के साथ संवाद, ब्राह्मण के पूछने पर मालावती का अपने दुःख और इच्छा को व्यक्त करना तथा ब्राह्मण का कर्मफल के विवेचनपूर्वक विभिन्न देवताओं की आराधना से प्राप्त होने वाले फल का वर्णन करना, श्रीकृष्ण एवं उनके भजन की महिमा बताना | 49 | |
15 | ब्राह्मण द्वारा अपनी शक्ति का परिचय, मृतक को जीवित करने का आश्वासन, मालावती का पति के महत्त्व को बताना और काल, यम, मृत्युकन्या आदि को ब्राह्मण द्वारा बुलवाकर उनसे बात करना, यम आदि का अपने को ईश्वर की आज्ञा का पालक बताना और उसे ‘श्रीकृष्णचिन्तन’ के लिये प्रेरित करना | 54 | |
16 | मालावती पूछने पर ब्राह्मण द्वारा वैद्यकसंहिता का वर्णन, आयुर्वेद की आचार्य परम्परा, उसके सोलह प्रमुख विद्वानों तथा उनके द्वारा रचित तन्त्रों का नाम-निर्देश, ज्वर आदि चौंसठ रोग, उनके हेतुभूत वात, पित्त, कफ की उत्पत्ति के कारण और उनके निवारण के उपायों का विवेचन | 58 | |
17 | ब्राह्मण-बालक के साथ क्रमशः ब्रह्मा, महादेवजी तथा धर्म की बातचीत, देवताओं द्वारा श्रीविष्णु की तथा ब्राह्मण द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की उत्कृष्ट महत्ता का प्रतिपादन | 63 | |
18 | ब्रह्मा आदि देवताओं द्वारा उपबर्हण को जीवित करने की चेष्टा, मालावती द्वारा भगवान श्रीकृष्ण का स्तवन, शक्ति सहित भगवान का गन्धर्व के शरीर में प्रवेश तथा गन्धर्व का जी उठना, मालावती द्वारा दान एवं मंगलाचार तथा पूर्वोक्त स्तोत्र के पाठ की महिमा | 69 | |
19 | ब्रह्माण्ड पावन नामक कृष्ण कवच, संसार पावन नामक शिव कवच और शिवस्तवराज का वर्णन तथा इन सबकी महिमा | 73 | |
20-21 | गोपपत्नी कलावती के गर्भ से एक शिशु के रूप में उपबर्हण का जन्म, शूद्रयोनि में उत्पन्न बालक नारद की जीवनचर्या, नाम की व्युत्पत्ति, उसके द्वारा संतों की सेवा, सनत्कुमार द्वारा उसे उपदेश की प्राप्ति, उसके द्वारा श्रीहरि के स्वरूप का ध्यान, आकाशवाणी तथा उस बालक के देह-त्याग का वर्णन | 87 | |
22 | ब्रह्मा जी के पुत्रों के नामों की व्युत्पत्ति | 93 | |
23 | ब्रह्मा जी से सृष्टि के लिये दार परिग्रह की प्रेरणा पाकर डरे हुए नारद का स्त्री-संग्रह के दोष बताकर तप के लिये जाने की आज्ञा माँगना | 96 | |
24 | ब्रह्मा जी का नारद को गृहस्थ धर्म का महत्व बताते हुए विवाह के लिये राजी करना और नारद का पिता की आज्ञा ले शिवलोक को जाना | 96 | |
25 | नारद जी को भगवान शिव का दर्शन, शिव द्वारा नारद जी का सत्कार तथा उनकी मनोवाञ्छापूर्ति के लिये आश्वासन | 101 | |
26 | ब्राह्मणों के आह्निक आचार तथा भगवान के पूजन की विधि का वर्णन | 103 | |
27 | ब्राह्मणों के लिये भक्ष्याभक्ष्य तथा कर्तव्याकर्तव्य का निरूपण | 111 | |
28 | परब्रह्म परमात्मा के स्वरूप का निरूपण | 114 | |
29 | बदरिकाश्रम में नारायण के प्रति नारद जी का प्रश्न | 120 | |
30 | नारायण के द्वारा परमपुरुष परमात्मा श्रीकृष्ण तथा प्रकृति देवी की महिमा का प्रतिपादन | 122 | |
प्रकृति खण्ड | |||
1 | पंचदेवीरूपा प्रकृति का तथा उनके अंश, कला एवं कलांश का विशद वर्णन | 123 | |
2 | परब्रह्म श्रीकृष्ण और श्रीराधा से प्रकट चिन्मय देवी और देवताओं के चरित्र | 127 | |
3 | परिपूर्णतम श्रीकृष्ण और चिन्मयी श्री राधा से प्रकट विराट स्वरूप बालक का वर्णन | 142 | |
4 | सरस्वती की पूजा का विधान तथा कवच | 147 | |
5 | याज्ञवल्क्य द्वारा भगवती सरस्वती की स्तुति | 154 | |
6 | विष्णुपत्नी लक्ष्मी, सरस्वती एवं गंगा का परस्पर शापवश भारतवर्ष में पधारना | 157 | |
7 | कलियुग के भावी चरित्र का, कालमान का तथा गोलोक की श्रीकृष्ण-लीला का वर्णन | 165 | |
8-9 | पृथ्वी की उत्पत्ति प्रसंग, ध्यान और पूजन का प्रकार तथा स्तुति एवं पृथ्वी के प्रति शास्त्र विपरीत व्यवहार करने पर नरकों की प्राप्ति का वर्णन | 173 | |
10 | गंगा की उत्पत्ति का विस्तृत प्रसंग | 179 | |
11-12 | श्री राधा जी का गंगा पर रोष, श्रीकृष्ण के प्रति राधा का उपालम्भ, श्री राधा के भय से गंगा का श्रीकृष्ण के चरणों में छिप जाना, जलाभाव से पीड़ित देवताओं का गोलोक में जाना, ब्रह्मा जी की स्तुति से राधा का प्रसन्न होना तथा गंगा का प्रकट होना, देवताओं के प्रति श्रीकृष्ण का आदेश तथा गंगा के विष्णु पत्नी होने का प्रसंग | 188 | |
13 | तुलसी के कथा-प्रसंग में राजा वृषध्वज का चरित्र-वर्णन | 198 | |
14 | वेदवती की कथा, इसी प्रसंग में भगवान राम के चरित्र का एक अंश-कथन, भगवती सीता तथा द्रौपदी के पूर्व जन्म का वृत्तान्त | 202 | |
15 | भगवती तुलसी के प्रादुर्भाव का प्रसंग | 207 | |
16 | तुलसी को स्वप्न में शंखचूड़ के दर्शन, शंखचूड़ तथा तुलसी के विवाह के लिये ब्रह्मा जी का दोनों को आदेश, तुलसी के साथ शंखचूड़ का गान्धर्व-विवाह तथा देवताओं के प्रति उसके पूर्वजन्म का स्पष्टीकरण | 210 | |
17 | पुष्पदन्त का दूत बनकर शंखचूड़ के पास जाना और शंखचूड़ के द्वारा तुलसी के प्रति ज्ञानोपदेश | 218 | |
18 | शंखचूड़ का पुष्पभद्रा नदी के तट पर जाना, वहाँ भगवान शंकर के दर्शन तथा उनसे विशद वार्तालाप | 223 | |
19 | भगवान शंकर और शंखचूड़ के पक्षों में युद्ध, भद्रकाली का घोर युद्ध और आकाशवाणी सुनकर काली का शंखचूड़ पर पाशुपतास्त्र न चलाना | 228 | |
20 | भगवान शंकर और शंखचूड़ का युद्ध, शंकर के त्रिशूल से शंखचूड़ का भस्म होना तथा सुदामा गोप के स्वरूप मे उसका विमान द्वारा गोलोक पधारना | 232 | |
21 | शंखचूड़-वेषधारी श्रीहरि द्वारा तुलसी का पातिव्रत्य भंग, शंखचूड़ का पुनः गोलोक जाना, तुलसी और श्रीहरि का वृक्ष एवं शालग्राम-पाषाण के रूप में भारतवर्ष में रहना तथा तुलसी महिमा, शालग्राम के विभिन्न लक्षण तथा महत्त्व का वर्णन | 234 | |
22 | तुलसी-पूजन, ध्यान, नामाष्टक तथा तुलसी-स्तवन का वर्णन | 240 | |
23 | सावित्री देवी की पूजा-स्तुति का विधान | 243 | |
24-25 | राजा अश्वपति द्वारा सावित्री की उपासना तथा फलस्वरूप सावित्री नामक कन्या की उत्पत्ति, सत्यवान के साथ सावित्री का विवाह, सत्यवान की मृत्यु, सावित्री और यमराज का संवाद | 252 | |
26 | सावित्री-धर्मराज के प्रश्नोत्तर, सावित्री को वरदान | 256 | |
27-28 | सावित्री धर्मराज के प्रश्नोत्तर तथा सावित्री के द्वारा धर्मराज को प्रणाम-निवेदन | 261 | |
29-31 | नरक-कुण्डों और उनमें जाने वाले पापियों तथा पापों का वर्णन | 269 | |
32-33 | पंचदेवोपासकों के नरक में न जाने का कथन तथा छियासी प्रकार के नरक-कुण्डों का विशद परिचय | 282 | |
34 | भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप, महत्त्व और गुणों की अनिर्वचनीयता | 292 | |
35-37 | भगवती महालक्ष्मी के प्राकट्य तथा विभिन्न व्यक्तियों से उनके पूजित होने का तथा दुर्वासा के शाप से महालक्ष्मी के देवलोक-त्याग और इन्द्र के दुःखी होकर बृहस्पति के पास जाने का वर्णन | 300 | |
38-39 | भगवती लक्ष्मी का समुद्र से प्रकट होना और इन्द्र के द्वारा महालक्ष्मी के ध्यान तथा स्तवन किये जाने और पुनः अधिकार प्राप्त किये जाने का वर्णन | 314 | |
40-41 | भगवती स्वाहा तथा भगवती स्वधा का उपाख्यान, उनके ध्यान, पूजा-विधान तथा स्तोत्रों का वर्णन | 321 | |
42 | भगवती दक्षिणा के प्राकट्य का प्रसंग, उनका ध्यान, पूजा-विधान तथा स्तोत्र-वर्णन एवं चरित्र-श्रवण की फल-श्रुति | 325 | |
43 | देवी षष्ठी के ध्यान, पूजन, स्तोत्र तथा विशद महिमा का वर्णन | 329 | |
44-46 | भगवती मंगलचण्डी और मनसादेवी का उपाख्यान | 333 | |
47 | आदि गौ सुरभी देवी का उपाख्यान | 344 | |
48 | नारद-नारायण-संवाद में पार्वती जी के पूछने पर महादेव जी के द्वारा श्रीराधा के प्रादुर्भाव एवं महत्त्व आदि का वर्णन | 346 | |
49 | श्रीराधा और श्रीकृष्ण के चरित्र तथा श्रीराधा की पूजा-परंपरा का अत्यन्त संक्षिप्त परिचय | 349 | |
50-51 | राजा सुयज्ञ की यज्ञ शीलता और उन्हें ब्राह्मण के शाप की प्राप्ति, ऋषियों द्वारा ब्राह्मण को क्षमा के लिये प्रेरित करते हुए कृतघ्नों के भेद तथा विभिन्न पापों के फल का प्रतिपादन | 351 | |
52 | शेष कृतघ्नों के कर्मफलों का विभिन्न मुनियों द्वारा प्रतिपादन | 356 | |
53 | सुतपा के द्वारा सुयज्ञ को शिवप्रदत्त परम दुर्लभ महाज्ञान का उपदेश | 358 | |
54 | गोलोक एवं श्रीकृष्ण की उत्कृष्टता, कालमान एवं विभिन्न प्रलयों का निरूपण, चौदह मनुओं का परिचय, ब्रह्मा से लेकर प्रकृति तक के श्रीकृष्ण में लय होने का वर्णन, शिव का मृत्युंजय, मूलप्रकृति से महाविष्णु का प्रादुर्भाव, सुयज्ञ को विप्रचरणोदक का महत्त्व तथा राधा का मन्त्र बताकर सुतपा का जाना, पुष्कर में राजा की दुष्कर तपस्या तथा राधा मन्त्र के जप से सुयज्ञ का श्रीराधा की कृपा से गोलोक में जाना और श्रीकृष्ण का दर्शन एवं कृपाप्रसाद प्राप्त करना | 361 | |
55 | श्रीराधा के ध्यान, षोडशोपचार-पूजन, परिचारिका-पूजन, परिहारस्तवन, पूजन-महिमा तथा स्तुति एवं उसके माहात्म्य का वर्णन | 372 | |
56 | श्रीजगन्मंगल-राधाकवच तथा उसकी महिमा | 384 | |
57-61 | दुर्गा जी के सोलह नामों की व्याख्या, दुर्गा की उत्पत्ति तथा उनके पूजन की परम्परा का संक्षिप्त वर्णन | 389 | |
62 | सुरथ और समाधि वैश्य का मेधस के आश्रम पर जाना, मुनि का दुर्गा की महिमा एवं उनकी आराधना-विधि का उपदेश देना तथा दुर्गा की आराधाना से उन दोनों के अभीष्ट मनोरथ की पूर्ति | 392 | |
63-64 | सुरथ और समाधि पर देवी की कृपा और वरदान, देवी की पूजा का विधान, ध्यान, प्रतिमा की स्थापना, परिहार स्तुति, शंख में तीर्थों का आवाहन तथा देवी के षोडशोपचार-पूजन का क्रम | 395 | |
65 | देवी के बोधन, आवाहन, पूजन और विसर्जन के नक्षत्र, इन सबकी महिमा, राजा को देवी का दर्शन एवं उत्तम ज्ञान का उपदेश देना | 404 | |
66-67 | दुर्गा जी का दुर्गनाशनस्तोत्र तथा प्रकृतिकवच या ब्रह्माण्डमोहनकवच एवं उसका माहात्म्य | 407 | |
गणपति खण्ड | |||
1-3 | नारद जी की नारायण से गणेश चरित के विषय में जिज्ञासा, नारायण द्वारा शिव-पार्वती के विवाह तथा स्कन्द की उत्पत्ति का वर्णन, पार्वती की महादेव जी से पुत्रोत्पत्ति के लिये प्रार्थना, शिव जी का उन्हें पुण्यक-व्रत के लिये प्रेरित करना | 414 | |
4 | शिव जी द्वारा पार्वती से पुण्यक-व्रत की सामग्री, विधि तथा फल का वर्णन | 417 | |
5 | पुण्यक-व्रत की माहात्म्य-कथा का कथन | 420 | |
6 | पार्वती जी का व्रतारम्भ के लिये उद्योग, ब्रह्मादि देवों तथा ऋषि आदि का आगमन, शिव जी द्वारा उनका सत्कार तथा श्रीविष्णु से पुण्यक-व्रत के विषय में प्रश्न, श्रीविष्णु का व्रत के माहात्म्य तथा गणेश की उत्पत्ति का वर्णन करना | 422 | |
7 | पार्वती द्वारा व्रतारम्भ, व्रत-समाप्ति में पुरोहित द्वारा शिव को दक्षिणारूप में माँगे जाने पर पार्वती का मूर्च्छित होना, शिव जी तथा देवताओं और मुनियों का उन्हें समझाना, पार्वती का विषाद, नारायण का आगमन और उनके द्वारा पति के बदले गोमूल्य देकर पार्वती को व्रत समाप्त करने का आदेश, पुरोहित द्वारा उसका अस्वीकार, एक अद्भुत तेज का आविर्भाव और देवताओं, मुनियों तथा पार्वती द्वारा उसका स्तवन | 428 | |
8 | पार्वती की स्तुति से प्रसन्न हुए श्रीकृष्ण का पार्वती को अपने रूप के दर्शन कराना, वर प्रदान करना और बालकरूप से उनकी शय्या पर खेलना | 438 | |
9 | श्रीहरि के अन्तर्धान हो जाने पर शिव-पार्वती द्वारा ब्राह्मण की खोज, आकाशवाणी के सूचित करने पर पार्वती का महल में जाकर पुत्र को देखना और शिवजी को बुलाकर दिखाना, शिव-पार्वती का पुत्र को गोद में लेकर आनन्द मनाना | 445 | |
10 | शिव, पार्वती तथा देवताओं द्वारा अनेक प्रकार का दान दिया जाना, बालक को देवताओं एवं देवियों का शुभाशीवार्द और इस मंगलाध्याय के श्रवण का फल | 448 | |
11 | गणेश को देखने के लिये शनैश्चर का आना और पार्वती के पूछने पर अपने द्वारा किसी वस्तु के न देखने का कारण बताना | 451 | |
12 | पार्वती के कहने से शनैश्चर का गणेश पर दृष्टिपात करना, गणेश के सिर का कटकर गोलोक में चला जाना, पार्वती की मूर्च्छा, श्रीहरि का आगमन और गणेश के धड़ पर हस्ती का सिर जोड़कर जीवित करना, फिर पार्वती को होश में लाकर बालक को आशीर्वाद देना, पार्वती द्वारा शनैश्चर को शाप | 453 | |
13 | विष्णु आदि देवताओं द्वारा गणेश की अग्रपूजा, पार्वतीकृत विशेषोपचार सहित गणेश पूजन, विष्णुकृत गणेशस्तवन और ‘संसारमोहन’ नामक कवच का वर्णन | 457 | |
14-15 | पार्वती को देवताओं द्वारा कार्तिकेय का समाचार प्राप्त होना, शिव जी का कृत्तिकाओं के पास दूतों को भेजना, वहाँ कार्तिकेय और नन्दी का संवाद | 463 | |
16 | कार्तिकेय का नन्दिकेश्वर के साथ कैलास पर आगमन, स्वागत, सभा में जाकर विष्णु आदि देवों को नमस्कार करना और शुभाशीर्वाद पाना | 467 | |
17 | कार्तिकेय का अभिषेक तथा देवताओं द्वारा उन्हें उपहार-प्रदान | 470 | |
18 | गणेश के शिरश्छेदन के वर्णन के प्रसंग में शंकर द्वारा सूर्य का मारा जाना, कश्यप का शिव को शाप देना, सूर्य का जीवित होना और माली-सुमाली की रोगनिवृत्ति | 472 | |
19 | ब्रह्मा द्वारा माली-सुमाली को सूर्य के कवच और स्तोत्र की प्राप्ति तथा सूर्य की कृपा से उन दोनों का नीरोग होना | 474 | |
20-21 | भगवान नारायण के निवेदित पुष्प की अवलेहना से इन्द्र का श्रीभ्रष्ट होना, पुनः बृहस्पति के साथ ब्रह्मा के पास जाना, ब्रह्मा द्वारा दिये गये नारायणस्तोत्र, कवच और मन्त्र के जप से पुनः श्री प्राप्त करना | 478 | |
22 | श्रीहरि का इन्द्र को लक्ष्मी-कवच तथा लक्ष्मी-स्तोत्र प्रदान करना | 481 | |
23 | देवताओं के स्तवन करने पर महालक्ष्मी का प्रकट होकर देवों और मुनियों के समक्ष अपने निवास-योग्य स्थान का वर्णन करना | 484 | |
24 | गणेश के एकदन्त-वर्णन-प्रसंग में जमदग्नि के आश्रम पर कार्तवीर्य का स्वागत-सत्कार कार्तवीर्य का बलपूर्वक कामधेनु को हरण करने की इच्छा प्रकट करना, कामधेनु द्वारा उत्पन्न की हुई सेना के साथ कार्तवीर्य की सेना का युद्ध | 487 | |
25-26 | जमदग्नि और कार्तवीर्य का युद्ध तथा ब्रह्मा द्वारा उसका निवारण | 492 | |
27 | जमदग्नि-कार्तवीर्य-युद्ध, कार्तवीर्य द्वारा दत्तात्रेयदत्त शक्ति के प्रहार से जमदग्नि का वध, रेणु का विलाप, परशुराम का आना और क्षत्रिय वध की प्रतिज्ञा करना, भृगु का आकर उन्हें सान्त्वना देना | 496 | |
28 | रेणुका-भृगु-संवाद, रेणुका का पति के साथ सती होना, परशुराम का पिता की अन्त्येष्टि क्रिया करके ब्रह्मा के पास जाना और अपनी प्रतिज्ञा सुनाना, ब्रह्मा का उन्हें शिव जी के पास भेजना | 499 | |
29 | परशुराम का शिवलोक में जाकर शिव जी के दर्शन करके उनकी स्तुति करना | 504 | |
30 | परशुराम का शिव जी से अपना अभिप्राय प्रकट करना, उसे सुनकर भद्रकाली का कुपित होना, परशुराम का रोने लगना, शिव जी का कृपा करके उन्हें नाना प्रकार के दिव्यास्त्र एवं शस्त्रास्त्र प्रदान करना | 509 | |
31 | शिव जी का प्रसन्न होकर परशुराम को त्रैलोक्यविजय नामक कवच प्रदान करना | 510 | |
32 | शिवजी का परशुराम को मन्त्र, ध्यान, पूजाविधि और स्तोत्र प्रदान करना | 514 | |
33 | पुष्कर में जाकर परशुराम का तपस्या करना, श्रीकृष्ण द्वारा वर-प्राप्ति, आश्रम पर मित्रों के साथ उनका विजय-यात्रा करना और शुभ शकुनों का प्रकट होना, नर्मदा तट पर रात्रि में परशुराम को स्वप्न में शुभ शकुनों का दिखलायी देना | 518 | |
34 | परशुराम का कार्तवीर्य के पास दूत भेजना, दूत की बात सुनकर राजा का युद्ध के लिए उद्यत होना और रानी मनोरमा से स्वप्नदृष्ट अपशकुन का वर्णन करना, रानी का उन्हें परशुराम की शरण ग्रहण करने को कहना, परंतु राजा का मनोरमा को समझाकर युद्ध यात्रा के लिये उद्यत होना | 521 | |
35 | राजा को युद्ध के लिये उद्यत देख मनोरमा का योग द्वारा शरीर-त्याग, राजा का विलाप और आकाशवाणी सुनकर उसकी अन्त्येष्टि-क्रिया करना, युद्ध यात्रा के समय नाना प्रकार के अपशकुन देखना, कार्तवीर्य और परशुराम का युद्ध तथा कार्तवीर्य का वध, नारायण द्वारा शिव-कवच का वर्णन | 526 | |
36 | मत्स्यराज के वध के पश्चात अनेकों राजाओं का आना और परशुराम द्वारा मारा जाना, पुनः राजा सुचन्द्र और परशुराम का युद्ध, परशुराम द्वारा कालीस्तवन, ब्रह्मा का आकर परशुराम को युक्ति बताना, परशुराम का राजा सुचन्द्र से मन्त्र और कवच माँगकर उसका वध करना | 532 | |
37 | दशाक्षरी विद्या तथा काली-कवच का वर्णन | 533 | |
38 | सुचन्द्र-पुत्र पुष्कराक्ष के साथ परशुराम का युद्ध, पाशुपतास्त्र छोड़ने के लिये उद्यत परशुराम के पास विष्णु का आना और उन्हें समझाना, विष्णु का विप्रवेष से पुत्रसहित पुष्कराक्ष से लक्ष्मीकवच तथा दुर्गाकवच को माँग लेना, लक्ष्मी-कवच का वर्णन | 534 | |
39 | दुर्गा-कवच का वर्णन | 537 | |
40 | परशुराम द्वारा पुत्रसहित राजा सहस्राक्ष का वध, कार्तवीर्य-परशुराम-युद्ध, परशुराम की मूर्च्छा, शिव द्वारा उन्हें पुनर्जीवन-दान, कार्तवीर्य-परशुराम-संवाद, आकाशवाणी सुनकर शिव का विप्र वेष धारण करके कार्तवीर्य से कवच माँग लेना, परशु द्वारा कार्तवीर्य तथा अन्यान्य क्षत्रियों का संहार, ब्रह्मा का आगमन और परशुराम को गुरुस्वरूप शिव की शरण में जाने का उपदेश देकर स्वस्थान को लौट जाना | 539 | |
41 | परशुराम का कैलास-गमन, वहाँ शिव-भवन में पार्षदों सहित गणेश को प्रणाम करके आगे बढ़ने को उद्यत होना, गणेश द्वारा रोके जाने पर उनके साथ वार्तालाप | 545 | |
42-43 | परशुराम का शिव के अन्तःपुर में जाने के लिये गणेश से अनुरोध, गणेश का उन्हें समझाना, न मानने पर उन्हें स्तम्भित करके अपनी सूँड़ में लपेटकर सभी लोकों में घुमाते हुए गोलोक में श्रीकृष्ण का दर्शन कराकर भूतल पर छोड़ देना, होश आने पर परशुराम का कुपित होकर गणेश पर फरसे का प्रहार करना, गणेश का एक दाँत टूट जाना, देवलोक में हाहाकार, पार्वती का रुदन और शिव से प्रार्थना | 547 | |
44 | पार्वती की शिव से प्रार्थना, परशुराम को देखकर उन्हें मारने के लिये उद्यत होना परशुराम द्वारा इष्टदेव का ध्यान, भगवान का वामनरूप से पधारना, शिव-पार्वती को समझाना और गणेश स्तोत्र को प्रकट करना | 549 | |
45 | परशुराम को गौरी का स्तवन करने के लिये कहकर विष्णु का वैकुण्ठ-गमन, परशुराम का पार्वती की स्तुति करना | 554 | |
46 | सबका स्तवन-पूजन और नमस्कार करके परशुराम का जाने के लिये उद्यत होना, गणेश-पूजा में तुलसी-निषेध के प्रसंग में गणेश-तुलसी के संवाद का वर्णन तथा गणपति खण्ड का श्रवण-माहात्म्य | 558 | |
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड | |||
1-3 | नारद जी के प्रश्न तथा मुनिवर नारायण द्वारा भगवान विष्णु एवं वैष्णव के महात्म्य का वर्णन, श्रीराधा और श्रीकृष्ण के गोकुल में अवतार लेने का एक कारण श्रीदाम और राधा का परस्पर शाप | 560 | |
4 | पृथ्वी का देवताओं के साथ ब्रह्मलोक में जाकर अपनी व्यथा-कथा सुनाना, ब्रह्मा जी का उन सबके साथ कैलास गमन, कैलास से ब्रह्मा, शिव तथा धर्म का वैकुण्ठ में जाकर श्रीहरि की आज्ञा से गोलोक में जाना और वहाँ विरजातट, शतश्रृंगपर्वत, रासमण्डल एवं वृन्दावन आदि के प्रदेशों का अवलोकन करना, गोलोक का विस्तृत वर्णन | 564 | |
5 | श्री राधा के विशाल भवन एवं अन्तःपुर की शोभा का वर्णन, ब्रह्मा आदि को दिव्य तेजःपुञ्ज के दर्शन तथा उनके द्वारा उन तेजोमय परमेश्वर की स्तुति | 575 | |
6 | देवताओं द्वारा तेजःपुञ्ज में श्रीकृष्ण और राधा के दर्शन तथा स्तवन, श्रीकृष्ण द्वारा देवताओं का स्वागत तथा उन्हें आश्वासन-दान, भगवद्भक्त के महत्त्व का वर्णन, श्रीराधा सहित गोप-गोपियों को व्रज में अवतीर्ण होने के लिए श्रीहरि का आदेश, सरस्वती और लक्ष्मी सहित वैकुण्ठवासी नारायण का तथा क्षीरशायी विष्णु का शुभागमन, नारायण और विष्णु का श्रीकृष्ण के स्वरूप में लीन होना, संकर्षण तथा पुत्रोंसहित पार्वती का आगमन, देवताओं और देवियों को पृथ्वी पर जन्म ग्रहण करने के लिये प्रभु का आदेश, किस देवता का कहाँ और किस रूप में जन्म होगा– इसका विवरण, श्रीराधा की चिन्ता तथा श्रीकृष्ण का उन्हें सान्त्वना देते हुए अपनी और उनकी एकता का प्रतिपादन करना, फिर श्रीहरि की आज्ञा से राधा और गोप-गोपियों का नन्द-गोकुल में गमन | 582 | |
7 | श्रीकृष्ण जन्म-वृत्तांत-आकाशवाणी से प्रभावित हो देवकी के वध के लिये उद्यत हुए कंस को वसुदेव जी का समझाना, कंस द्वारा उसके छः पुत्रों का वध, सातवें गर्भ का संकर्षण, आठवें गर्भ में भगवान का आविर्भआव-देवताओं द्वारा स्तुति, भगवान का दिव्य रूप में प्राकट्य, वसुदेव द्वारा उनकी स्तुति, भगवान का पूर्वजन्म के वरदान का प्रसंग बताकर अपने को व्रज में ले जाने की बात बता शिशुरूप में प्रकट होना, वसुदेव जी का व्रज में यशोदा के शयनगृह में शिशु को सुलाकर नन्द-कन्या को ले आना, कंस का उसे मारने को उद्यत होना, परंतु वसुदेव जी तथा आकाशवाणी के कथन पर विश्वास करके कन्या को दे देना, वसुदेव-देवकी का सानन्द घर को लोटना | 596 | |
8 | जन्माष्टमी व्रत के पूजन, उपवास और महत्त्व आदि का निरूपण | 603 | |
9 | श्रीकृष्ण की अनिवर्चनीय महिमा, धरा और द्रोण की तपस्या, अदिति और कद्रू का पारस्परिक शाप से देवकी तथा रोहिणी के रूप में भूतल पर जन्म, हलधर और श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव | 609 | |
10 | आकाशवाणी सुनकर कंस का पूतना को गोकुल में भेजना, पूतना का श्रीकृष्ण के मुख में विष मिश्रित स्तन देना और प्राणों से हाथ धोकर श्रीकृष्ण की कृपा से माता की गति को प्राप्त हो गोलोक में जाना | 613 | |
11 | तृणावर्त का उद्धार तथा उसके पूर्वजन्म का परिचय | 616 | |
12 | यशोदा के घर गोपियों का आगमन और उनके द्वारा उन सबका सत्कार, शिशु श्रीकृष्ण के पैरों के आघात से शकट का चूर-चूर होना तथा श्रीकृष्ण कवच का प्रयोग एवं महात्म्य | 618 | |
13 | मुनि गर्ग जी का आगमन, यशोदा द्वारा उनका सत्कार और परिचय-प्रश्न, गर्ग जी का उत्तर, नन्द का आगमन, नन्द-यशोदा को एकान्त में ले जाकर गर्ग जी का श्रीराधा-कृष्ण के नाम–माहात्म्य का परिचय देना और उनकी भावी लीलाओं का क्रमशः वर्णन करना, श्रीकृष्ण के नामकरण एवं अन्नप्राशन-संस्कार का बृहद् आयोजन, ब्राह्मणों को दान-मान, गर्ग द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति तथा गर्ग आदि की विदाई | 620 | |
14 | यशोदा के यमुना स्नान के लिये जाने पर श्रीकृष्ण द्वारा दही-दूध-माखन आदि का भक्षण तथा बर्तनों को फोड़ना, यशोदा का उन्हें पकड़कर वृक्ष से बाँधना, वृक्ष का गिरना, गोप-गोपियों तथा नन्दजी का यशोदा को उपालम्भ देना, नल-कूबर और रम्भा को शाप प्राप्त होने तथा उससे मुक्त होने की कथा | 632 | |
15 | नन्द का शिशु श्रीकृष्ण को लेकर वन में गो-चारण के लिये जाना, श्रीराधा का आगमन, नन्द से उनकी वार्ता, शिशु कृष्ण को लेकर राधा का एकान्त वन में जाना, वहाँ रत्नमण्डप में नवतरुण श्रीकृष्ण का प्रादुर्भाव, श्रीराधा-कृष्ण की परस्पर प्रेमवार्ता, ब्रह्मा जी का आगमन, उनके द्वारा श्रीकृष्ण और राधा की स्तुति, वर-प्राप्ति तथा उनका विवाह कराना, नव दम्पति का प्रेम-मिलन तथा आकाशवाणी के आश्वासन देने पर शिशुरूपधारी श्रीकृष्ण को लेकर राधा का यशोदा जी के पास पहुँचाना | 634 | |
16 | वन में श्रीकृष्ण द्वारा बकासुर, प्रलम्बासुर और केशी का वध, उन सबका गोलोकधाम में गमन, उनके पूर्वजीवन का परिचय, पार्वती के त्रैमासिक व्रत का सविधि वर्णन तथा नन्द की आज्ञा के अनुसार समस्त व्रजवासियों का वृन्दावन में गमन | 645 | |
17 | विश्वकर्मा का आगमन, उनके द्वारा पाँच योजन विस्तृत नूतन नगर का निर्माण, वृषभानु गोप के लिये पृथक भवन, कलावती और वृषभानु के पूर्वजन्म का चरित्र, राजा सुचन्द्र की तपस्या, ब्रह्मा द्वारा वरदान, भनन्दन के यहाँ कलावती का जन्म और वृषभानु के साथ उसका विवाह, विश्वकर्मा द्वारा नन्द-भवन का, वृन्दावन के भीतर रासमण्डल का तथा मधुवन के पास रत्नमण्डप का निर्माण, ‘वृन्दावन’ नाम का कारण, राजा केदार का इतिहास, तुलसी से वृन्दावन नाम का सम्बन्ध तथा राधा के सोलह नामों में ‘वृन्दा’ नाम, राधा नाम की व्याख्या, नींद टूटने पर नूतन नगर देख व्रजवासियों का आश्चर्य तथा उन सबका उन भवनों में प्रवेश | 653 | |
18 | श्रीवन के समीप यज्ञ करने वाले ब्राह्मणों की पत्नियों का ग्वालबालों सहित श्रीकृष्ण को भोजन देना तथा उनकी कृपा से गोलोकधाम को जाना, श्रीकृष्ण की माया से निर्मित उनकी छायामयी स्त्रियों का ब्राह्मणों के घरों में जाना तथा विप्रपत्नियों के पूर्वजन्म का परिचय | 665 | |
19 | श्रीकृष्ण का कालियदह में प्रवेश, नागराज का उन पर आक्रमण, श्रीकृष्ण द्वारा उसका दमन, नागपत्नी सुरसा द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति, श्रीकृष्ण की उस पर कृपा, सुरसा का गोलोक-गमन, छायामयी सुरसा की सृष्टि, कालिय को वरदान, कालिय द्वारा भगवान की स्तुति, उस स्तुति की महिमा, नाग का रमणक द्वीप को प्रस्थान, कालिय का यमुना जल में निवास का कारण, गरुड़ का भय, सौभरि के शाप से कालियदह तक जाने में गरुड़ की असमर्थता, श्रीकृष्ण के कालियदह में प्रवेश करने से ग्वालबालों तथा नन्द आदि की व्याकुलता, बलराम का समझाना, श्रीकृष्ण के निकल आने से सबको प्रसन्नता, दावानल से व्रजवासियों की रक्षा तथा नन्दभवन में उत्सव | 670 | |
20 | मोहवश श्रीहरि के प्रभाव को जानने के लिये ब्रह्मा जी के द्वारा गौओं, बछड़ों और बालकों का अपहरण, श्रीकृष्ण द्वारा उन सबकी नूतन सृष्टि, ब्रह्मा जी का श्रीहरि के पास आना, सबको श्रीकृष्ण मय देख उनकी स्तुति करके पहले के गौओं आदि को वापस देकर अपने लोक को जाना तथा श्रीकृष्ण का घर को पधारना | 680 | |
21 | नन्द द्वारा इन्द्रयाग की तैयारी, श्रीकृष्ण द्वारा इसके विषय में जिज्ञासा, नन्द जी का उत्तर और श्रीकृष्ण द्वारा प्रतिवाद, श्रीकृष्ण की आज्ञा के अनुसार इन्द्र का यजन न करके गोपों द्वारा ब्राह्मण और गिरिराज का पूजन, उत्सव की समाप्ति पर इन्द्र का कोप, नन्द द्वारा इन्द्र की स्तुति, श्रीकृष्ण का नन्द को इन्द्र की स्तुति से रोककर सब व्रजवासियों को गौओं सहित, गोवर्धन की गुफा में स्थापित करके पर्वत को दण्ड की भाँति उठा लेना; इन्द्र, देवताओं तथा मेघों का स्तम्भन कर देना, पराजित इन्द्र द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति, श्रीकृष्ण का उन्हें विदा करके पर्वत को स्थापित कर देना तथा नन्द द्वारा श्रीकृष्ण का स्तवन | 683 | |
22 | ग्वाल-बालों का श्रीकृष्ण की आज्ञा से तालवन के फल तोड़ना, धेनुकासुर का आक्रमण, श्रीकृष्ण के स्पर्श से उसे पूर्वजन्म की स्मृति और उसके द्वारा श्रीकृष्ण का स्तवन, वैष्णवी माया से पुनः उसे स्वरूप की विस्मृति, फिर श्रीहरि के साथ उसका युद्ध और वध, बालकों द्वारा सानन्द फल-भक्षण तथा सबका घर को प्रस्थान | 692 | |
23 | धेनुक के पूर्वजन्म का परिचय, बलि-पुत्र साहसिक तथा तिलोत्तमा का स्वच्छन्द विहार, दुर्वासा का शाप और वर, साहसिक का गदहे की योनि में जन्म लेना तथा तिलोत्तमा का बाणपुत्री ‘उषा’ होना | 696 | |
24 | दुर्वासा का और्वकन्या कन्दली से विवाह, उसकी कटूक्तियों से कुपित हो मुनि का उसे भस्म कर देना, फिर शोक से देह-त्याग के लिये उद्यत मुनि को विप्ररूपधारी श्रीहरि का समझाना, उन्हें एकानंशा को पत्नी बनाने के लिये कहना, कन्दली का भविष्य बताना और मुनि को ज्ञान लेकर अन्तर्धान होना तथा मुनि की तपस्या में प्रवृत्ति | 698 | |
25 | महर्षि और्व द्वारा दुर्वासा को शाप, दुर्वासा का अम्बरीष के यहाँ द्वादशी के दिन पारणा के समय पहुँचकर भोजन माँगना, वसिष्ठ जी की आज्ञा से अम्बरीष का पारणा की पूर्ति के लिये भगवान का चरणोदक पीना, दुर्वासा का राजा को मारने के लिये कृत्या-पुरुष उत्पन्न करना, सुदर्शन चक्र का कृत्या को मारकर मुनि का पीछा करना, मुनि का कहीं भी आश्रय न पाकर वैकुण्ठ में जाना, वहाँ से भगवान की आज्ञा के अनुसार अम्बरीष के घर आकर भोजन करना तथा आशीर्वाद देकर अपने आश्रम को जाना | 702 | |
26 | एकादशी व्रत का माहात्म्य, इसे न करने से हानि, व्रत के सम्बन्ध में आवश्यक निर्णय, व्रत का निधान– छः देवताओं का पूजन, श्रीकृष्ण का ध्यान और षोडशोपचार पूजन तथा कर्म में न्यूनता की पूर्ति के लिये भगवान से प्रार्थना | 708 | |
27 | गोपकिशोरियों द्वारा गौरी-व्रत का पालन, दुर्गा-स्तोत्र और उसकी महिमा, समाप्ति के दिन गोपियों को नग्न-स्नान करती जान श्रीकृष्ण द्वारा उनके वस्त्र आदि का अपहरण, श्रीराधा की प्रार्थना से भगवान का सब वस्तुएँ लौटा देना, व्रत का विधान, दुर्गा का ध्यान, गौरी-व्रत की कथा, लक्ष्मीस्वरूपा वेदवती का सीता होकर इस व्रत के प्रभाव से श्रीराम को पतिरूप में पाना, सीता द्वारा की हुई पार्वती की स्तुति, श्रीराधा आदि के द्वारा व्रतान्त में दान, देवकी का उन सबको दर्शन देकर राधा को स्वरूप की स्मृति कराना, उन्हें अभीष्ट वर देना तथा श्रीकृष्ण का राधा आदि को पुनः दर्शन-सम्बन्धी मनोवांछित वर देना | 714 | |
28 | श्रीकृष्ण के रास-विलास का वर्णन | 725 | |
29 | श्रीराधा के साथ श्रीकृष्ण का वन-विहार, वहाँ अष्टावक्र मुनि के द्वारा उनकी स्तुति तथा मुनि का शरीर त्यागकर भगवच्चरणों में लीन होना | 729 | |
30 | भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अष्टावक्र (देवल)– के शव का संस्कार तथा उनके गूढ़ चरित्र का परिचय | 731 | |
31-33 | ब्रह्मा जी का मोहिनी के शाप से अपूज्य होगा, इस शाप के निवारण के लिये उनका वैकुण्ठधाम में जाना और वहाँ अन्यान्य ब्रह्माओं के दर्शन से उनके अभिमान का दूर होना | 735 | |
34 | गंगा की उत्पत्ति तथा महिमा | 737 | |
35-36 | गंगा-स्नान से ब्रह्मा जी को मिले हुए शाप की निवृत्ति, गोलोक में ब्रह्मा जी को भारती की प्राप्ति, भारती सहित ब्रह्मा का अपने लोक में प्रवेश, भगवान शिव के दर्पभंग की कथा, वृकासुर से उनकी रक्षा, श्री राधिका के पूछने पर श्रीकृष्ण के द्वारा शिव के तत्त्व-रहस्य का निरूपण | 739 | |
37-38 | देवी सती और पार्वती के गर्व-मोचन की कथा, सती का देहत्याग, पार्वती का जन्म, गर्ववश उनके द्वारा आकाशवाणी की अवहेलना, शंकर जी का आगमन, शैलराज द्वारा उनकी स्तुति तथा उस स्तुति की महिमा | 745 | |
39 | गिरिराज हिमवान द्वारा गणों सहित शिव का सत्कार, मेना को शिव के अलौकिक सौन्दर्य के दर्शन, पार्वती द्वारा शिव की परिक्रमा, शिव का उन्हें आशीर्वाद, शिवा द्वारा शिव का षोडशोपचार-पूजन, शंकर द्वारा कामदेव का दहन तथा पार्वती को तपस्या द्वारा शिव की प्राप्ति | 748 | |
40 | पार्वती की तपस्या, उनके तप के प्रभाव से अग्नि का शीतल होना, ब्राह्मण-बालक का रूप धारण करके आये हुए शिव के साथ उनकी बातचीत, पार्वती का घर को लौटना और माता-पिता आदि के द्वारा उनका सत्कार, भिक्षुवेषधारी शंकर का आगमन, शैलराज को उनके विविध रूपों के दर्शन, उनकी शिव-भक्ति से देवताओं को चिन्ता, उनका बृहस्पति जी को शिव-निन्दा के लिये उकसाना तथा बृहस्पति का देवताओं को शिव-निन्दा के दोष बताकर तपस्या के लिये जाना | 751 | |
41 | ब्रह्मा जी की आज्ञा से देवताओं का शिव जी से शैलराज के घर जाने का अनुरोध करना, शिव का ब्राह्मण-वेष में जाकर अपनी ही निन्दा करके शैलराज के मन में आश्रद्धा उत्पन्न करना, मेना का पुत्री को साथ ले कोप-भवन में प्रवेश और शिव को कन्या न देने के लिये दृढ़ निश्चय, सप्तर्षियों और अरुन्धती का आगमन तथा शैलराज एवं मेना को समझाना, वसिष्ठ और हिमवान की बातचीत, शिव की महत्ता तथा देवताओं की प्रबलता का प्रतिपादन, प्रसंगवश राजा अनरण्य, उनकी पुत्री पद्मा तथा पिप्पलाद मुनि की कथा | 758 | |
42 | अनरण्य की पुत्री पद्मा की धर्म द्वारा परीक्षा, सती पद्मा का उनको शाप देना तथा शाप से उनकी रक्षा की व्यवस्था करना, वसिष्ठ जी का हिमवान को संक्षेप से सती के देह-त्याग का प्रसंग सुनाना | 766 | |
43 | शिव का सती के शव को लेकर शोकवश समस्त लोकों का भ्रमण, भगवान विष्णु का उन्हें समझाना और प्रकृति की स्तुति के लिये कहना, शिव द्वारा की हुई स्तुति से संतुष्ट हुई प्रकृतिरूपिणी सती का शिव को दर्शन एवं सान्त्वना देना | 770 | |
44 | पार्वती के विवाह की तैयारी, हिमवान के द्वार पर दूलह शिव के साथ बारात में विष्णु आदि देवताओं का आगमन, हिमालय द्वारा उनका सत्कार, वर को देखने के लिये स्त्रियों का आगमन, वर के अलौकिक रूप-सौन्दर्य को देख मेना का प्रसन्न होना, स्त्रियों द्वारा दुर्गा के सौभाग्य की सराहना, दुर्गा का रूप, दम्पति का एक-दूसरे की ओर देखना, गिरिराज द्वारा दहेज के साथ शिव के हाथ में कन्या का दान तथा शिव का स्तवन | 774 | |
45-46 | शिव-पार्वती के विवाह का होम, स्त्रियों का नव-दम्पत्ति को कौतुकागार में ले जाना, देवांगनाओं का उनके साथ हास-विनोद, शिव के द्वारा कामदेव को जीवन-दान, वर-वधू और बारात की बिदाई, शिवधाम में पति-पत्नी की एकान्त वार्ता, कैलास में अतिथियों का सत्कार और बिदाई, सास-ससुर के बुलाने पर शिव-पार्वती का वहाँ जाना तथा पार्षदोंसहित शिव का श्वशुर-गृह में निवास | 777 | |
47 | इंद्र के अभिमान-भंग का प्रसंग-प्रकृति और गुरु की अवहेलना से इंद्र को शाप, गौतममुनि के शाप से इंद्र के शरीर में सहस्र योनियों का प्राकट्य, अहल्या का उद्धार, विश्वरूप और वृत्र के वध से इंद्र पर ब्रह्महत्या का आक्रमण, इनका मानसरोवर में छिपना, बृहस्पति का उनके पास जाना, इंद्र द्वारा गुरु की स्तुति, ब्रह्महत्या का भस्म होना, इंद्र का विश्वकर्म द्वारा नगर का निर्माण कराना, द्विज-बालक रूपधारी श्रीहरि तथा लोमशमुनि के द्वारा इन्द्र का मान-भंजन, राज्य छोड़ने को उद्यत हुए विरक्त इंद्र का बृहस्पतिजी के समझाने से पुनः राज्य पर प्रतिष्ठित रहना | 780 | |
48-50 | सूर्य और अग्नि के दर्प-भंग की कथा | 787 | |
51 | धन्वन्तरि के दर्प-भंग की कथा, उनके द्वारा मनसा देवी का स्तवन | 789 | |
52-54 | श्रीकृष्ण ने अन्तर्धान होने से श्रीराधा और गोपियों का दुःख से रोदन, चंदनवन में श्रीकृष्ण का उन्हें दर्शन देना, गोपियों के प्रणय कोपजनित उद्गार, श्रीकृष्ण का उनके साथ विहार, श्रीराधा नाम के प्रथम उच्चारण का कारण, श्रीकृष्ण द्वारा श्रीराधा का श्रृंगार, गोपियों द्वारा उनकी सेवा और श्रीकृष्ण के मथुरागमन से लेकर परमधाम गमन तक की लीलाओं का संक्षिप्त परिचय | 793 | |
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध) | |||
55 | श्रीकृष्ण की महत्ता एवं प्रभाव का वर्णन | 797 | |
56-59 | इंद्र के दर्प-भंग की कथा, नहुष की शची पर कुदृष्टि, शची का धर्म की बातें बताकर नहुष को समझाना और उसके न मानने पर बृहस्पतिजी की शरण में जाकर उनका स्तवन करना | 798 | |
60-61 | बृहस्पति का शची को आश्वासन एवं आशीर्वाद देना, नहुष का सप्तर्षियों को वाहन बनाना और दुर्वासा के शाप से अजगर होना, बृहस्पति का इंद्र को बुलाकर पुनः सिंहासन पर बिठाना तथा गौतम से इंद्र और अहल्या को शाप की प्राप्ति | 803 | |
62 | अहल्या के उद्धार एवं श्रीराम चरित्र का संक्षेप से वर्णन | 806 | |
63-64 | कंस के द्वारा रात में देखे हुए दुःस्वप्नों का वर्णन और उससे अनिष्ट की आशंका, पुरोहित सत्य का अरिष्ट शान्ति के लिए धनुर्यज्ञ का अनुष्ठान बताना, कंस का नन्दनन्दन को शत्रु बताना और उन्हें व्रज से बुलाने के लिए वसुदेवजी को प्रेरित करना, वसुदेवजी के अस्वीकार करने पर अक्रूर को वहाँ जाने की आज्ञा देना, ऋषिगण तथा राजाओं का आगमन | 810 | |
65 | भगवद्दर्शन की संभावना से अक्रूर के हर्षोल्लास एवं प्रेमावेश का वर्णन | 814 | |
66-67 | श्रीराधा का श्रीकृष्ण को अपने दुःस्वप्न सुनाना और उनके बिना अपनी दयनीय स्थिति का चित्रण करना, श्रीकृष्ण का उन्हें सान्त्वना देना और आध्यात्मिक योग का श्रवण कराना | 816 | |
68-69 | श्रीकृष्ण को व्रज में जाते देख राधा का विलाप एवं मूर्च्छा, श्रीहरि का उन्हें समझाना, श्रीराधा के सो जाने पर ब्रह्मा आदि देवताओं का आना और स्तुति करके श्रीकृष्ण को मथुरा जाने के लिए प्रेरित करना, श्रीकृष्ण का जाना, श्रीराधा का उठना और प्रियतम के लिए विलाप करके मूर्च्छित होना, श्रीकृष्ण का लौटकर आना, रत्नमाला का श्रीकृष्ण को राधा की अवस्था बताना, श्रीकृष्ण का राधा के लिए स्वप्न में मिलने का वरदान देकर व्रज में जाना | 820 | |
70 | अक्रूर जी के शुभ स्वप्न तथा मंगलसूचक शकुन का वर्णन, उनका रासमण्डल और वृन्दावन का दर्शन करते हुए नन्दभवन में जाना, नन्द द्वारा उनका स्वागत सत्कार, उन्हें श्रीकृष्ण के विविध रूपों में दर्शन, उनके द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति तथा श्रीकृष्ण को मथुरा चलने की सलाह देना, गोपियों द्वारा अक्रूर का विरोध और उनके रथ का भञ्जन, श्रीकृष्ण का उन्हें समझाना और आकाश से दिव्य रथ का आगमन | 825 | |
71-72 | शुभ लग्न में यात्रासंबंधी मंगलकृत्य करके श्रीकृष्ण का मथुरापुरी को प्रस्थान, पुरी की शोभा का वर्णन, कुब्जा पर कृपा, माली को वरदान, धोबी का उद्धार, कुब्जा का गोलोकगमन, कंस का दुःस्वप्न, रंगभूमि में कंस का पधारना, धनुर्भंग, हाथी का वध, कंस का उद्धार, उग्रसेन को राज्यदान, माता-पिता के बन्धन काटना, वसुदेवजी द्वारा नन्द आदि का सत्कार और ब्राह्मणों को दान | 830 | |
73 | श्रीकृष्ण का नन्द को अपना स्वरूप और प्रभाव बताना; गोलोक, रासमण्डल और राधा-सदन का वर्णन; श्रीराधा के महत्व का प्रतिपादन तथा उनके साथ अपने नित्य संबंध का कथन और दिव्य विभूतियों का वर्णन | 836 | |
74-75 | श्रीकृष्ण द्वारा नन्दजी को ज्ञानोपदेश, लोकनीति, लोकमर्यादा तथा लौकिक सदाचार से संबंध रखने वाले विविध विधि-निषेधों का वर्णन, कुसंग और कुलटा की निन्दा, सती और भक्त की प्रशंसा, शिवलिंग पूजन एवं शिव की महत्ता | 841 | |
76 | जिनके दर्शन से पुण्यलाभ और जिनके अनुष्ठान से पुनर्जन्म का निवारण होता है, उन वस्तुओं और सत्कर्मों का वर्णन तथा विविध दानों के पुण्यफल का कथन | 846 | |
77 | सुस्वप्न दर्शन के फल का विचार | 849 | |
78 | श्रीकृष्ण के द्वारा नन्दन को आध्यात्मिक ज्ञान का उपदेश, बाईस प्रकार की सिद्धि, सिद्धमंत्र तथा अदर्शनीय वस्तुओं का वर्णन | 853 | |
79-82 | दुःस्वप्न, उनके फल तथा उनकी शान्ति के उपाय का वर्णन | 564 | |
83 | ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, संन्यासी तथा विधवा और पतिव्रता नारियों के धर्म का वर्णन | 859 | |
84 | गृहस्थ, गृहस्थ पत्नी, पुत्र और शिष्य के धर्म का वर्णन, नारियों और भक्तों के त्रिविध, भेद, ब्रह्माण्ड-रचना के वर्णन-प्रसंग में राधा की उत्पत्ति का का कथन | 865 | |
85 | चारों वर्णों के भक्ष्याभक्ष्य का निरूपण तथा कर्मविपाक का वर्णन | 871 | |
86 | केदार कन्या के वृत्तान्त का वर्णन | 879 | |
87 | सनत्कुमार आदि के साथ श्रीकृष्ण का समागम, सनत्कुमार के द्वारा श्रीकृष्ण के रहस्योद्घाटन करने पर नन्दजी का पश्चात्तापपर्ण कथन तथा मूर्च्छित होना | 885 | |
88-89 | श्रीकृष्ण का नन्द को दुर्गा-स्तोत्र सुनाना तथा व्रज लौट जाने का आदेश देना, नन्द का श्रीकृष्ण से चारों युगों के धर्म का वर्णन करने के लिए प्रार्थना करना | 887 | |
90 | श्रीकृष्ण द्वारा चारों युगों के धर्मादि का कथन, श्रीकृष्ण को गोकुल चलने के लिए नन्द का आग्रह | 891 | |
91-92 | श्रीकृष्ण का उद्धव को गोकुल भेजना, उद्धव का गोकुल में सत्कार तथा उनका और राधास्तोत्र द्वारा उनका स्तवन करना | 894 | |
93 | राधा-उद्धव-संवाद | 898 | |
94 | सखियों द्वारा श्रीकृष्ण की निन्दा एवं प्रशंसा और उद्धव का मूर्च्छित हुई राधा को सान्त्वना प्रदान करना | 902 | |
95-96 | उद्धव का कथन सुनकर राधा का चैतन्य होना और अपना दुःख सुनाते हुए उद्धव को उपदेश देकर मथुरा जाने की आज्ञा देना | 905 | |
97 | राधा का उद्धव को बिदा करना, विदा होते समय उद्धव द्वारा राधा-महत्व-वर्णन तथा उद्धव के यशोदा के पास चले जाने पर राधा का मूर्च्छित होना | 907 | |
98 | श्रीकृष्ण द्वारा गोकुल का वृत्तान्त पूछे जाने पर उद्धव का उसे कहते हुए राधा की दशा का विशेष रूप से वर्णन करना | 910 | |
99 | गर्ग जी का आगमन और वसुदेवजी से पुत्रों से पुत्रों के उपनयन के लिए कहना, उसी प्रसंग में मुनियों और देवताओं का आना, वसुदेवजी द्वारा उनका सत्कार और गणेश का अग्र-पूजन | 912 | |
100-101 | अदिति आदि देवियों द्वारा पार्वती का स्वागत सत्कार, वसुदेवजी का देव-पूजन आदि मांगलिक कार्य करके बलराम और श्रीकृष्ण का उपनयन करना, तत्पश्चात् नन्द आदि समागत अभ्यागतों की बिदाई और वसुदेव-देवकी का अनेकाविध वस्तुओं का दान करना | 914 | |
102 | बलरामसहित श्रीकृष्ण का विद्या पढ़ने के लिए महर्षि सांदीपनि के निकट जाना, गुरु और गुरुपत्नी द्वारा उनका स्वागत और विदयाध्ययन के पश्चात् गुरुदक्षिणा रूप में गुरु के मृतक पुत्र को उन्हें वापस देकर घर लौटना | 917 | |
103-104 | द्वारकापुरी का निर्माण, उसे देखने के लिए देवताओं और मुनियों का आना और उग्रसेन का राज्याभिषेक | 919 | |
105 | भीष्मक द्वारा रुक्मिणी के विवाह का प्रस्ताव, शतानन्द का उन्हें श्रीकृष्ण के साथ विवाह करने की सम्मति देना, रुक्मी द्वारा उसका विरोध और शिशुपाल के साथ विवाह करने का अनुरोध, भीष्मक का श्रीकृष्ण तथा अन्यान्य राजाओं को निमंत्रित करना | 923 | |
106 | रेवती और बलराम का विवाह का वर्णन तथा रुक्मी, शाल्व, शिशुपाल और दन्तवक्र का श्रीकृष्ण को कटुवचन कहना | 926 | |
107 | रुक्मी आदि का यादवों के साथ युद्ध, शाल्व का वध, रुक्मी की सेना का पलायन, बारात का पुरी में प्रवेश और स्वागत-सत्कार, शुभलग्न में श्रीकृष्ण का बारातियों तथा देवों के साथ राजा के आँगन में जाना, भीष्मक द्वारा सबका सत्कार करके श्रीकृष्ण का पूजन | 927 | |
108-109 | रुक्मिणी और श्रीकृष्ण का विवाह, बारात की बिदाई, भीष्मक द्वारा दहेज-दान और द्वारका में मंगलोत्सव | 931 | |
110 | श्रीकृष्ण के कहने से नन्द यशोदा का ज्ञानप्राप्ति के लिए कदलीवन में राधिका के पास जाना, वहाँ अचेतनावस्था में पड़ी हुई राधा को श्रीकृष्ण के संदेश द्वारा चैतन्य करना और राधा का उपदेश देने के लिए उद्यत होना | 933 | |
111 | राधिका द्वारा ‘राम’ आदि भगवन्नामों की व्युत्पत्ति और उनकी प्रशंसा तथा यशोदा के पूछने पर अपने ‘राधा’ नाम की व्याख्या करना | 585 | |
112 | प्रद्युम्नाख्यान-वर्णन, श्रीकृष्ण का सोलह हजार आठ रानियों के साथ विवाह और उनसे संतानोत्पत्ति का कथन, दुर्वासा का द्वारका में आगमन और वसुदेव कन्या एकानंशा के साथ विवाह, श्रीकृष्ण के अद्भुत चरित्र को देखकर दुर्वासा का भयभीत होना, श्रीकृष्ण का उन्हें समझना और दुर्वासा का पत्नी को छोड़कर तप के लिए जाना | 938 | |
113 | पार्वती द्वारा दुर्वासा के प्रति अकारण पत्नी त्याग के दोष का वर्णन, दुर्वासा का पुनः लौटकर द्वारका जाना, श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर के राजसूययज्ञ में पधारना, शिशुपाल का वध, उसके आत्मा द्वारा श्रीकृष्ण का स्तवन, श्रीकृष्ण चरित का निरुपण | 941 | |
114 | अनिरुद्ध और उषा का पृथक्-पृथक् स्वप्न में दर्शन, चित्रलेखा द्वारा अनिरुद्ध का अपहरण, अन्तःपुर में अनिरुद्ध और उषा का गान्धर्व विवाह | 944 | |
115 | कन्या की दुःशीलता का समाचार पाकर बाण का युद्ध के लिए उद्यत होना; शिव, पार्वती, गणेश, स्कन्द और कोटरी का उसे रोकना; परंतु बाण का स्कन्द को सेनापति बनाकर युद्ध के लिए नगर के बाहर निकलना, उषाप्रदत्त रथ पर सवार होकर अनिरुद्ध का भी कुद्धद्योग करना, बाण और अनिरुद्ध का परस्पर वार्तालाप | 946 | |
116 | बाण और अनिरुद्ध के संवाद-प्रसंग में अनिरुद्ध द्वारा द्रौपदी के पाँच पति होने का वर्णन, बाणसेनापति सुभद्रा का अनिरुद्ध के साथ युद्ध और अनिरुद्ध द्वारा उसका वध | 948 | |
117 | गणेश शिव संवाद | 950 | |
118 | मणिभद्र का शिवजी को सेनासहित श्रीकृष्ण के पधारने की सूचना देना, शिवजी का बाण की रक्षा के लिए दुर्गा से कहना, दुर्गा का बाण को युद्ध से विरत होने की सलाह देना | 951 | |
119 | शिवजी का कन्या देने के लिए बाण को समझाना, बाण का उसे अस्वीकार करना, बालिका आगमन और सत्कार, बलिका महादेवीजी का चरणवन्दन करके श्रीभगवान् का स्तवन करना, श्रीभगवान् द्वारा बलि को बाण के न मानरे का आश्वासन | 953 | |
120 | बाण का यादवी सेना के साथ युद्ध, बाण का धराशायी होना, शंकरजी का बाण को उठाकर श्रीकृष्ण के चरणों में डाल देना, श्रीकृष्ण द्वारा बाण को जीवन दान, बाण का श्रीकृष्ण को बहुत से दहेज के साथ अपनी कन्या समर्पित करना, श्रीकृष्ण का पौत्र और पौत्रवधू के साथ द्वारका को लौट जाना और द्वारका में महोत्सव | 957 | |
121 | श्रृगालोपाख्यान | 960 | |
122 | गणेश के अग्रपूज्यत्व वर्णन के प्रसंग में राधा द्वारा गणेश की अग्रपूजा का कथन | 962 | |
123 | गणेशकृत राधा-प्रशंसा, पार्वती राधा सम्भाषण, पार्वती के आदेश से सखियों द्वारा राधा का श्रृंगार और उनकी विचित्र झाँकी; ब्रह्मा, शिव, अनन्त आदि के द्वारा राधा की स्तुति | 964 | |
124 | वसुदेवजी का शंकर जी से भव-तरण का उपाय पूछना, शंकरजी का उन्हें ज्ञानोपदेश देकर राजसूय यज्ञ करने का आदेश देना, वसुदेवजी द्वारा राजसूय यज्ञ का अनुष्ठान और यज्ञान्त में सर्वस्व दक्षिणा में देकर उनका द्वारका को लौटना | 969 | |
125 | राधा और श्रीकृष्ण का पुनः मिलाप, राधा के पूछने पर श्रीकृष्ण द्वारा अपना तथा रहस्योद्घाटन | 970 | |
126 | श्रीकृष्ण का राधा के साथ विभिन्न स्थलों में विहार करके पुनः गोकुल में जाना, वहाँ उनका स्वागत सत्कार, यशोदा का राधसहित श्रीकृष्ण को महल में ले जाना और मंगल महोत्सव करना | 973 | |
127 | श्रीकृष्ण द्वारा नन्द को ज्ञानोपदेश और राधा कलावती आदि गोपियों का गोलोक गमन | 975 | |
128 | श्रीकृष्ण के गोलोक गमन का वर्णन | 976 | |
129 | नारायण के आदेश से नारद का विवाह के लिए उद्यत हो ब्रह्मलोक में जाना, ब्रह्मा का दल-बल के साथ राजा सृंजय के पास आना, सृंजय कन्या और नारद का विवाह, सनत्कुमार द्वारा नारद को श्रीकृष्ण-मंत्रोपदेश, महादेवीजी का उन्हें श्रीकृष्ण का ध्यान और जप-विधि बतलाना, तप के अंत में नारद का शरीर त्यागकर श्रीहरि के पादपद्म में लीन होना | 981 | |
130-131 | पुराणों के लक्षण और उनकी श्लोक संख्या का निरूपण, ब्रह्मवैवर्त पुराण के पठन श्रवण के माहात्म्य का वर्णन करके सूतजी का सिद्धाश्रम को प्रयाण | 984 | |
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