श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 493

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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विराट रूप
अध्याय-11 : श्लोक-22


रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या
विश्वऽश्विनौ मरुतश्चोष्मपाश्च।
गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसङ्घा
वीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे ।।[1]

भावार्थ

शिव के विविध रूप, आदित्यगण, वसु, साध्य, विश्वेदेव, दोनों अश्विनीकुमार, मरुद्गण, पितृगण, गन्धर्व, यक्ष, असुर तथा सिद्धदेव सभी आपको आश्चर्यपूर्वक देख रहे हैं।

अध्याय-11 : श्लोक-23


रूपं महत्ते बहुवक्त्रनेत्रं
महाबाहो बहुबाहूरूपादम्।
बहूदरं बहुदंष्ट्राकरालं
दृष्ट्वा लोकाः प्रव्यथितास्तथाहम्।।[2]

भावार्थ

हे महाबाहु! आपके इस अनेक मुख, नेत्र, बाहु,जांघ, पाँव, पेट तथा भयानक दाँतों वाले विराट रूप को देखकर देवतागण सहित सभी लोक अत्यन्तविचलित हैं और उन्हीं कि तरह मैं भी हूँ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रुद्र – शिव का रूप; आदित्याः – आदित्यगण; वसवः – सारे वसु; ये – जो; च – तथा; साध्याः – साध्य; विश्वे – विश्वेदेवता; अश्विनौ –अश्विनीकुमार; मरुतः – मरुद्गण; च– तथा; उष्ण-पाः – पितर; च – तथा; गन्धर्व –गन्धर्व; यक्ष – यक्ष; असुर – असुर; सिद्ध – तथा सिद्ध देवताओं के; सङ्घाः – समूह; वीक्षन्ते – देख रहे हैं; त्वाम् – आपको; विस्मिताः – आश्चर्यचकित होकर; च – भी; एव – निश्चय ही; सर्वे – सब।
  2. रूपम् – रूप; महत् – विशाल; ते – आपका; बहु – अनेक; वक्त्र – मुख; नेत्रम् – तथा आँखें; महा-बाहों – हे बलिष्ट भुजाओं वाले; बहु – अनेक; बाहु – भुजाएँ; ऊरु – जाँघें; पादम् – तथा पाँव; बहु-उदरम् – अनेक पेट; बहु-दंष्ट्रा – अनेक दाँत; करालम् – भयानक ; दृष्ट्वा – देखकर; लोकाः – सारे लोक; प्रव्यथिताः – विचलित; तथा – उसी प्रकार; अहम् – मैं।

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